यह भी पढ़ें पानीपत फिल्म बंद कराने के बाद जाट महासभा का ऐलान- महाराजा सूरजमल की प्रतिमा स्थापित की जाएगी, देखें वीडियो तिलपत का युद्ध औरंगजेब ने किसानों पर अनेक प्रकार के कर लगा रखे थे। हिन्दुओं को इस्लाम धर्म अपनाने के लिए विवश किया जा रहा था। ऐसे में तिलपत गढ़ी में जन्मे गोकुल सिंह ने आवाज बुलंद की। उन्होंने मुगल शासक को किसी भी प्रकार की मालगुजारी देने से मना कर दिया। तिलमिलाए औरंगजेब के आदेश पर मुगल फौज ने तिलपत गढ़ी पर हमला कर दिया। 10 मई 1666 को तिलपत की लड़ाई में वीर गोकुला जाट ने औरंगजेब को हरा दिया। इसके बाद पाँच माह तक भयंकर युद्ध होते रहे। मुगलों में गोकुल सिंह का वीरता और युद्ध संचालन का आतंक बैठ गया। अंत में सितंबर मास में, बिल्कुल निराश होकर, शफ शिकन खाँ ने गोकुलसिंह के पास संधि-प्रस्ताव भेजा। उसने कहा कि माफी मांग लें। गोकुल सिंह ने कहा कि मैंने कोई अपराध नहीं किया है, इससिए माफी क्यों मागूं। इससे औरंगजेब तिलमिला गया। वह 28 नवम्बर, 1669 को दिल्ली से मथुरा आ गया। युद्ध की तैयारिया शुरू हो गईं। दिसम्बर, 1669 के अंतिम सप्ताह में तिलपत से 20 मील दूर सिहोर में दूसरा युद्ध हुआ। मुगलों के पास तोपखाना थी, फिर भी जाट वीर लड़ते रहे। तीन दिन तक युद्ध हुआ। शाही सेना के पैर उखड़ गए। जाट जीतने ही वाले थे थे कि हसन अली खाँ के नेतृत्व में नई मुगल फौज आ गई। जाटों के पैर उखड़ गए, लेकिन वे अपने घरों की ओर भागे नहीं, तिलपत गढ़ी में आ गए। यहां फिर तीन दिन तक युद्ध चलता रहा। मुगलों की तोपों ने सबकुछ नष्ट कर दिया। गोकुल सिंह, उनके चाचा उदय सिंह और अन्य वीरों को बंदी बना लिया गया।
यह भी पढ़ें अमित शाह ने केन्द्रीय सेवाओं में जाटों को आरक्षण देने का वादा किया था, जाट महासभा ने दिलाई याद, देखें वीडियो कोतवाली के चबूतरे पर अंग-अंग काटा गया अखिल भारतीय जाट महासभा के जिलाध्यक्ष कप्तान सिंह चाहर ने बताया कि आगरा किले में औरंगजेब ने वीर गोकुला जाट ते सामने शर्त रखी कि जान की सलामती चाहते तो इस्लाम धर्म स्वीकार कर लो। गोकुल सिंह ने वीरतापूर्वक इनकार कर दिया। फिर एक जवनरी, 1670 को गोकुल सिंह, उनके चाचा उदय सिंह और अन्य को बंदी बनाकर कोतवाली के चबूतरे पर लाया गया। गोकुल सिंह को जंजीरों में जकड़ा हुआ था। उनके शरीर का एक-एक अंग काटा गया। हजारों की भीड़ के सामने यह कुकृत्य किया गया ताकि लोग डरें। इसके बाद भी उन्होंने दासता स्वीकार नहीं की, इस्लाम धर्म स्वीकार नहीं किया। उदय सिंह की तो खाल खिंचवा ली गयी, लेकिन धर्म नहीं छोड़ा। गोकुल सिंह इतने शक्तिशाली थे कि जब कोई अंग कुल्हाड़ी से काटा जाता तो रक्त के फव्वारे छूटते थे। जनता में हाहाकार मचा हुआ था, लेकिन किसी में विरोध की हिम्मत नहीं थी। आगरा में गोकुलसिंह का सिर गिरा, उधर मथुरा में केशवरायजी का मन्दिर। जहां वीर गोकुला जाट बलिदान हुए, उसी स्थान का नाम फव्वारा है। फव्वारा में मुख्य रूप से दवा बाजार है। यहीं पर कोतवाली है। गोकुला जाट का बलिदान मुगल शासन के ताबूत में अंतिम कील के रूप में सिद्ध हुआ।
