पिता के मन में जन्मा बेटे को क्रिकेटर बनाने का सपना
राजस्थान के गंगानगर जिले के एक छोटे से कस्बे सूरतगढ़ में रहने के दौरान दीपक चाहर (Deepak Chahar) के पिता लोकन्द्र चाहर के दिल में बेटे को क्रिकेटर बनाने के सपने ने आकार लेना शुरू किया। उस समय लोकेन्द्र चाहर की तैनाती वायु सेना के सार्जेंट के रूप में वहां पर थी। लोकेन्द्र खुद भी क्रिकेट के शौकीन रहे हैं, लेकिन परिस्थितियों के चलते बड़े स्तर पर खेल नहीं सके। इसलिए उन्होंने ये सपना अपने बेटे के लिए देखा। वे चाहते थे कि दीपक देश के लिए क्रिकेट खेले।
राजस्थान के गंगानगर जिले के एक छोटे से कस्बे सूरतगढ़ में रहने के दौरान दीपक चाहर (Deepak Chahar) के पिता लोकन्द्र चाहर के दिल में बेटे को क्रिकेटर बनाने के सपने ने आकार लेना शुरू किया। उस समय लोकेन्द्र चाहर की तैनाती वायु सेना के सार्जेंट के रूप में वहां पर थी। लोकेन्द्र खुद भी क्रिकेट के शौकीन रहे हैं, लेकिन परिस्थितियों के चलते बड़े स्तर पर खेल नहीं सके। इसलिए उन्होंने ये सपना अपने बेटे के लिए देखा। वे चाहते थे कि दीपक देश के लिए क्रिकेट खेले।
एयरफोर्स कॉम्प्लेक्स में ही शुरू कराया अभ्यास
बेटे को तैयार करने के लिए लोकेन्द्र ने एयर फोर्स कॉम्पलेक्स में दीपक के खेलने की व्यवस्था की। उस दौरान उनके कुछ साथी जो क्रिकेट बड़े स्तर पर खेल चुके थे व बारीकियों को बेहतर तरीके से समझते थे, वे वहां आते और दीपक के साथ क्रिकेट खेलते। दीपक उस समय गेंदबाजी करते थे। उस समय दीपक की उम्र लगभग 12 साल थी। लोकेन्द्र उस समय दिन में काम करते और रात में क्रिकेट का अभ्यास कराते थे। इसके लिए वे पैसों की भी परवाह नहीं करते थे। अपने बेटे के लिए वे गेंद लेने पंजाब और मेरठ जाते थे और हर तरह की गेंद खरीदते थे ताकि अभ्यास में कोई कमी न रहे। इन सबमें कम से कम 8 से 10 हजार रुपए मासिक खर्च होते थे।
बेटे को तैयार करने के लिए लोकेन्द्र ने एयर फोर्स कॉम्पलेक्स में दीपक के खेलने की व्यवस्था की। उस दौरान उनके कुछ साथी जो क्रिकेट बड़े स्तर पर खेल चुके थे व बारीकियों को बेहतर तरीके से समझते थे, वे वहां आते और दीपक के साथ क्रिकेट खेलते। दीपक उस समय गेंदबाजी करते थे। उस समय दीपक की उम्र लगभग 12 साल थी। लोकेन्द्र उस समय दिन में काम करते और रात में क्रिकेट का अभ्यास कराते थे। इसके लिए वे पैसों की भी परवाह नहीं करते थे। अपने बेटे के लिए वे गेंद लेने पंजाब और मेरठ जाते थे और हर तरह की गेंद खरीदते थे ताकि अभ्यास में कोई कमी न रहे। इन सबमें कम से कम 8 से 10 हजार रुपए मासिक खर्च होते थे।
500 गेंद फेंकने का अभ्यास कर सीखा स्विंग
क्रिकेट के शौकीन होने के नाते लोकेन्द्र को अंदाजा था कि स्विंग का इसमें अहम रोल होता है। लिहाजा वे इस पर खास फोकस करते थे। उस समय दीपक क्रीज पर खड़े होकर करीब 500 गेंद अपनी कलाइयों का प्रयोग कर फेंकते थे। लोकेन्द्र स्टंप्स के पीछे खड़े रहते। अभ्यास करते करते दीपक स्विंग करना सीख गए। इसके बाद करीब दो साल तक उनके नियंत्रण और एक्युरेसी पर काम किया गया। कुछ समय बाद लोकेन्द्र का ट्रांसफर हो गया। लेकिन वे ज्यादा दूर नहीं जाना चाहते थे, इसलिए नौकरी छोड़कर परिवार समेत वापस आगरा आ गए और यहां क्रिकेट की अकादमी शुरू की।
