सावन के महीने में हरे भरे पेड़ के नीचे झूला डालने की परंपरा महज एक परंपरा ही नहीं हैं। बल्कि ये मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य की दृष्टि से भी बहुत लाभकारी है। झूला झूलने से शरीर का एक व्यायाम तो होता ही है साथ ही ये फेफड़े, हृदय और अन्य अंगों को फायदा पहुंचाता है। अस्थि रोग विशेषज्ञ डॉ.सीपी पॉल का कहना है कि पैरों से दबाव डालकर झोटे लेने पर मांसपेशियों का व्यायाम होता है जिससे मांसपेशियों को मजबूती मिलती है।
झूले अक्सर नीम, आम, बरगद के पेड़ों पर डाले जाते हैंं। बरसात के मौसम में इन पेड़ों से आॅक्सीजन की अच्छी खासी मात्रा शरीर को मिलती है। इससे शरीर में आॅक्सीजन का स्तर बढ़ता है। वहीं बुजुर्ग इस मौमस में पेड़ों के नीचे झूला झूलते हैं तो तो मानसिक तनाव से उन्हें मुक्ति मिलती है।
एक दौर था जब झूलों पर फिल्मी गाने फिल्माए जाते थे। लेकिन, आज के इस भागदौड़ भरे जीवन में झूले खत्म होने की कगार पर हैं। अब न तो शहरों में पेड़ बचे हैं और न एकल परिवारों के दौर में ये परंपरा। झूला झूलने की परंपरा अब विलुप्त होती जा रही है।