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Ahmedabad News पीआरएल की शोध में मिले सरस्वती नदी की मौजूदगी के प्रमाण

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अहमदाबादDec 19, 2019 / 09:31 pm

nagendra singh rathore

Ahmedabad News पीआरएल की शोध में मिले सरस्वती नदी की मौजूदगी के प्रमाण

नगेन्द्र सिंह
अहमदाबाद. शहर स्थित भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (पीआरएल) के वैज्ञानिकों की शोध में इस बात के प्रमाण मिले हैं कि ऋग्वेद और महाभारत में जिस पौराणिक सरस्वती नदी का उल्लेख है उसकी वास्तविक मौजूदगी थी। यह नदी हिमालय के शिवालिक क्षेत्र से निकलकर हरियाणा, राजस्थान, पंजाब और पाकिस्तान के कुछ हिस्से से होकर कच्छ (गुजरात) होते हुए अरब सागर में गिरती थी। यह नदी बारहमासी और पूरे बहाव से बहती थी जिसे आज घग्गर-हकरा नदी कहते हैं।
पीआरएल अहमदाबाद के वैज्ञानिक प्रो.ज्योतिरंजन एस. रे, अनिल शुक्ला, कोलकाता की प्रेसिडेंसी यूनिवर्सिटी के अर्निबान चटर्जी, आईआईटी बॉम्बे के कंचन पांडे की ओर से ‘हड्डपन हार्डलैंड में बारहमासी नदी का अस्तित्वÓ नाम की शोध को शोध जर्नल नेचर में साइंटिफिक रिपोर्ट के तहत प्रकाशित किया गया है।
इस नदी के आज से करीब ८० हजार साल पहले से लेकर २० हजार साल तक पहले तक पूरे बहाव के साथ बारहमास बहने के प्रमाण हैं और आज से ९ हजार साल पहले फिर से पुर्नजीवित होकर ४५०० साल पहले तक फिर से बारमास बहे होने के प्रमाण मिले हैं। जो दर्शाता है कि ऋग्वेद और महाभारत में जिस सरस्वती नदी का उल्लेख गंगा, यमुना के साथ किया गया है। वह नदी हकीकत में भारत में थी। इतना ही नहीं, इसका ऊपरी हिमालय के ग्लेशियर के साथ भी जुड़ाव था जो इसके सतलुज नदी के साथ जुड़े होने के कारण था।
वर्ष २०१२ से की जा रही इस शोध में कहा गया है कि नदी के बहाव क्षेत्र से मिले अवशेषों (मध्यम दाने वाली रेत, भूरी महीन दाने वाली रेत-शंख, क्वाटर््ज एवं इसमें से मिले मिनरल्स) के रेडियोकार्बन और ल्यूमिन सेंस डेटिंग से पता चलता है कि यह नदी ९ हजार साल पहले से लेकर ४५०० हजार साल पहले तक घग्गर नदी बारहमासी नदी थी। जो हकीकत में सरस्वती नदी ही है और हड़प्पा काल (सिंधुकालीन सभ्यता) के समय लोगों ने अपनी बस्तियां भी इसके किनारे ही बसाईं थीं। क्योंकि यह नदी अन्य नदियों की तुलना में काफी सामान्य तरीके से बहती थी।
हालांकि, सिंधुघाटी (हड़प्पा) की सभ्यता के परिपक्व होने से पहले ही यह नदी अपना ग्लेशियर कनेक्शन खो चुकी थी।
शहरी हड़प्पा के लोगों ने अगले कुछ शताब्दियों के भीतर घग्गर घाटी में अपनी बस्तियों को छोड़ दिया क्योंकि इस दौरान घग्गर-सरस्वती नदी का प्रवाह असाधारण रूप से परिवर्तित हो गया था। नदी सूख गई। इसके सूखने के साथ और अदृश्य होने के साथ ही सिंधु घाटी की सभ्यता (हड़प्पा सभ्यता) का भी पतन हो गया। इस शोध से इतना जरूर स्पष्ट है कि हड़प्पा सभ्यता सरस्वती नदी के किनारे ही विकसित हुई। इसके भी प्रमाण-मिले हैं।
जबकि कई विद्वानों का मानना था कि हड़प्पावासी (सिंधुघाटी) केवल मानसून पर निर्भर थे, क्योंकि हड़प्पा सभ्यता के दौरान घग्गर (सरस्वती) नदी के निर्बाध प्रवाह से बहने का कोई प्रमाण मौजूद नहीं था।
इस शोध में शोधार्थियों ने अध्ययन करके घग्गर के बारहमासी अतीत के लिए कई प्रमाण भी दिए हैं। जिसमें उन्होंने हरियाणा के सिरसा-फतेहगढ़ से राजस्थान के कालीबंगा, हनुमानगढ़ से लेकर भारत-पाकिस्तान के बॉर्डर पर गंगानगर-अनूपगढ़ तक के करीब ३०० किलोमीटर के इलाके में घग्गर नदी के दोनों किनारे के एक किलोमीटर तक के क्षेत्र में खुदाई कर सबूत जुटाए। जिसमें 10 से 12 मीटर व इसके नीचे तक खुदाई की जिसमें सबसे ऊपरी हिस्से में कीचड़, फिर 10 मीटर से नीचे ग्रे रंग की रेत मिलती है, जिसमें सफेद रंग का माइका भी है। यह रेत ठीक उसी प्रकार की है, जैसी गंगा, यमुना और सतलुज नदी में मिलती है। इसका कैमिकल जांच करने पर स्पष्ट हुआ कि यह रेत उच्च हिमालय ग्लेशियर से संबंध रखती है। इसके अलावा खुदाई के दौरान मिले शंख की रेडियोकार्बन डेटिंग और क्वाट्र्ज मिनरल्स की लुमिन सेंस डेटिंग से सामने आया कि यह नदी ८० हजार साल से २० हजार साल के दौरान तक बही है। इसके अलावा इसके नौ हजार साल पहले फिर से पुनर्जीवित होकर ४५०० साल पहले के दौरान तक भी बहने के प्रमाण मिले हैं।

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