अहमदाबाद

भूमिजा शैली में बना गलतेश्वर महादेव मंदिर

महीसागर एवं गलती नदी के संगम स्थल पर विराजमान अष्टकोणी मंदिर

अहमदाबादSep 03, 2019 / 04:00 pm

Gyan Prakash Sharma

भूमिजा शैली में बना गलतेश्वर महादेव मंदिर

आणंद. गुजरात के ऐतिहासिक पर्यटन एवं धार्मिक स्थल में खेड़ा जिले की ठासरा तहसील के सरनाल गांव में स्थित गलतेश्वर महादेव मंदिर का विशेष महत्व है। महीसागर एवं गलती नदी के संगम स्थल पर विराजमान यह मंदिर अष्टभुजा (अष्टकोणी) वाला है, जिसके शिखर को पूर्ण करने के अनेक प्रयास हुए, लेकिन अभी भी यह मंदिर बिना शिखर का है। गुजरात की सबसे प्राचीन शैली भूमिजा शैली में इस मंदिर का निर्माण किया गया है। मालवा के शासनकाल में यह शैली प्रसिद्ध थी। फिलहाल यात्राधाम विकास बोर्ड की ओर से मंदिर के विकास की योजना के तहत मंदिर के शिखर का कार्य शुरू किया गया है।
मंदिर के मंडप में अंदर आठ व बाहर १६ स्तंभ हैं, जिसपर मंडप की छत है। मंदिर के अंदर के स्तंभों को चौकोण बनाया गया है और उन्हें थोड़ा सा किनारे से काटा भी गया है। इस स्तंभ के एक तिहाई हिस्से में चार बाजूवाले दस्ते बनाए गए हैं, उनके नीचे के आधे हिस्से में अष्टकोणी दस्ता बनाए गए हैं। इसके अलावा, स्तंभ पर १६ अलग-अलग गोलाकार दस्तों को कीर्तिमुख से अलंकृत किया गया है और स्तंभ पर पेड़ की पत्तियां दर्शायी गई है।
डाकोर से १०-१२ किलोमीटर दूर व १२वीं सदी में सोलंकी युग का यह शिवमंदिर अपनी विशिष्ट शैली के लिए प्रसिद्ध है। मंदिर का गर्भगृह समकोण चतुर्भुज एवं अष्टकोणीय मंडप है। मंदिर अंदर से समकोण एवं बाहर की दीवार गोलाकार हैं। दीवार के कोनों में सात आले हैं, जिनमें आठों दिशाओं के रक्षक देवी-देवताओं की सात प्रतिमाएं हैं। गर्भगृह के आगे की दीवार पर भगवान शिव के विभिन्न रूप दर्शाए गए हैं। गर्भगृह के द्वार पर आबू शैली के रूपस्तंभ की नक्काशी है। कला एवं निर्माण कार्य में सुसज्जित यहां के गर्भगृह में आठों ओर दीवार हैं, जिनपर भगवान, गंधर्व, इंसान, ऋषि, घुड़सवार, हाथीसवार, रथ, पालकी एवं मानव जीवन की घटना, जन्म से मृत्यु तक के आंकड़े दर्शाए गए हैं। जो कलाप्रेमियों के लिए आकर्षण का केन्द्र बने हैं।

मंदिर की विशेषता :
इस मंदिर की विशेषता यह है आमतौर पर शिवलिंग सामान्य होते हैं, जिसपर कोई नक्काशी नहीं की जाती है, लेकिन इस शिवलिंग पर नक्काशी की गई है। बताया जाता है कि सोमनाथ मंदिर लूटकर लौट रहे मोहम्मद गजनी ने गळतेश्वर महादेव मंदिर देखा तो उसने गुंबद नष्ट कर दिया था।

हर वर्ष लगते हैं दो मेले
यहां हर वर्ष जन्माष्टमी एवं शरद पूर्णिमा पर मेला लगता है। इसके अलावा, महाशिवरात्रि पर भी बड़ी संख्या में दर्शनार्थी उमड़ते हैं।


यह है मान्यता :
पौराणिक कथाओं के अनुसार प्राचीन समय में गालव ऋषि ने १० हजार वर्ष तक भगवान शंकर की तपस्या की थी, जिससे प्रसन्न होकर भगवान ने शिवलिंग के रूप में गालव ऋषि को दर्शन दिए थे। अर्थात यह एक स्वयंभू शिवलिंग हैं। तत्कालीन समय में कुंतलपुर नाम का नगर था, जिसपर पूर्व राजा चंद्रहास राज्य करते थे। उन्होंने ही इस मंदिर का निर्माण कराया था, लेकिन इसके बाद मुगल साम्राज्य दौरान आक्रमण होने से मंदिर को तोड़ गिराया था। पुरातत्व विभाग की ओर से संरक्षित होने के कारण फिलहाल इस विभाग की ओर से मंदिर का मरम्मत कार्य किया जा रहा है।

लगातार होता रहता है अभिषेक :
बताया जाता है कि इस शिवलिंग पर गलती नदी के झरने से लगातार अभिषेक होता रहता था, जिसके कारण इसका नाम गलतेश्वर महादेव पड़ा था। फिलहाल एक-डेढ़ वर्ष से झरना बंद कर दिया गया है। मही एवं गलती नदी के संगम स्थान पर यह मंदिर होने के कारण इसकी विशेष महिमा रही है। यहां नदी में स्नान करने के बाद भक्त भगवान के दर्शन करते हैं।

तीन वर्ष में पूर्ण होगा शिखर का निर्माण कार्य
पौराणिक एवं ऐतिहासिक इस मंदिर के विकास कार्य के लिए गुजरात यात्राधाम विकास बोर्ड की ओर से योजना शुरू की गई है। फिलहाल मंदिर पर शिखर का निर्माण कार्य शुरू किया गया है, जो आगामी २-३ वर्षों में पूर्ण होगा। मंदिर से नदी में जाने के लिए घाट भी बनाया जाएगा। फिलहाल मंदिर संचालन कमेटी की ओर से आश्रम बनाया गया है।
-भरत महाराज-मंदिर के महंत।

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