यह भी पढ़ें जाटों का IQ यादवों से अधिक, इसी कारण आरक्षण के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका, देखें वीडियो कोतवाली के चबूतरे पर अंग-अंग काटा गया अखिल भारतीय जाट महासभा के जिलाध्यक्ष कप्तान सिंह चाहर ने बताया कि आगरा किले में औरंगजेब ने वीर गोकुला जाट ते सामने शर्त रखी कि जान की सलामती चाहते तो इस्लाम धर्म स्वीकार कर लो। गोकुल सिंह ने वीरतापूर्वक इनकार कर दिया। फिर एक जवनरी, 1670 को गोकुल सिंह, उनके चाचा उदय सिंह और अन्य को बंदी बनाकर कोतवाली के चबूतरे पर लाया गया। गोकुल सिंह को जंजीरों में जकड़ा हुआ था। उनके शरीर का एक-एक अंग काटा गया। हजारों की भीड़ के सामने यह कुकृत्य किया गया ताकि लोग डरें। इसके बाद भी उन्होंने दासता स्वीकार नहीं की, इस्लाम धर्म स्वीकार नहीं किया। उदय सिंह की तो खाल खिंचवा ली गयी, लेकिन धर्म नहीं छोड़ा। गोकुल सिंह इतने शक्तिशाली थे कि जब कोई अंग कुल्हाड़ी से काटा जाता तो रक्त के फव्वारे छूटते थे। जनता में हाहाकार मचा हुआ था, लेकिन किसी में विरोध की हिम्मत नहीं थी। आगरा में गोकुलसिंह का सिर गिरा, उधर मथुरा में केशवरायजी का मन्दिर। जहां वीर गोकुला जाट बलिदान हुए, उसी स्थान का नाम फव्वारा है। फव्वारा में मुख्य रूप से दवा बाजार है। यहीं पर कोतवाली है। गोकुला जाट का बलिदान मुगल शासन के ताबूत में अंतिम कील के रूप में सिद्ध हुआ।
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श्री चाहर ने बताया कि हमारे कुछ साथी फव्वारा चौक पर गोकुला जाट की प्रतिमा रख आए थे, जो उचित नहीं था। हम चाहते हैं कि वीर गोकुला जाट की प्रतिमा समारोहपूर्वक स्थापित हो। अखिल भारतीय जाट महासभा इसके लिए पूरा प्रयास करेगी। वीर गोकुला जाट का बलिदान दिवस भी मनाया जाएगा।
श्री चाहर ने बताया कि हमारे कुछ साथी फव्वारा चौक पर गोकुला जाट की प्रतिमा रख आए थे, जो उचित नहीं था। हम चाहते हैं कि वीर गोकुला जाट की प्रतिमा समारोहपूर्वक स्थापित हो। अखिल भारतीय जाट महासभा इसके लिए पूरा प्रयास करेगी। वीर गोकुला जाट का बलिदान दिवस भी मनाया जाएगा।
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धीरे धीरे लगा जगाने स्वाभिमान का पानी,
कर से कर इन्कार बगावत कर देने की ठानी।
तुम तो एक जन्म लेकर बस एक बार मरते हो
और कयामत तक कब्रों में इन्तजार करते हो
लेकिन हम तो सदा अमर हैं आत्मा नहीं मरेगी
केवल अपने देह वसन ये बार बार बदलेगी
धीरे धीरे लगा जगाने स्वाभिमान का पानी,
कर से कर इन्कार बगावत कर देने की ठानी।
तुम तो एक जन्म लेकर बस एक बार मरते हो
और कयामत तक कब्रों में इन्तजार करते हो
लेकिन हम तो सदा अमर हैं आत्मा नहीं मरेगी
केवल अपने देह वसन ये बार बार बदलेगी
कहां है तिलपत तिलपत इस समय फरीदाबाद जिले (हरियाणा) का कस्बा है। तिलपति पहले मथुरा में था। औरंगजेब के समय तिलपत गढ़ी कहलाता था। तिलपत के जमींदार थे गोकुल सिंह (गोकुला जाट)। मथुरा से छह मील दूर राया विकास खंड के गांव सिहोरा में भी गोकुल सिंह और मुगलों के बीच युद्ध हुआ था।