दादाजी महाराज राधास्वामी मत के आदिकेन्द्र हजूरी भवन, पीपलमंडी में हुजूर महाराज के वार्षिक भंडारे पर आयोजित विशेष सतसंग में देश-विदेश आए श्रद्धालुओं को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा- हजूर महाराज दाता दयाल हैं। उनके सामने बैठने में हमें बहुत एहतियात रखना चाहिए। सतसंग में शोरगुल नहीं होना चाहिए। चित्त से दर्शन कीजिए मालिक के। हजूर महाराज का जो स्वरूप है, उसमें से धार निकलती है, तेज रोशनी होती है, अगर आँख होगी, तब रोशनी की परख होगी। वो आँख हो सकती है, अगर दीनता का मार्ग अपनाया जाए, ऐसा कोई काम न किया जाए जिससे सतगुरु अप्रसन्न हों। मालिक कहते हैं कि भक्ति करो, चरणों में प्रीत बढ़ाओ, लेकिन ये जब नहीं होता तो बड़ा दुख होता है। जो राधास्वामी नाम का सुमिरन करेगा, उसे नाम मिलेगा। राधास्वामी के चरण शरण में जो आया है, उसका उद्धार होगा। जहां बैठे हैं, वहां कुलमालिक राधास्वामी दयाल हैं। उनसे माफी मांगो।
दादाजी ने कहा- सत्संगी बिगड़ती हुई दुनिया में संदेश वाहक भी हैं। एनीमल कल्चर पैदा हो रही है। जो कुछ भी सारे विश्व और हमारे देश में हो रहा है, उसमें आपकी सुरक्षा का द्वार राधास्वामी दयाल हैं। किसी अबला पर अत्याचार हो रहा है, तो सतसंगी खड़े होकर तमाशा न देखते रहें। सत्संगी को निर्भीक भी होना है। हर ओर अराजकता फैली हुई है। ऐसे माहौल में अपने आचरण को मजबूत करें। प्रेम और भक्ति का संदेश जो पाया है, उसका प्रसाद रचनात्मकता में दी दीजिए। मालिक मालामाल करेंगे, लेकिन अहंकार न पालें। दुनिया में जो अशांति, अपृश्यता, अत्याचार, भ्रष्टाचार, व्यभिचार फैला हुआ है, क्या सत्संगी ऐसे काम से खुद बचेगा और दूसरों को बचाएगा, जो नैतिकता के खिलाफ है। पहले अपने आप को देखना होगा कि हम जो कर रहे हैं, वह सही है या नहीं। सुरत शब्द योग की आराधना करने वाले से कोई शक्तिशाली नहीं है। सतसंगी को राधास्वामी दयाल और अपने गुरु से डरना चाहिए। गुरु से सही बात कीजिए और उनसे शक्ति ले जाइए। जब बहक जाते हो तो गुरु का नाम याद नहीं आता है। हमारे मत के सिद्धांतों के खिलाफ हो रही करनी को रोकने में जो कुछ भी करना चाहिए, करें।
परनपुरुष पूरनधनी हजूर महाराज के चरणों में मत्था टेकना है। हजूर महाराज का आसरा हरदम है। देखना चाहिए कि आपकी जिस करनी से मालिक प्रसन्न होते हैं, उसे करने से योगी बन सकते हैं। जो उनको प्रसन्न नहीं करेगा, तो इस धाम से वंचित होकर कर्मों का भोग भोगना होगा। प्रेमाभक्ति ही हजूर महाराज की इच्छा है। मत भूलिए कि हजूर महाराज ने जगत का उत्थान किया है। ऐसी निर्मल भक्ति होनी चाहिए जैसी स्वामी जी महाराज की थी। हमारे प्रेरणादायक हजूर महाराज हैं। जब कहा है कि दीनता को अपनाइए तो हर सतसंगी को इस बात का ख्याल रखना चाहिए। सबको सुख पहुंचाइए, किसी को दुख मत दीजिए। जरा सा प्राप्त होने पर बहुत से लोगों को अहंकार हो जाता है। वो समझते हैं कि वे ही पूर्ण हैं। जो बुद्धि विलास करते हैं, जो बुद्धिमान कहलाते हैं वे समझते हैं कि उन्होंने पढ़-लिखखर ज्ञान प्राप्त कर लिया। वे नहीं जानते हैं कि सबसे पहले बुद्धि ही छीन ली जाती है, जब काम क्रोध, लोभ अंहकार का आगमन होता है। स्वामी जी महाराज ने ज्ञान भक्ति का खंडन किया है। भक्ति मार्ग को सही ठहराया है। हर सतसंगी का कर्तव्य है कि कोई भी काम करते से पहले तौलना चाहिए कि सही है या नहीं। इसका निर्णय स्वयं करें। ऐसा कोई काम न करें, जिससे मालिक अप्रसन्न हों। कुछ काम गुरु पर छोड़ दीजिए।
दादाजी ने फरमाया- आजकल सतसंग में रहते हुए भी अपनी करनी पर ध्यान नहीं है। वही काम करते हैं, जिसमें गुरु को तकलीफ होती है या जिसे गुरु पसंद नहीं करते हैं। इस कदर वातावरण में अशुद्धि आ गई है कि न नाम का सुमिरन है, न अंतर में भजन है, न सतसंग में रुचि है, न गुरु का डर है। कुल मालिक राधास्वामी दयाल का पता नहीं है और न ही पता करने का शौक है। कितने अफसोस की बात है कि ऱाधास्वामी मत के सिद्धातों को जानते हुए और हुजूर महाराज की प्रेमाभक्ति को समझते हुए ऐसे काम न करें जो गुरु को पसंद नहीं हैं।
उन्होंने कहा- हम जानते हैं कि दुनिया झूठी है, लेकिन राधास्वामी दयाल सच्चे हैं, राधास्वामी नाम सच्चा है। उनसे सच्चाई से बरतना होगा। बार-बार वो काम क्यों करते हैं, जिससे नीचा हो। मालिक की रहमत से अपने आपको क्यों वंचित करते हो। गुरु का हाथ पकड़ोगे तो पार हो जाओगे, मन के कहने से चलोगे तो घायल हो जाओगे। राधास्वामी मत में कोई भी काम जोर जबरदस्ती से नहीं कराया जा सकता है। समझाकर कराया जाता है। एक बात समझ लें कि जो जीव शरण में आ गए हैं, वे मनमानी नहीं कर सकते हैं। हुजूर महाराज नाराज नहीं होते हैं। हजूर महाराज जब सतसंग फरमाते थे, सतसंगियों के किस्से सुनते थे। सतसंगी एकदूसरे की शिकायत करते थे। इसके बाद हजूर महाराज ने जो दृष्टि डाली, तो सतसंगी गलती मान लेते थे।