अहमदाबाद. लाइलाज माने जाने वाले कैंसर रोग के उपचार के लिए दवाई खोजने (बनाने) की दिशा में IIT Gandhinagar भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) गांधीनगर की एक महिला प्रोफेसर को बड़ी सफलता हाथ लगी है। 5 साल की कड़ी मेहनत के बाद तैयार की गई अलग-अलग प्रकार की Medicine दवाइयों के 5 सैंपल लैब परीक्षण में बेहतर पाए गए हैं। इतना ही नहीं, इन दवाइयों के पशुओं पर उपयोग करने के दौरान भी उत्साहजनक परिणाम सामने आए हैं । इससे कैंसर के रोग के उपचार की प्रभावी दवाई तैयार करने की आस बंधी है।
इन दवाईयों के sample सैम्पल तैयार करने वालीं प्रो. सिवप्रिया किरूबाकरण ने बताया कि भारत में ही एक दवाई Develop विकसित करने (बनाने) का उनका सपना है। उनके इस सपने के पूरे होने की दिशा में उन्हें सफलता हाथ लगी है,क्योंकि 5 साल की कड़ी मेहनत के बाद उन्हें 5 ऐसी दवाइयों के सैंपल बनाने में कामयाबी मिली है, जो कैंसर रोग के उपचार के लिए काफी प्रभावी दिखाई दे रहे हैं। प्रयोगशाला के परीक्षण में इन दवाइयों के सैंपल की सकारात्मक रिपोर्ट आई है। साथ ही पशुओं पर ट्रायल के दौरान भी काफी उत्साहजनक परिणाम मिले हैं। हालांकि अभी इस दवाई का क्लीनिकल ट्रायल होना बाकी है ,लेकिन जिस प्रकार के परिणाम लैब परीक्षण और पशुओं पर ट्रायल के दौरान मिले हैं, उससे इस बात की उन्हें पूरी उम्मीद है कि दवाई के सैंपल क्लीनिकल ट्रायल के दौरान भी कैंसर रोग के उपचार की दिशा में काफी कारगर साबित होंगे। बहुत जल्द कैंसर की दवाई खोजने (बनाने) में उन्हें सफलता हाथ लग सकती है।
प्रोफेसर सिवप्रिया बताती हैं कि 5 वर्षों में उनकी लैब में कुल 120 अलग-अलग दवाई के सैम्पल तैयार किए गए हैं। इन सैम्पल का उपयोग लैब के प्रयोग के बाद चूहे एवं श्वान जैसे पशुओं पर ट्रायल किया गया। इसमें 5 बेहतर रिजल्ट वाले सैम्पल को चिन्हित करने में सफलता मिली है, जो चूहे और श्वान में कैंसर रोग के उपचार में कारगर साबित होते जान पड़ते हैं। विशेषकर ब्रेस्ट कैंसर और पैंक्रियाज कैंसर के उपचार में ज्यादा असरदार हैं।
प्रोफेसर बताती हैं कि उन्होंने अपनी इस शोध के लिए भारतीय पेटेंट ऑफिस में पेटेंट भी फाइल किया है। इस शोध के लिए डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (डीएसटी) की ओर से रामानुज फेलोशिप मिली है। इसके अलावा आईआईटी गांधीनगर ने भी ग्रांट दी है। साथ ही साइंस इंजीनियरिंग रिसर्च बोर्ड (एसईआरबी) की ओर से भी ग्रांट मिली है। इसके अलावा इस शोध में उनके शोधार्थी विद्यार्थी अल्ताफ शेख, श्री माधवी, रश्मि, सुगाथा की भी अहम भूमिका रही है।
इन दवाईयों के sample सैम्पल तैयार करने वालीं प्रो. सिवप्रिया किरूबाकरण ने बताया कि भारत में ही एक दवाई Develop विकसित करने (बनाने) का उनका सपना है। उनके इस सपने के पूरे होने की दिशा में उन्हें सफलता हाथ लगी है,क्योंकि 5 साल की कड़ी मेहनत के बाद उन्हें 5 ऐसी दवाइयों के सैंपल बनाने में कामयाबी मिली है, जो कैंसर रोग के उपचार के लिए काफी प्रभावी दिखाई दे रहे हैं। प्रयोगशाला के परीक्षण में इन दवाइयों के सैंपल की सकारात्मक रिपोर्ट आई है। साथ ही पशुओं पर ट्रायल के दौरान भी काफी उत्साहजनक परिणाम मिले हैं। हालांकि अभी इस दवाई का क्लीनिकल ट्रायल होना बाकी है ,लेकिन जिस प्रकार के परिणाम लैब परीक्षण और पशुओं पर ट्रायल के दौरान मिले हैं, उससे इस बात की उन्हें पूरी उम्मीद है कि दवाई के सैंपल क्लीनिकल ट्रायल के दौरान भी कैंसर रोग के उपचार की दिशा में काफी कारगर साबित होंगे। बहुत जल्द कैंसर की दवाई खोजने (बनाने) में उन्हें सफलता हाथ लग सकती है।
