आगरा

औरंगजेब ने जहां वीर गोकुला जाट का अंग-अग कटवाया था, उसे आज फव्वारा कहते हैं

-मुगल शासक ने आगरा किले में इस्लाम स्वीकार करने पर जान बख्शने की शर्त रखी थी
-हर अंग काटने पर निकलती थीं रक्त की फुहारें, तब कोतवाली में हजारों लोग मौजूद थे
-हल्दीघाटी, खानवा, पानीपत की लड़ाइंया एक दिन में हो गईं, तिलपत युद्ध तीन दिन चला
-अखिल भारतीय जाट महासभा फव्वारा चौराहे पर गोकुल सिंह की प्रतिमा लगवाएगी

आगराDec 18, 2019 / 03:24 pm

Bhanu Pratap

Gokula jaat

आगरा। महाराणा प्रताप ने वर्षों तक मुगल शासक अकबर के साथ संघर्ष किया, लेकिन दासता स्वीकार नहीं की। फिर मुगलों की सत्ता को चुनौती दी छत्रपति शिवाजी महाराज ने। इसी दौरान वीर गोकुला जाट (गोकुल सिंह) ने औरंगजेब की सत्ता को हिला दिया था। वीर गोकुला जाट से निपटने के लिए औरंगजेब को स्वयं दिल्ली से चलकर मथुरा आना पड़ा था। मुगल फौज और जाटों के बीच तिलपत का युद्ध हुआ, दो तीन दिन तक चला। खानवा का युद्ध,हल्दी घाटी का युद्ध और पानीपत की तीन लड़ाइयां एक दिन में ही समाप्त हो गई थी। एक जनवरी, 1670 को औरंगजेब ने वीर गोकुला जाट की हत्या आम जनता के सामने कोतवाली के चबूतरे पर कराई। इस्लाम स्वीकार न करने पर उनका अंग-अंग काटा गया। हर अंग से खून की फुहारें निकालती थीं। इसी कारण उस स्थान का नाम फव्वारा पड़ गया। अखिल भारतीय जाट महासभा अब फव्वारे पर वीर गोकुला जाट की प्रतिमा स्थापित करने का प्रयास कर रही है। इतिहासकारों का मानना है कि गोकुल सिंह, महाराजा सूरजमल के वंशज थे। गुरु तेगबहादुर से पांच साल पहले हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए गोकुला वीर ने बलिदान दिया था।
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तिलपत का युद्ध

औरंगजेब ने किसानों पर अनेक प्रकार के कर लगा रखे थे। हिन्दुओं को इस्लाम धर्म अपनाने के लिए विवश किया जा रहा था। ऐसे में तिलपत गढ़ी में जन्मे गोकुल सिंह ने आवाज बुलंद की। उन्होंने मुगल शासक को किसी भी प्रकार की मालगुजारी देने से मना कर दिया। तिलमिलाए औरंगजेब के आदेश पर मुगल फौज ने तिलपत गढ़ी पर हमला कर दिया। 10 मई 1666 को तिलपत की लड़ाई में वीर गोकुला जाट ने औरंगजेब को हरा दिया। इसके बाद पाँच माह तक भयंकर युद्ध होते रहे। मुगलों में गोकुल सिंह का वीरता और युद्ध संचालन का आतंक बैठ गया। अंत में सितंबर मास में, बिल्कुल निराश होकर, शफ शिकन खाँ ने गोकुलसिंह के पास संधि-प्रस्ताव भेजा। उसने कहा कि माफी मांग लें। गोकुल सिंह ने कहा कि मैंने कोई अपराध नहीं किया है, इससिए माफी क्यों मागूं। इससे औरंगजेब तिलमिला गया। वह 28 नवम्बर, 1669 को दिल्ली से मथुरा आ गया। युद्ध की तैयारिया शुरू हो गईं। दिसम्बर, 1669 के अंतिम सप्ताह में तिलपत से 20 मील दूर सिहोर में दूसरा युद्ध हुआ। मुगलों के पास तोपखाना थी, फिर भी जाट वीर लड़ते रहे। तीन दिन तक युद्ध हुआ। शाही सेना के पैर उखड़ गए। जाट जीतने ही वाले थे थे कि हसन अली खाँ के नेतृत्व में नई मुगल फौज आ गई। जाटों के पैर उखड़ गए, लेकिन वे अपने घरों की ओर भागे नहीं, तिलपत गढ़ी में आ गए। यहां फिर तीन दिन तक युद्ध चलता रहा। मुगलों की तोपों ने सबकुछ नष्ट कर दिया। गोकुल सिंह, उनके चाचा उदय सिंह और अन्य वीरों को बंदी बना लिया गया।
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कोतवाली के चबूतरे पर अंग-अंग काटा गया

