अहमदाबाद. बीते जमाने की जानी-मानी अभिनेत्री आशा पारेख को वर्ष 2020 के दादा साहेब फाल्के पुरस्कार देने की घोषणा की गई है। ऐसा पहली बार है जब किसी गुजराती को फिल्म से जुड़ा यह सबसे श्रेष्ठ सम्मान मिलेगा। 79 वर्षीय आशा पारेख का जन्म गुजराती जैन परिवार में हुआ था। मुंबई में जन्मी पारेख की माता सुधा उर्फ सलमा पारेख बोहरा मुस्लिम थीं वहीं उनके पिता का नाम बचूभाई पारेख था।
‘दिल देके देखो’, ‘फिर वही दिल लाया हूं’, ‘जब प्यार किसी से होता है’, ‘तीसरी मंजिल’, ‘दो बदन’, आन मिलो सजना उपकार, मेरा गांव मेरा देश ‘मैं तुलसी तेरे आंगन’ की जैसी कई बेहतरीन फिल्मों में काम कर चुकीं आशा पारेख ने करियर के शीर्ष पर रहने के दौरान तीन गुजराती फिल्मों में काम किया था। इनमेंं 1963 में आई फिल्म ‘अखंड सौभाग्यवती’ काफी हिट हुई थी। इसके लिए उन्हें श्रेष्ठ अभिनेत्री का गुजरात राज्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। साथ ही उन्होंने फिल्म ‘कुलवध’ू व ‘मां ना आंसू’ में भी अभिनय किया था। वर्ष 2006 में उन्हें गुजराती एसोसिएशन ऑफ नॉर्थ अमरीका (जीएएनए) के पहले इंटरनेशनल गुजराती कन्वेंशन में लाइफ टाइम एचीवमेंट अवार्ड दिया गया था।
‘दिल देके देखो’, ‘फिर वही दिल लाया हूं’, ‘जब प्यार किसी से होता है’, ‘तीसरी मंजिल’, ‘दो बदन’, आन मिलो सजना उपकार, मेरा गांव मेरा देश ‘मैं तुलसी तेरे आंगन’ की जैसी कई बेहतरीन फिल्मों में काम कर चुकीं आशा पारेख ने करियर के शीर्ष पर रहने के दौरान तीन गुजराती फिल्मों में काम किया था। इनमेंं 1963 में आई फिल्म ‘अखंड सौभाग्यवती’ काफी हिट हुई थी। इसके लिए उन्हें श्रेष्ठ अभिनेत्री का गुजरात राज्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। साथ ही उन्होंने फिल्म ‘कुलवध’ू व ‘मां ना आंसू’ में भी अभिनय किया था। वर्ष 2006 में उन्हें गुजराती एसोसिएशन ऑफ नॉर्थ अमरीका (जीएएनए) के पहले इंटरनेशनल गुजराती कन्वेंशन में लाइफ टाइम एचीवमेंट अवार्ड दिया गया था।
चौलादेवी कथानक पर नृत्य से की थी शिव वंदना सौराष्ट्र मूल के आशा पारेख 50 के दशक में द्वादश ज्योतिर्लिंगों में शामिल सोमनाथ के दर्शन को आई थीं। तब उन्होंने चौलादेवी कथानक पर नृत्य कर शिव वंदना की थी।