सूरज तिवारी का जुनूनः आगरा को ताजमहल ही नहीं, फिल्म निर्माण के लिए भी जाना जाएगा
-फिल्मों के माध्यम से आगरा को समृद्ध बनाने का सपना पूरा करेंगे
-ग्लोबल ताज इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल कराकर एक बार फिर चर्चा में
-फीचर फिल्म ‘आय एम जीरो’ को मिले 10 राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार
ताज, किला, सीकरी में ही शूटिंग जरूरी नहीं, आगरा में शानदार लोकेशन
आगरा। सूरज तिवारी। फिल्म निर्देशक (Film Director), प्रोड्यूसर (Producer), कलाकार (Artist), कहानी लेखक (Writer), गीतकार (Song writer), डांसर (Dancer), क्रिकेटर (cricketer) .. और भी बहुत कुछ। आप सूरज तिवारी (Suraj tiwari) से मिलिए। प्रथम दृष्टया लगता ही नहीं है कि इस युवा में इतनी सारी खूबियां होंगी। जब बात कीजिए तो पूरा पिटारा खोल देते हैं। उनका एक पांव मायानगरी मुंबई (Mumbai) में तो दूसरा ताजमहल (Tajmahal) के शहर आगरा (Agra) में रहता है। इसलिए कि वे आगरा के हैं। वे आगरा को फिल्म इंडस्ट्री (Film industry) के माध्यम से समृद्ध बनाना चाहते हैं। यहां के चाय वाले से लेकर प्रोड्यूसर तक को काम देना चाहते हैं। कलाकारों को तृप्त करना चाहते हैं। इसके लिए आगरा में रामोजी फिल्म सिटी, हैदराबाद (Ramoj film lm City, Hyderabad) और नोएडा फिल्म सिटी (Noida Film City) जैसा फिल्म स्टूडियो (Studio) स्थापित कराने के अभियान में रत हैं। उत्तर प्रदेश सरकार (UP government) से पत्राचार कर रहे हैं। उनकी पहली फीचर फिल्म (Feature Film) ‘आय एम जीरो’ को देश-विदेश में इतनी लोकप्रियता मिली कि 10 अवॉर्ड जीते। इस बार पत्रिका के विशेष कार्यक्रम ‘परसन ऑफ द वीक’ (Person of the Week) में हमने सूरज तिवारी से जाना उनकी फिल्म यात्रा, आगरा के उत्थान और भविष्य की योजनाओं के बारे में।
यह भी पढ़ेंSocial Media पर साहित्यिक क्रांति के जनक कुंवर अनुराग, कर रहे अनूठे काम, देखें वीडियोआगरा को केन्द्र बनाकर कर रहे काम सूरज तिवारी, ग्लैमर लाइव फिलम्स के निदेशक हैं। इंडियन फिल्म एंड टेलीविजिन डायरेक्टर्स एसोसिएशन, स्क्रीन राइटर्स एसोसिएशन, वेस्टर्न इंडिया फिल्म टीवी एसोसिएशन के सदस्य हैं। फैडरेशन ऑफ ईवेंट मैनेजमेंट इंडस्ट्रीज के अध्यक्ष हैं। रिद्म और आरोही संस्था के माध्यम से समाजसेवा भी करते हैं। उन्होंने इंटरनेशल ताज फिल्म फेस्टिवल करके आगरा को नई पहचान दी। उन्हें आशा है कि आगरा सिर्फ ताजमहल के नाम से नहीं, फिल्म निर्माण के लिए भी पहचाना जाएगा। उनकी बात को इस समय लोग हल्के में लेते हैं, उनका जुनून देखकर लगता है कि कुछ होकर रहेगा। उन्हें इस क्षेत्र में 25 साल हो गए हैं। 2005 से आगरा को केन्द्र बनाकर काम कर रहे हैं।
