बटुक चावड़ा, कमलेश लुहार व रमेश भरवाड़ की ओर से एक साथ मिलकर कुछ वर्ष पहले लगाए गए नीम, आम, पीपल, के पेड़ मंदिर परिसर की सुंदरता में चार चाँद लगा रहे है। ये दोस्त गांव के श्मशान, बंजर एवं खाली जमीनों पर पौधे लगाने का काम कर रहे है।
बटुक पौधरोपण के मुख्य अग्रदूत हैं। कमलेश एवं रमेश भरवाड़ के साथ मिलकर तीनों वृक्ष प्रेमी दोस्त खोरासा गांव के श्मशान, एवं खाली जमीनों का चयन कर अब तक 3,000 से अधिक पेड़ लगा चुके है। वहीं इनके ओर से लगाए गए पौधे आज वट वृक्ष का रूप ले चुके है। इनकी सार्थक सोच के साथ गांव के अन्य लोग भी जुड़ रहे हैं।
बटुक को वृक्षों से बेहद लगाव है। वे बताते है कि उन्होंने वन विभाग की नर्सरी से पौधे प्राप्त किया और वन विभाग पौधे लगाने के लिए गड्ढा बनाने में सहयोग किया। गर्मियों में पौधोंको जीवित रखने के लिए नियमित पानी दिया गया। चार से पांच वर्ष तक पेड़ों को जानवरों से बचाया गया और जहां कभी श्मशान घाट एवं मंदिर की जमीनें बंजर पड़ी रहती थीं वहां चारों ओर अब हरियाली है।
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बटुक पौधरोपण के मुख्य अग्रदूत हैं। कमलेश एवं रमेश भरवाड़ के साथ मिलकर तीनों वृक्ष प्रेमी दोस्त खोरासा गांव के श्मशान, एवं खाली जमीनों का चयन कर अब तक 3,000 से अधिक पेड़ लगा चुके है। वहीं इनके ओर से लगाए गए पौधे आज वट वृक्ष का रूप ले चुके है। इनकी सार्थक सोच के साथ गांव के अन्य लोग भी जुड़ रहे हैं।
बटुक को वृक्षों से बेहद लगाव है। वे बताते है कि उन्होंने वन विभाग की नर्सरी से पौधे प्राप्त किया और वन विभाग पौधे लगाने के लिए गड्ढा बनाने में सहयोग किया। गर्मियों में पौधोंको जीवित रखने के लिए नियमित पानी दिया गया। चार से पांच वर्ष तक पेड़ों को जानवरों से बचाया गया और जहां कभी श्मशान घाट एवं मंदिर की जमीनें बंजर पड़ी रहती थीं वहां चारों ओर अब हरियाली है।
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