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जन्माष्टमी पर द्वितीय जन्मशताब्दी असल में राधास्वामी मत के प्रवर्तक परमपुरुष पूरनधनी स्वामी जी महाराज का तीन सितम्बर को जन्माष्टमी पर द्वितीय जन्मशताब्दी है। स्वामी बाग में इसके लिए समाध का लंबित कार्य पूरा कर लिया गया है। पिछले दिनों स्वर्ण कलश भी स्थापित कर दिया गया। स्वामी जी महाराज का द्वितीय जन्मशताब्दी समारोह हजूरी भवन, पीपलमंडी, आगरा में भी धूमधाम से मनाया जाएगा। इस निमित्त दुनियाभर के हजारों सत्संगी हजूरी भवन में आना शुरू हो गए हैं।
जन्माष्टमी पर द्वितीय जन्मशताब्दी असल में राधास्वामी मत के प्रवर्तक परमपुरुष पूरनधनी स्वामी जी महाराज का तीन सितम्बर को जन्माष्टमी पर द्वितीय जन्मशताब्दी है। स्वामी बाग में इसके लिए समाध का लंबित कार्य पूरा कर लिया गया है। पिछले दिनों स्वर्ण कलश भी स्थापित कर दिया गया। स्वामी जी महाराज का द्वितीय जन्मशताब्दी समारोह हजूरी भवन, पीपलमंडी, आगरा में भी धूमधाम से मनाया जाएगा। इस निमित्त दुनियाभर के हजारों सत्संगी हजूरी भवन में आना शुरू हो गए हैं।
यह भी पढ़ें राधास्वामी मत के प्रवर्तक स्वामीजी महाराज की द्वितीय जन्मशताब्दीः हजूरी भवन में दुनियाभर से आ रहे सत्संगी, देखें वीडियो 1887 से लगातार सत्संग हो रहा कार्यक्रम की जानकारी देने के लिए दादाजी महाराज ने हजूरी भवन में पत्रकारों को बुलाया। उन्होंने जानकारी दी कि स्वामी बाग में स्वामीजी महाराज की पवित्र समाध है। हजूरी भवन में हजूर महाराज की पवित्र समाध है। हजूर महाराज ने अंतिम समय में जहां सत्संग किया था, वहीं पर उनकी समाध है। जब से हजूर महाराज ने यहां रहना शुरू किया, तभी से दिन में दो बार सत्संग हो रहा है। इसमें कोई व्यवधान नहीं है। 1887 से निरंतर सत्संग होता है। तीसरा सत्संग मैं अपने कमरे में करता हूं।
यह भी पढ़ें स्वामीजी महाराज की द्वितीय जन्मशताब्दी समारोह, यहां देखें पूरा कार्यक्रम हजूर महाराज ने बनवाई स्वामी जी महाराज की समाध दादाजी महाराज ने बताया कि स्वामी जी महाराज का जन्म और निजधाम जाना पन्नी गली, आगरा में हुआ। उनकी समाध स्वामी बाग में बड़े सुंदर ढंग से बनाई गई है। समाध निर्माण का विचार परमपुरुष पूरनधनी हजूर महाराज का है। राधास्वामी मत में समाध निर्माण इसके बाद शुरू हुआ। हजूर महाराज ने स्वामीजी महाराज के निज धाम जाने के बाद समाध का निर्माण कराया, जहां अब वृहद तरीके से बनी है। पहले यह लाल पत्थर की थी। अब संगमरमर की बनी है। हम लोगों के लिए मत्था टेकने और सतसंग करने के लिए सबसे पवित्र स्थान है।