यह भी पढ़ें दयालुता का भाव जगाने के लिए अभियान चला रहे डॉ. अरुण प्रताप सिकरवारअब तक की कुछ उपलब्धियां सूरज तिवारी ने आगरा में डाक्यूमेंट्री ‘भिक्षा से शिक्षा की ओर’ बनाई, जिसे तीन अवॉर्ड मिले। इससे आगे काम करने का साहस आया। ‘यमुना तो फिर भी मैली’ वृत्तचित्र (डॉक्यूमेंटरी) अमेरिका में स्क्रीन (प्रदर्शित) हुई, जिसे बहुत सराहा गया। अलबम ‘जय हो बांके बिहारी’ बनाया, जिसके गीत लिखे। रवीन्द्र जैन, अनूप जलौटा और लखवीर सिंह लक्खा ने स्वर दिया। वीनस म्यूजिक कंपनी ने अलबम को रिलीज किया था। अनेक विज्ञापन फिल्में बनाईं हैं। अमन वर्मा और पायल रोहतगी को लेकर भी विज्ञापन फिल्म बना चुके हैं। म्यूजिक वीडियो बहुत बनाए हैं। थाईलैंड में दो म्यूजिक वीडियो शूट कराए, जिनमें क्रिएटिव डायरेक्टर थे। फीचर फिल्म आय एम जीरो का निर्माण किया। इस फिल्म को 10 नेशनल और इंटरनेशनल अवॉर्ड मिले। पूरे देश में समीक्षा हुई। बेस्ट डेब्यू डायरेक्टर, बेस्ट स्टोरी, फेस्टिवल मेंशन अवॉर्ड भी मिला। यह फिल्म गोवा में एनएफडीसी में प्रदर्शित हुई। असम सरकार ने फिल्म को गोहाटी में आयोजित गोहाटी इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में स्पेशल कैटेगरी में प्रदर्शित किया।
पत्रिकाः कुछ अपने बारे में जानकारी दीजिए। सूरज तिवारीः मैं मूलतः क्रिकेटर हूं। मेरे बड़े भाई पवन तिवारी नाट्य कलाकार थे। एक दिन मैं नाटक ‘सिंहासन खाली है’ देखने गया। मेरे रोंगटे खड़े हो गए कि ये दुनिया कुछ और है। बिना कट के लाइव हो रहा है। मेरे अंदर का आर्टिस्ट जाग गया, क्रिकेट छूट गया।
पत्रिकाः फिर आपने शुरुआत कैसे की? सूरज तिवारीः शुरुआत डांस से हुई। हमने डांस सीखा और सिखाना शुरू किया। हमारे द्वारा सीखे हुए कलाकार अच्छी जगह काम कर रहे हैं। फैशन की कोरियोग्राफी की। फैशन शो कराए। फिर दिल्ली चला गया। 2003 में दिल्ली में ईवेंट मैनेजमेंट किया। हमने आगरा में एक शो किया। फिर 2005 में दिल्ली छोड़कर अपने शहर आगरा वापस आ गया। इंडियन ऑयडल के साथ ग्लैमर लाइव के साथ काम किया। मेरे सिखाए हुए लड़के बॉलीवुड में थे। वे मुझे मुंबई बुलाते रहते थे। मेरे अंदर बात चल रही थी कि फिल्म लाइन में जाना है, डायरेक्टर बनना है। कुछ वीडियो बनाए, जिन्हें सराहना मिली। मुझे बल मिला। शॉर्ट फिल्म भिक्षा से शिक्षा की ओर, डॉक्यूमेंटरी फिर भी यमुना मैली बनाई। दोनों फिल्मों को विदेश तक में सराहना मिली। 2010 में जय हो बांके बिहारी अलबम किया।
पत्रिकाः आय एम जीरो का विचार कैसे आया? सूरज तिवारीः मैं मुंबई में था। फीचर फिल्म बनाने की बात चल रही थी। आगरा के फिल्म निर्देशक रंजीत सामा से बात हुई। उन्होंने मुझे कहानी दी। 8-10 बार बैठे, लेकिन वो कहानी मेरी अंतरआत्मा में नहीं घुस रही थी। मैंने नई कहानी लिखी- 16 साल की मुस्लिम लड़की स्कूल में पढ़ती है और उसके धर्म को लेकर सवाल उठता है। लोग उससे कहते हैं कि तू जीरो हो, कुछ नहीं कर पाएगी। वो आत्महत्या का प्रयास करती है। फिर भागवत गीता पढ़कर जिन्दगी का सार समझती है। इस कहानी पर फिल्म बनाई।