क्रिकेट के शौकीन होने के नाते लोकेन्द्र को अंदाजा था कि स्विंग का इसमें अहम रोल होता है। लिहाजा वे इस पर खास फोकस करते थे। उस समय दीपक क्रीज पर खड़े होकर करीब 500 गेंद अपनी कलाइयों का प्रयोग कर फेंकते थे। लोकेन्द्र स्टंप्स के पीछे खड़े रहते। अभ्यास करते करते दीपक स्विंग करना सीख गए। इसके बाद करीब दो साल तक उनके नियंत्रण और एक्युरेसी पर काम किया गया। कुछ समय बाद लोकेन्द्र का ट्रांसफर हो गया। लेकिन वे ज्यादा दूर नहीं जाना चाहते थे, इसलिए नौकरी छोड़कर परिवार समेत वापस आगरा आ गए और यहां क्रिकेट की अकादमी शुरू की।
दीपक की सलाह पर राहुल बने लेग स्पिनर
कुछ समय बाद दीपक का चयन राजस्थान में अंडर 15 के लिए हो गया। दीपक को देखकर उनके चचेरे भाई राहुल चाहर (Rahul Chahar) के मन में भी तेज गेंदबाज बनने का सपना पनपने लगा। लेकिन दीपक ने अपने पिता को सलाह दी कि वे राहुल को लेग स्पिनर बनाएं। बेटे की सलाह पर लोकेन्द्र ने भतीजे को बतौर लेग स्पिनर तैयार करना शुरू किया। आखिरकार इस सलाह ने काम किया और राहुल का भी क्रिकेट की दुनिया में नाम होना शुरू हो गया।
कुछ समय बाद दीपक का चयन राजस्थान में अंडर 15 के लिए हो गया। दीपक को देखकर उनके चचेरे भाई राहुल चाहर (Rahul Chahar) के मन में भी तेज गेंदबाज बनने का सपना पनपने लगा। लेकिन दीपक ने अपने पिता को सलाह दी कि वे राहुल को लेग स्पिनर बनाएं। बेटे की सलाह पर लोकेन्द्र ने भतीजे को बतौर लेग स्पिनर तैयार करना शुरू किया। आखिरकार इस सलाह ने काम किया और राहुल का भी क्रिकेट की दुनिया में नाम होना शुरू हो गया।
फिटनेस पर पूरा फोकस
दीपक और राहुल दोनों का पढ़ाई में ज्यादा मन नहीं लगता था। दीपक ने आठवीं के बाद और राहुल ने चौथी के बाद रेग्युलर स्कूल की पढ़ाई नहीं की। उनका पूरा फोकस अपनी फिटनेस पर रहता था। 3 से 4 घंटे दीपक की जिम और स्विमिंग वगैरह फिटनेस एक्सरसाइज चलती थी। लेकिन राहुल का शरीर तब कमजोर था। अपने शरीर को फिट बनाने के लिए राहुल 50-60 फीट गहरे पानी के टैंक की सीढ़ियां उतरते-चढ़ते थे। टायर पुलिंग, साइकलिंग के साथ-साथ उसने कुल्हाड़ी से लकड़ियां भी काटते थे।
दीपक और राहुल दोनों का पढ़ाई में ज्यादा मन नहीं लगता था। दीपक ने आठवीं के बाद और राहुल ने चौथी के बाद रेग्युलर स्कूल की पढ़ाई नहीं की। उनका पूरा फोकस अपनी फिटनेस पर रहता था। 3 से 4 घंटे दीपक की जिम और स्विमिंग वगैरह फिटनेस एक्सरसाइज चलती थी। लेकिन राहुल का शरीर तब कमजोर था। अपने शरीर को फिट बनाने के लिए राहुल 50-60 फीट गहरे पानी के टैंक की सीढ़ियां उतरते-चढ़ते थे। टायर पुलिंग, साइकलिंग के साथ-साथ उसने कुल्हाड़ी से लकड़ियां भी काटते थे।
2010 में रणजी के लिए लिए हुआ दीपक का चयन
दीपक चाहर का वर्ष 2010 में रणजी के लिए चयन हुआ। उन्होंने उस समय हैदराबाद के खिलाफ मैच में 8 विकेट लिए। 2016 में उन्हें आईपीएल में चेन्नई सुपर किंग्स की ओर से खेलने का मौका मिला। 2018 में उन्होंने पहला वनडे देश के लिए खेला। वहीं 2017 में राहुल को भी आईपीएल के लिए खेलने का मौका मिला। 2019 में राहुल ने पूरा सीजन मुंबई इंडियंस के लिए खेला। अब दोनों भाइयों का चयन भारतीय क्रिकेट टीम के वेस्टइंडीज दौरे के लिए किया गया है। उनकी इस कामयाबी पर पूरा परिवार काफी खुश है।
दीपक चाहर का वर्ष 2010 में रणजी के लिए चयन हुआ। उन्होंने उस समय हैदराबाद के खिलाफ मैच में 8 विकेट लिए। 2016 में उन्हें आईपीएल में चेन्नई सुपर किंग्स की ओर से खेलने का मौका मिला। 2018 में उन्होंने पहला वनडे देश के लिए खेला। वहीं 2017 में राहुल को भी आईपीएल के लिए खेलने का मौका मिला। 2019 में राहुल ने पूरा सीजन मुंबई इंडियंस के लिए खेला। अब दोनों भाइयों का चयन भारतीय क्रिकेट टीम के वेस्टइंडीज दौरे के लिए किया गया है। उनकी इस कामयाबी पर पूरा परिवार काफी खुश है।