प्रोफेसर सिवप्रिया बताती हैं कि 5 वर्षों में उनकी लैब में कुल 120 अलग-अलग दवाई के सैम्पल तैयार किए गए हैं। इन सैम्पल का उपयोग लैब के प्रयोग के बाद चूहे एवं श्वान जैसे पशुओं पर ट्रायल किया गया। इसमें 5 बेहतर रिजल्ट वाले सैम्पल को चिन्हित करने में सफलता मिली है, जो चूहे और श्वान में कैंसर रोग के उपचार में कारगर साबित होते जान पड़ते हैं। विशेषकर ब्रेस्ट कैंसर और पैंक्रियाज कैंसर के उपचार में ज्यादा असरदार हैं।
प्रोफेसर बताती हैं कि उन्होंने अपनी इस शोध के लिए भारतीय पेटेंट ऑफिस में पेटेंट भी फाइल किया है। इस शोध के लिए डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (डीएसटी) की ओर से रामानुज फेलोशिप मिली है। इसके अलावा आईआईटी गांधीनगर ने भी ग्रांट दी है। साथ ही साइंस इंजीनियरिंग रिसर्च बोर्ड (एसईआरबी) की ओर से भी ग्रांट मिली है। इसके अलावा इस शोध में उनके शोधार्थी विद्यार्थी अल्ताफ शेख, श्री माधवी, रश्मि, सुगाथा की भी अहम भूमिका रही है।
ये है विशेषता
कैंसर के उपचार में कीमोथेरेपी (केमिकल से ट्रीटमेंट) और रेडियोथैरेपी (रेडिएशन देकर उपचार) देना जरूरी है। इससे कैंसर कोशिकाओं (सेल) के डीएनए नष्ट होते हैं, लेकिन अभी साथ में सामान्य कोशिकाओं के डीएनए भी नष्ट हो जाते हैं। कैनिस प्रोटीन डीएनए की फिर से मरम्मत कर देता है। इस दौरान वो कैंसर कोशिकाओं के डीएनए को भी फिर से मरम्मत कर देता है। इससे अभी तक कैंसर खत्म करने में हमें सफलता नहीं मिल रही है। लेकिन शोध कर जिन दवाई के 5 सैम्पल तैयार किए हैं उनकी सैम्पल की मदद से कैंसर कोशिकाओं के डीएनए को मरम्मत करने से कैनिस प्रोटीन, एटीआर/ एटीएम को रोका जा सकता है। ये दवाई के सैम्पल कैंसर कोशिकाओं के डीएनए को प्रोटीन को मरम्मत नहीं करने देते हैं, जिससे कैंसर कोशिकाओं के डीएनए नष्ट हो जाएंगे, जो इसके उपचार में सबसे जरूरी हैं। जबकि अच्छी कोशिकाओं के डीएनए की मरम्मत की जा सकेगी।
कैंसर के उपचार में कीमोथेरेपी (केमिकल से ट्रीटमेंट) और रेडियोथैरेपी (रेडिएशन देकर उपचार) देना जरूरी है। इससे कैंसर कोशिकाओं (सेल) के डीएनए नष्ट होते हैं, लेकिन अभी साथ में सामान्य कोशिकाओं के डीएनए भी नष्ट हो जाते हैं। कैनिस प्रोटीन डीएनए की फिर से मरम्मत कर देता है। इस दौरान वो कैंसर कोशिकाओं के डीएनए को भी फिर से मरम्मत कर देता है। इससे अभी तक कैंसर खत्म करने में हमें सफलता नहीं मिल रही है। लेकिन शोध कर जिन दवाई के 5 सैम्पल तैयार किए हैं उनकी सैम्पल की मदद से कैंसर कोशिकाओं के डीएनए को मरम्मत करने से कैनिस प्रोटीन, एटीआर/ एटीएम को रोका जा सकता है। ये दवाई के सैम्पल कैंसर कोशिकाओं के डीएनए को प्रोटीन को मरम्मत नहीं करने देते हैं, जिससे कैंसर कोशिकाओं के डीएनए नष्ट हो जाएंगे, जो इसके उपचार में सबसे जरूरी हैं। जबकि अच्छी कोशिकाओं के डीएनए की मरम्मत की जा सकेगी।
चूहे व श्वान पर हुए हैं प्रयोग
इस दवाई के जरिए किए गए चूहे व श्वान जैसे पशुओं पर ट्रायल में शरीर के कुछ हिस्से में इसका प्रयोग करने पर उत्साहवर्धक परिणाम मिले हैं। अन्य हिस्सों एवं क्लीनिकल ट्रायल बाकी है जिसमें परिणाम बेहतर मिलने की उम्मीद बंधी है।
प्रोफेसर सिवप्रिया, आईआईटी-गांधीनगर
इस दवाई के जरिए किए गए चूहे व श्वान जैसे पशुओं पर ट्रायल में शरीर के कुछ हिस्से में इसका प्रयोग करने पर उत्साहवर्धक परिणाम मिले हैं। अन्य हिस्सों एवं क्लीनिकल ट्रायल बाकी है जिसमें परिणाम बेहतर मिलने की उम्मीद बंधी है।
प्रोफेसर सिवप्रिया, आईआईटी-गांधीनगर