अखिल भारतीय जाट महासभा के जिलाध्यक्ष कप्तान सिंह चाहर ने बताया कि आगरा किले में औरंगजेब ने वीर गोकुला जाट ते सामने शर्त रखी कि जान की सलामती चाहते तो इस्लाम धर्म स्वीकार कर लो। गोकुल सिंह ने वीरतापूर्वक इनकार कर दिया। फिर एक जवनरी, 1670 को गोकुल सिंह, उनके चाचा उदय सिंह और अन्य को बंदी बनाकर कोतवाली के चबूतरे पर लाया गया। गोकुल सिंह को जंजीरों में जकड़ा हुआ था। उनके शरीर का एक-एक अंग काटा गया। हजारों की भीड़ के सामने यह कुकृत्य किया गया ताकि लोग डरें। इसके बाद भी उन्होंने दासता स्वीकार नहीं की, इस्लाम धर्म स्वीकार नहीं किया। उदय सिंह की तो खाल खिंचवा ली गयी, लेकिन धर्म नहीं छोड़ा। गोकुल सिंह इतने शक्तिशाली थे कि जब कोई अंग कुल्हाड़ी से काटा जाता तो रक्त के फव्वारे छूटते थे। जनता में हाहाकार मचा हुआ था, लेकिन किसी में विरोध की हिम्मत नहीं थी। आगरा में गोकुलसिंह का सिर गिरा, उधर मथुरा में केशवरायजी का मन्दिर। जहां वीर गोकुला जाट बलिदान हुए, उसी स्थान का नाम फव्वारा है। फव्वारा में मुख्य रूप से दवा बाजार है। यहीं पर कोतवाली है। गोकुला जाट का बलिदान मुगल शासन के ताबूत में अंतिम कील के रूप में सिद्ध हुआ।
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कोतवाली के चबूतरे पर अंग-अंग काटा गया

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प्रतिमा स्थापित करेंगे
श्री चाहर ने बताया कि हमारे कुछ साथी फव्वारा चौक पर गोकुला जाट की प्रतिमा रख आए थे, जो उचित नहीं था। हम चाहते हैं कि वीर गोकुला जाट की प्रतिमा समारोहपूर्वक स्थापित हो। अखिल भारतीय जाट महासभा इसके लिए पूरा प्रयास करेगी। वीर गोकुला जाट का बलिदान दिवस भी मनाया जाएगा।
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कवि के शब्दों में

राजस्थान के कवि बलवीर सिंह ‘करुण ‘ने अपनी पुस्तक ‘समरवीर गोकुला’ में लिखा हैँ-
धीरे धीरे लगा जगाने स्वाभिमान का पानी,
कर से कर इन्कार बगावत कर देने की ठानी।
तुम तो एक जन्म लेकर बस एक बार मरते हो
और कयामत तक कब्रों में इन्तजार करते हो
लेकिन हम तो सदा अमर हैं आत्मा नहीं मरेगी
केवल अपने देह वसन ये बार बार बदलेगी
कहां है तिलपत

तिलपत इस समय फरीदाबाद जिले (हरियाणा) का कस्बा है। तिलपति पहले मथुरा में था। औरंगजेब के समय तिलपत गढ़ी कहलाता था। तिलपत के जमींदार थे गोकुल सिंह (गोकुला जाट)। मथुरा से छह मील दूर राया विकास खंड के गांव सिहोरा में भी गोकुल सिंह और मुगलों के बीच युद्ध हुआ था।

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