रमेश के पास 7.5 बीघा जमीन है। इस जमीन में उन्होंने हल्दी, अदरक, सुरण (ओल), पपीता, चना, राजगरा, मेथी, राई, सहजन, सौंफ आदि बगीचे से संबंधित फसलों की प्राकृतिक रूप खेती शुरू की। इस तरह की खेती से उनकी आमदनी में इजाफा हुआ जिससे वे कुछ ही वर्षों में आत्मनिर्भर किसानों की सूची में शामिल हो गए।
हालांकि आरंभ में वे परंपरागत खेती करते थे। इस दौरान उनकी वार्षिक आवक 2.5 लाख रुपए से लेकर 3 लाख रुपए तक सीमित रहती थी। इसमें लागत भी अधिक लगता था। खेती के लिए वे रासायनिक खाद, बीज, दवा आदि का उपयोग करते थे। इसके बाद जब से उन्होंने प्राकृतिक खेती शुरू की तो उनकी उन्होंने कीटनाशक दवाओं और रासायनिक खाद का उपयोग बंद कर जीवामृत आदि का उपयोग शुरू किया। इससे उनकी खेती में होने वाले खर्च में कटौती होने लगी। उनका खेती खर्च कम होने लगा। इससे आवक में बढोतरी हुई। अभी उनकी वार्षिक आवक करीब दो गुनी होकर 5 से 6 लाख रुपए सालाना हो गई है। उनका कहना है कि गोबर खाद के इस्तेमाल से खेत की उर्वर क्षमता भी बढ़ोतरी हुई, जमीन पहले से अधिक उपजाऊ हुआ।
हालांकि आरंभ में वे परंपरागत खेती करते थे। इस दौरान उनकी वार्षिक आवक 2.5 लाख रुपए से लेकर 3 लाख रुपए तक सीमित रहती थी। इसमें लागत भी अधिक लगता था। खेती के लिए वे रासायनिक खाद, बीज, दवा आदि का उपयोग करते थे। इसके बाद जब से उन्होंने प्राकृतिक खेती शुरू की तो उनकी उन्होंने कीटनाशक दवाओं और रासायनिक खाद का उपयोग बंद कर जीवामृत आदि का उपयोग शुरू किया। इससे उनकी खेती में होने वाले खर्च में कटौती होने लगी। उनका खेती खर्च कम होने लगा। इससे आवक में बढोतरी हुई। अभी उनकी वार्षिक आवक करीब दो गुनी होकर 5 से 6 लाख रुपए सालाना हो गई है। उनका कहना है कि गोबर खाद के इस्तेमाल से खेत की उर्वर क्षमता भी बढ़ोतरी हुई, जमीन पहले से अधिक उपजाऊ हुआ।
कई तरह से मिल रही सरकारी सहायता
किसान रमेश कांकरेजी गाय भी रखते हैं। इसके गोबर से प्राकृतिक खाद बनाते हैं। इनके पास एक गाय होने से सरकार की ओर से इन्हें वार्षिक 10 हजार 800 रुपए की सहायता भी मिलती है। वे अपने खेत से उपजी वस्तुओं की बिक्री जिला लेबर स्टोर, फार्म फेयर फेस्टिवल, नाबार्ड व सरकार आयोजित मेलों के स्टॉल के जरिए करते हैं। इन्हें प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के तहत वार्षिक 6000 रुपए भी प्राप्त होते हैं। सरकार ने इन्हें तार-फेंसिंग के लिए 30 हजार रुपए, ड्रीप इरिगेशन के लिए 50 फीसदी, ट्रैक्टर के पीछे 45 हजार रुपए आदि सहायता भी प्रदान की है। वे बताते हैं कि प्राकृतिक खेती समय की मांग है। स्वस्थ रहने के लिए भी यह जरूरी है। कई जानलेवा बीमारियों कैंसर, डायबिटिज आदि से छुटकारा भी मिल सकता है। शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी वृद्धि होती है।
किसान रमेश कांकरेजी गाय भी रखते हैं। इसके गोबर से प्राकृतिक खाद बनाते हैं। इनके पास एक गाय होने से सरकार की ओर से इन्हें वार्षिक 10 हजार 800 रुपए की सहायता भी मिलती है। वे अपने खेत से उपजी वस्तुओं की बिक्री जिला लेबर स्टोर, फार्म फेयर फेस्टिवल, नाबार्ड व सरकार आयोजित मेलों के स्टॉल के जरिए करते हैं। इन्हें प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के तहत वार्षिक 6000 रुपए भी प्राप्त होते हैं। सरकार ने इन्हें तार-फेंसिंग के लिए 30 हजार रुपए, ड्रीप इरिगेशन के लिए 50 फीसदी, ट्रैक्टर के पीछे 45 हजार रुपए आदि सहायता भी प्रदान की है। वे बताते हैं कि प्राकृतिक खेती समय की मांग है। स्वस्थ रहने के लिए भी यह जरूरी है। कई जानलेवा बीमारियों कैंसर, डायबिटिज आदि से छुटकारा भी मिल सकता है। शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी वृद्धि होती है।