शास्त्रीनगर की केशव शाखा का गुरुदक्षिणा कार्यक्रम राधे गार्डन, शास्त्रीपुरम (सिकंदरा, आगरा) में हुआ। मुख्य वक्ता, पूर्व प्राचार्य और संघ की प्रांतीय बौद्धिक टोली के सदस्य देवेन्द्र दुबे ने कहा कि विजयदशमी के दिन 1925 में नागपुर में संघ की स्थापना डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार ने की थी। संघ साल में छह उत्सव मनाता है। ये हैं- चैत्र प्रतिपदा पर नववर्ष, ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी को हिन्दू साम्राज्य दिनोत्सव, आषाढ़ पूर्णिमा को गुरु पूजा, श्रावण मास की पूर्णिमा को रक्षाबंधन, विजयदशमी और मकर संक्रांति। संघ के सभी उत्सव समाज को जोड़ने के लिए होते हैं। चैत्र प्रतिपदा को संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार को जन्मदिन भी है।
श्री दुबे ने कहा कि मुगलों का कार्यकाल बहुत ही क्रूर था। इतनी हत्याएं की कि जनेऊ तौले जाते थे। हर व्यक्ति भयभीत था, लेकिन हिन्दू समाज ने कभी हार नहीं मानी। वीरों की भी कमी नहीं थी। शिवाजी महाराज ने संघर्ष किया और हिन्दू साम्राज्य की स्थापना की। इसी कारण हिन्दू साम्राज्य दिनोत्सव मनाया जाता है। इस उत्सव के माध्यम से हिन्दुओं में वीरता का भाव पैदा होता है।
उन्होंने कहा कि गुरु पूजा हमारे समाज में सर्वत्र होती है। बिना गुरु की कृपा के कल्याण संभव नहीं है। गुरु के प्रति श्रद्धा का समर्पण करते हैं। संघ ने भगवा ध्वज को गुरु माना है, क्योंकि यह जीवन, बलिदान, ज्ञान और त्याग का प्रतीक है। व्यक्ति को गुरु बनाते हैं तो उसमें विकार आ जाता है। हम देखते हैं कि जिस गुरु की पूजा करते हैं, उसमें भी दोष आ जाता है। दूसरे वह नश्वर है। भगवा ध्वज नश्वर नहीं है। हमारी संस्कृति का मूल आधार ही त्याग है। हमारे समाज में त्यागी को सम्मान मिलता है, पैसे वाले को नहीं। उन्होंने तमाम उदाहरण देते हुए त्याग की महिमा बताई। स्वामी विवेकानंद ने अमेरिका में एक व्यक्ति द्वारा पूछे गए सवाल का जवाब देते हुए कहा था-अमेरिका में कोई सम्पन्न व्यक्ति घर छोड़कर भगवान को पाने के लिए जंगल जाने की बात करता है तो उसे मेंटल कहा जाता है, लेकिन हमारे यहां वह संन्यासी कहलाता है और सर्वत्र पूजनीय हो जाता है। हमारे यहां लोक कल्याण महत्वपूर्ण है।