गुजरात के कृषि मंत्री राघवजी पटेल ने इस पर खुशी व्यक्त करते हुए कहा कि जीआई टैग मिलने से कच्छ के किसानों को प्रतिस्पर्धी बाजार में बेहतर कीमत मिलेगी और कच्छ के किसान अधिक समृद्ध होंगे।
फल उत्पादन में कच्छ राज्य में अव्वल
कृषिमंत्री ने कहा कि वर्ष 2023-24 में 59,065 हेक्टेयर के साथ कच्छ जिला फलों की फसल के मामले में राज्य में प्रथम स्थान पर है। जिले में खारेक (खजूर), आम, अनार, ड्रैगन फ्रूट, पपीता, अमरूद प्रमुख फलों की पैदावार होती है।
मुन्द्रा, मांडवी, भुज, अंजार खारेक की खेती में अव्वल
पटेल ने कहा कि कच्छ जिले में 19,251 हेक्टेयर क्षेत्र में 1,82,884 मैट्रिक टन उत्पादन के साथ मुंद्रा, मांडवी, भुज और अंजार तहसील खारेक (खजूर) की खेती में अग्रणी तहसील हैं। कच्छ की खारेक को सूखा मेवा के रूप में पहचाना जाता है।
देश में 425 साल पहले कच्छ में शुरू हुई थी खेती
कृषिमंत्री ने कहा कि देश में 425 साल पहले खारेक (खजूर) की खेती कच्छ जिले में शुरू की गई थी। 425 साल पहले मुंद्रा तहसील के ध्रब में देश में पहली बार खारेक (खजूर) की खेती तुर्क परिवारों ने शुरू की थी। इनके प्रतिनिधि, किसान अग्रणी हुसेनभाई तुर्क का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा। अब जब 425 साल बाद इस फसल को जीआई-टैग भौगोलिक संकेत मान्यता प्राप्त हुई है, इससे कच्छ की देसी खारेक की मांग अब वैश्विक बाजार में और बढ़ेगी। इसे अधिक सम्मान मिलेगा। निर्यात बढ़ेगा। कच्छ देसी खारेक जीआई-टैग मान्यता प्राप्त करने वाला रेगिस्तानी क्षेत्र कच्छ का पहला कृषि उत्पाद बन गया।
बीकानेर सेंट्रल इंस्टीट्यूट फॉर एरिड हॉर्टीकल्चर का सहयोग मंत्री पटेल ने कहा कि मुंद्रा स्थित खारेक अनुसंधान केंद्र, सरदार कृषिनगर दांतीवाड़ा कृषि विश्वविद्यालय और केंद्रीय शुष्क बागवानी संस्थान, बीकानेर, राजस्थान के सहयोग से कच्छ की खारेक को मान्यता दिलाने के प्रयास शुरू किए थे। यह रंग लाए हैं। केंद्र सरकार के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अंतर्गत चेन्नई स्थित पैटर्न, डिजाइन और ट्रेड-मार्क महानियंत्रक कार्यालय द्वारा कच्छ के खारेक को जीआई टैग दिया गया है।