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Ajmer urs 2019: इसे साधारण गद्दी मत समझना जनाब, इसका ख्वाजा साहब से है खास नाता

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अजमेरMar 09, 2019 / 04:23 pm

raktim tiwari

special seat in dargah

रक्तिम तिवारी/अजमेर.
यूं तो ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती का उर्स सदियों से जारी है। यहां छह दिन तक पारम्परिक रसूमात और धार्मिक कार्यक्रम होते हैं। इन सबके बीच उर्स के दौरान एक पुरानी परम्परा भी बरसों से निभाई जा रही है। ख्वाजा साहब की मजार शरीफ की खिद्मत करने वाले खुद्दाम ने हाइटेक दौर में भी इसको बरकरार रखा है।
ख्वाजा मोईनुद्दीन का इस साल 807 वां उर्स मनाया जा रहा है। उर्स प्रतिवर्ष रजब माह की पहली से छठी तारीख तक होता है। उर्स के शुरुआत होने के साथ यहां खिदमत करने वाले कई खुद्दाम अपनी गद्दी (स्थान) के साथ विशेष तौर पर एक छोटी ‘गद्दी ’ स्थापित करते हैं। इस गद्दी पर बाकायदा गुलाब के फूल चढ़ाए जाते हैं। ख्वाजा साहब की गद्दीबुजुर्ग खादिम इलियास महाराज की मानें तो इस छोटी सी गद्दी की बड़ी अहमियत है।
यह है ख्वाजा साहब की गद्दी
इसे खासतौर पर ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की गद्दी का प्रतीक मानते हुए दुआ-इबादत की जाती है। कई जायरीन भी यहां गुलाब के फूल चढ़ाते हैं। यह गद्दी उर्स के दौरान ही ज्यादा दिखाई देती है। उर्स के बाद इसे हटा लिया जाता है। अगले उर्स में फिर छोटी गद्दी स्थापित की जाती है। चाहे जमाना इंटरनेट, मोबाइल, कम्प्यूटर की तरफ बढ़ गया हो, लेकिन परम्परा को बरसों से निभाया जा रहा है।
पहले होती थी कम भीड़
इलियास बताते हैं 80 के दशक तक ख्वाजा साहब के उर्स में बहुत ज्यादा भीड़ नहीं होती थी। पहली से छठी रजब तक दरगाह और आसपास के इलाके में इतनी बस्तियां भी नहीं थी। उर्स के दौरान माहौल बिल्कुल शांत होता था। छठी की रस्म के दौरान तो सुई गिरने की आवाज (पिन ड्रॉप साइलेंस) भी सुनाई नहीं देती थी। यह माना जाता था कि यह ख्वाजा साहब का पवित्र स्थान है। उनके सम्मान में लोग रस्म में शामिल होने के बाद बेहद शांति से अपने-अपने शहरों में रुखसत होते थे।
जब पहलवान भी हो गए नतमस्तक….
बरसों पहले ईरान क्षेत्र से कुछ पहलवान दरगाह जियारत के लिए आए थे। अपनी रौबिली कद-काठी के अनुरूप वे धीरे-धीरे निजाम गेट से अंदर की तरफ बढ़े। अचानक उनकी नजहें शाहजहांनी गेट पर लिखी पंक्तियों पर पड़ी। उसे पड़ते ही वे तुरन्त नतमस्तक हो गए। इस पर लिखा था….यह ख्वाजा साहब की आरामगाह है, यहां धीरे-धीरे चलो ताकि उनकी इबादत में कोई खलल नहीं पड़े।

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