नरेश एक पैर से दिव्यांग है, लेकिन उनकी सोच और लगन का ही यह नतीजा है कि उन्हें जिले के प्रगतिशील किसानों की सूची में शामिल किया जाता है। नरेश को कृषि कार्य पुश्तैनी मिला है, लेकिन उन्होंने परंपरागत कृषि करने के बजाए करीब सात-आठ वर्ष पूर्व ही कुछ नया करने की सोच के साथ काम करना शुरू किया। उन्होंनले इसी सोच के साथ खरबूज की बुवाई की। शुरुआती सफलता ने उन्हें उत्साहित किया और वे सरकारी सहायता प्राप्त करने में सफल रहे।
उन्नत बीज व जैविक खेती से सफलता
इसके बाद उन्होंने खेती में आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करना शुरू किया।
उन्होंने उन्नत बीज लाकर 45 बीघे जमीन में खरबूज की बुवाई की। बम्पर उपज ने उनके नसीब खोल दिए और 45 लाख रुपए की आवक हुई। मधु प्रजाति के खरबूज की खासियत होती है कि वह लंबे समय तक ताजा रहता है, वहीं आम खरबूज से कीमत भी प्रति किलो 2 से 3 रुपए अधिक मिलती है। मौजूदा मौसम में उन्होंने औसत 12 रुपए किलो खरबूज की बिक्री की। गुजरात में उत्पादित खरबूज की कश्मीर में अधिक मांग होने से इसे वहां भेजा जाता है।
इसके बाद उन्होंने खेती में आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल करना शुरू किया।
उन्होंने उन्नत बीज लाकर 45 बीघे जमीन में खरबूज की बुवाई की। बम्पर उपज ने उनके नसीब खोल दिए और 45 लाख रुपए की आवक हुई। मधु प्रजाति के खरबूज की खासियत होती है कि वह लंबे समय तक ताजा रहता है, वहीं आम खरबूज से कीमत भी प्रति किलो 2 से 3 रुपए अधिक मिलती है। मौजूदा मौसम में उन्होंने औसत 12 रुपए किलो खरबूज की बिक्री की। गुजरात में उत्पादित खरबूज की कश्मीर में अधिक मांग होने से इसे वहां भेजा जाता है।
जीवामृत का छिड़काव
किसान नरेश ने बताया कि उन्होंने आर्गेनिक खेती की। खेत में जीवामृत डालने के साथ उन्होंने छाछ का छिड़काव किया। साल में उन्होंने तीन बार फसल प्राप्त किया। कृषि विज्ञान केन्द्र डीसा के योगेश पवार के प्रति आभार जताते हुए उन्होंने कहा कि यहां से उन्हें भरपूर मदद और मार्गदर्शन मिला। इसके फलस्वरूप वे कुछ नया प्रयोग कर पाए। किसान ने बताया कि प्रति बीघे एक लाख रुपए की आय होती है। 17 से 18 टन की गाड़ी एक साथ भरकर दूसरे जगहों पर भेजी जाती है। कृषि विज्ञान केन्द्र के डॉ योगेश पवार ने बताया कि जैविक खेती से कृषि लागत कम होती है। प्रति बीघे 7 से 8 टन उत्पादन होता है। अभी खरबूजे के साथ पपीते की खेती भी शुरू की गई है।
किसान नरेश ने बताया कि उन्होंने आर्गेनिक खेती की। खेत में जीवामृत डालने के साथ उन्होंने छाछ का छिड़काव किया। साल में उन्होंने तीन बार फसल प्राप्त किया। कृषि विज्ञान केन्द्र डीसा के योगेश पवार के प्रति आभार जताते हुए उन्होंने कहा कि यहां से उन्हें भरपूर मदद और मार्गदर्शन मिला। इसके फलस्वरूप वे कुछ नया प्रयोग कर पाए। किसान ने बताया कि प्रति बीघे एक लाख रुपए की आय होती है। 17 से 18 टन की गाड़ी एक साथ भरकर दूसरे जगहों पर भेजी जाती है। कृषि विज्ञान केन्द्र के डॉ योगेश पवार ने बताया कि जैविक खेती से कृषि लागत कम होती है। प्रति बीघे 7 से 8 टन उत्पादन होता है। अभी खरबूजे के साथ पपीते की खेती भी शुरू की गई है।