सोमलपुर स्थित हजरत बाबा निजामुल हक उवैसिया की दरगाह सर्वपंथ समभाव का केंद्र है। यहां बरसों से हजरत निजामुल हक के मजार शरीफ और इसके निकट बने शिव मंदिर में पूजा-अर्चना जारी है।सोमलपुर दरगाह में कम्माजी, मनोज खंगारोत, दीपक गौड़, जगदीश काबरा, अभिषेक माहेश्वरी उर्स के दौरान मुस्लिम रीति-रिवाज से मजार शरीफ पर गुस्ल की रस्म अदा करते हैं। इसके बाद आस्ताना के बाहर प्राचीन रीति-रिवाजों से आरती होती है। इसके बाद शिव मंदिर में आरती और दीप प्रज्ज्वलन किया जाता है।
बाबा की ख्वाहिश से बना शिव मंदिर बाबा के शिष्य चंद किशोर ने बताया कि बाबा बादामशाह 1947 में अजमेर आए थे। वे 1961 में अलीगढ़ के एक बाजार से शिवलिंग और कलश खरीदकर लाए। दुनिया से 26 नवम्बर 1965 को पर्दा लेने से पहले वे मंदिर की स्थापना करना चाहते थे। शिष्यों ने उनकी इच्छानुसार परिसर में मंदिर स्थापित किया। यहां भोजन-प्रसादी होने पर पहला भोग आस्ताना में पेश किया जाता है।
भजन और कलाम का संगम भक्त समिति अध्यक्ष प्रताप सिंह गौड़ ने बताया कि हजरत निजामुल हक के उर्स के दौरान कव्वाल व भजन गायक कलाम व भजन पेश किए जाते हैं। कृष्णा का मनन.., गुरु की महिमा और अन्य भजन गाए जाते हैं। साथ ही सूफियाना कलाम भी गूंजते हैं। बाबा बादामशाह ने हिंदू मंत्रों के उच्चारण के साथ ही मुस्लिम इबादत की सीख भी दी।
इंसानियत सबसे बड़ा धर्म बाबा बादामशाह ने अपनी सीख में इंसानियत को सबसे बड़ा धर्म बताया। उन्होंने गुरु के बताए मार्ग पर चलने और आडम्बरों से दूर रहने की सीख दी। बरसों से दरगाह देश-दुनिया को यही संदेश दे रही है।
उर्स में उमड़े जायरीन भक्त समिति के तत्वावधान में सोमवार को हजरत बाबा निजामुल हक उवैसिया का उर्स शुरू हुआ। मजार शरीफ को गुलाब जल, केवड़ा जल से गुस्ल, चंदन, केसर, इत्र फूल, कलेवा पेश किया गया। महिलाओं ने भजन व बधावे गाए। प्रसादी-भोग लगाया गया।
शाम को गोटा, सलमा सितारों वाली मखमली चादर पेश की। गुरु वंदना और भगवान शिव की आरती के बाद कव्वालियों एवं भजनों का आयोजन किया गया। मंगलवार सुबह 5 बजे रंग-सलाम पेश किया गया।