पत्रिकाः इस पूरी यात्रा में अपने शहर आगरा को क्या योगदान दिया है? सूरज तिवारीः फिल्म में आगरा के कलाकारों को काम दिया। आगरा की लोकेशन को एक्सप्लोर किया। मैं चाहता तो कुरुक्षेत्र और बनारस में शूट कर सकता था, लेकिन आगरा में शूट किया। आगरा में अनेक फिल्में शूट हो चुकी हैं, लेकिन हमने कुछ अलग लोकेशन देखीं।
पत्रिकाः फिल्म की बात चलती है तो लोग हीरो, हीरोइन या कलाकार ही बनना चाहते हैं, इसके अलावा और क्या कर सकते हैं? सूरज तिवारीः जितनी तकनीकी चीजें हैं, वे बहुत आगे हैं। फिल्म शूट होने के बाद संपादन होता है। संपादन कभी मरने वाली चीज नहीं है। हो सकता है कि डायरेक्टर को फीस न मिले, लेकिन संपादक को मिलती है। बाहुबली और शिवा की तरह वीएफएक्स (स्पेशल इफेक्ट) डालने का बहुत बड़ा काम है। अच्छे लेखकों की बहुत कमी है।
पत्रिकाः अगर लोग आपसे संपर्क करें तो क्या उन्हें काम मिल सकता है? सूरज तिवारीः जरूर, जो मेरे संपर्की हैं, उनसे मिलवाऊंगा। ये पूरी तरह से ईमानदारी, जुनीनियत और दीवानगी का क्षेत्र है। जुनून के साथ जो काम करेगा, उसे निश्चित रूप से प्लेटफार्म मिलेगा।
पत्रिकाः आगरा में ग्लोबल ताज इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल कराया था, उसकी क्या खास उपलब्धि रही? सूरज तिवारीः आगरा और उत्तर प्रदेश का पहला इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल है। जिसमें 15 देशों की फिल्में आईं और 8 देशों की फिल्मों को प्रदर्शित किया। फेस्टिवल में क्रिएटिव लोगों का जमावड़ा होता है, विचारों का आदान-प्रदान होता है। इसके माध्यम से देश-विदेश के फिल्म मेकर, निर्देशक, प्रोड्यूसर आएंगे तो यहां की लोकेशन को देखेंगे। यहां के लोगों को काम मिलेगा। एक फिल्म में 500 के लेकर 1000 लोग काम करते हैं। शहर में नए रोजगार की शुरुआत होगी।
पत्रिकाः क्या यह जरूरी नहीं है कि शूटिंग ताजमहल, आगरा किला और फतेहपुर सीकरी में ही की जाए? सूरज तिवारीः बिलकुल जरूरी नहीं है। आगरा में ताजमहल से अधिक अच्छी लोकेशन हैं, जो शायद किसी शहर में नहीं है। हमारे पास मथुरा बड़ी लोकेशन हैं। ताजमहल के अलावा अन्य स्मारक हैं। फिल्म फेस्टिवल के माध्यम से देशी-विदेश लोग यहां आएंगे। मैं चाहता हूं कि यहां फिल्म स्टूडियो बने। काम करने के लिए जिन उपकरणों की जरूरत होती है, वो वहां मिलेंगे तो फिल्म बनाने वालों को अतिरिक्त खर्चा बचेगा।
पत्रिकाः आपका उद्देश्य फिल्म के माध्यम से आगरा को समृद्ध करना भी है? सूरज तिवारीः जी बिलकुल है। मेरा सपना है कि आगरा में फिल्म स्टूडियो स्थापित करूं, जैसा कि रामोजी फिल्म सिटी हैदराबाद है और नोएडा फिल्म सिटी है। मैं आपके माध्यम से यह कहना चाहता हूं कि मुझे सिर्फ जमीन उपलब्ध करा दें, स्टूडियो तो स्थापित करवा दूंगा।
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