ख्वाजा साहब की दरगाह में जन्नती दरवाजा बना हुआ है। ऐसी मान्यता है, कि इसी दरवाजे से निकलकर ख्वाजा साहब इबादत करने जाते थे। यह जन्नती दरवाजा सालाना उर्स और कुछ खास मौकों पर खुलता है। हजारों जायरीन कई बरस से अपनी पीड़ा, मानसिक-आर्थिक परेशानी, पारिवारिक समस्या, विवाह-संतान से जुड़ी मन्नत लेकर दरगाह आते हैं।
दरवाजे पर बांधते खत
जायरीन अपनी मन्नतों को ख्वाजा साहब के नाम खत लिखकर जन्नती दरवाजे पर बांधते हैं। यह माना जाता है, कि खत में लिखी मन्नत पूरी होती है। जिन लोगों की संतान, पारिवारिक समस्या अथवा कोई पीड़ा दूर होती है, वे दरगाह में आकर मन्नत का धागा खोलते हैं। इसेे शुकराना अदा करना भी कहा जाता है।
दरवाजे पर बांधते खत
जायरीन अपनी मन्नतों को ख्वाजा साहब के नाम खत लिखकर जन्नती दरवाजे पर बांधते हैं। यह माना जाता है, कि खत में लिखी मन्नत पूरी होती है। जिन लोगों की संतान, पारिवारिक समस्या अथवा कोई पीड़ा दूर होती है, वे दरगाह में आकर मन्नत का धागा खोलते हैं। इसेे शुकराना अदा करना भी कहा जाता है।
read more: स्थापित करते हैं एक छोटी ‘गद्दी
रक्तिम तिवारी/अजमेर. यूं तो ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती का उर्स सदियों से जारी है। यहां छह दिन तक पारम्परिक रसूमात और धार्मिक कार्यक्रम होते हैं। इन सबके बीच उर्स के दौरान एक पुरानी परम्परा भी बरसों से निभाई जा रही है। ख्वाजा साहब की मजार शरीफ की खिद्मत करने वाले खुद्दाम ने हाइटेक दौर में भी इसको बरकरार रखा है।
ख्वाजा मोईनुद्दीन का 810 वां उर्स मनाया जा रहा है। उर्स प्रतिवर्ष रजब माह की पहली से छठी तारीख तक होता है। उर्स के शुरुआत होने के साथ यहां खिदमत करने वाले कई खुद्दाम अपनी गद्दी (स्थान) के साथ विशेष तौर पर एक छोटी ‘गद्दी स्थापित करते हैं। इस गद्दी पर बाकायदा गुलाब के फूल चढ़ाए जाते हैं।
रक्तिम तिवारी/अजमेर. यूं तो ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती का उर्स सदियों से जारी है। यहां छह दिन तक पारम्परिक रसूमात और धार्मिक कार्यक्रम होते हैं। इन सबके बीच उर्स के दौरान एक पुरानी परम्परा भी बरसों से निभाई जा रही है। ख्वाजा साहब की मजार शरीफ की खिद्मत करने वाले खुद्दाम ने हाइटेक दौर में भी इसको बरकरार रखा है।
ख्वाजा मोईनुद्दीन का 810 वां उर्स मनाया जा रहा है। उर्स प्रतिवर्ष रजब माह की पहली से छठी तारीख तक होता है। उर्स के शुरुआत होने के साथ यहां खिदमत करने वाले कई खुद्दाम अपनी गद्दी (स्थान) के साथ विशेष तौर पर एक छोटी ‘गद्दी स्थापित करते हैं। इस गद्दी पर बाकायदा गुलाब के फूल चढ़ाए जाते हैं।
ख्वाजा साहब की गद्दी
खादिम फखर काजमी की मानें तो इस छोटी सी गद्दी की बड़ी अहमियत है। इसे खासतौर पर ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की गद्दी का प्रतीक मानते हुए दुआ-इबादत की जाती है। कई जायरीन भी यहां गुलाब के फूल चढ़ाते हैं। यह गद्दी उर्स के दौरान ही ज्यादा दिखाई देती है। उर्स के बाद इसे हटा लिया जाता है। अगले उर्स में फिर छोटी गद्दी स्थापित की जाती है।
खादिम फखर काजमी की मानें तो इस छोटी सी गद्दी की बड़ी अहमियत है। इसे खासतौर पर ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की गद्दी का प्रतीक मानते हुए दुआ-इबादत की जाती है। कई जायरीन भी यहां गुलाब के फूल चढ़ाते हैं। यह गद्दी उर्स के दौरान ही ज्यादा दिखाई देती है। उर्स के बाद इसे हटा लिया जाता है। अगले उर्स में फिर छोटी गद्दी स्थापित की जाती है।