उन्होंने बताया कि नारकोटिक्स संबंधी दवा का उपयोग व संग्रह के लिए रिकॉग्नाइज्ड मेडिकल इंस्टीट्यूशन (आरएमआई) की जरूरत होती है, जिसे फूड एवं ड्रग्स कंट्रोल एडमिनिस्ट्रेशन की ओर से दिया जाता है। मरीजों को इस तरह की दवाई दिए जाने के लिए चिकित्सक विशेष प्रकार से प्रशिक्षित किए जाते हैं। मेडिकल यूज ऑफ एसेंशियल नारकोटिक्स ड्रग या पेलिएटिव केयर का प्रशिक्षण लेेने वाले चिकित्सक ही रजिस्टर्ड मेडिकल प्रेक्टिशनर (आरएमपी) बन सकते हैं। जीसीआरआरई की ओर से अब तक 152 चिकित्सकों को इस तरह का प्रशिक्षण दिया है। ये चिकित्सक विविध अस्पतालों में कार्यरत हैं।
कैंसर के अलावा इन मरीजों को भी होती है जरूरत
उन्होंने बताया कि कैंसर के मरीजों के अलावा अन्य असाध्य रोगों से पीडि़त मरीजों को भी यह दवाई दी जाती है। जिसमें फेफड़े, हृदय की बीमारी के चलते सांस लेने में दिक्कत वाले मरीज शामिल हैं।तीन हजार से अधिक मरीजों को होम केयर सेवा का मिला लाभ अस्पताल की उप निदेशक डॉ. प्रीति संघवी के अनुसार कैंसर के कारण गंभीर अवस्था में पहुंचे मरीजों की क्वालिटी ऑफ लाइफ में सुधार करने के लिए जीसीआरआई में होम केयर सेवा भी कार्यरत है। इस सेवा का लाभ लेने वाले ज्यादातर मरीज वे हैं जिनकी बीमारी को तो ठीक नहीं किया जा सकता है लेकिन उनके शेष जीवन को पीड़ा मुक्त करने के प्रयास किए जाते हैं। डॉ. प्रीति के अनुसार वर्ष 2013 से अब तक 3000 से अधिक मरीजों को इस सेवा का लाभ मिला है। पिछले वर्ष जीसीआरआई में 24875 मरीजों को पेलिएटिव केयर तथा 335 मरीजों को होम केयर सेवा का लाभ मिला है। इसमें भी कई मरीजों को यह दवाई देनी पड़ती है।
40 किलोमीटर के दायरे तक मिलता है सेवा का लाभ
जीसीआरआई के डॉ. आनंद शाह के अनुसार इस वर्ष अब तक साढ़े तीन सौ से अधिक मरीजों को होम केयर सेवा का लाभ मिला है। होम केयर ऐसी अनूठी सेवा है जिसमें चिकित्सकों की टीम गंभीर मरीजों के घर जाकर उपचार करती है। 40 किलोमीटर के दायरे में मरीज के उपचार व अन्य सेवाएं दी जाती हैं। टीम में पेलिएटिव केयर डॉक्टर के अलावा नर्स, काउंसलर, डायटिशियन और सामाजिक कार्यकर्ता होते हैं। मानसिक और सामाजिक सपोर्ट भी देती है।