किस क्षेत्र में सेवा कार्य 1998 में उत्तर भारत की प्रसिद्ध जनकपुरी महोत्सव में तनाव दूर करके साम्प्रदायिक सद्भाव की मिसाल कायम की। मलिन बस्ती में रहने वाले बच्चों के हृदय ऑपरेशन कराने के लिए आंदोलन खड़ा किया। सबसे पहले 13 साल के इमरान पुत्र वजीर खां निवासी मदिया कटरा के हृदय का ऑपरेशन कराया। अब तक 1600 हृदय रोगियों को इलाज करा चुके हैं। एसएन मेडिकल कॉलेज के सहयोग से 1100 से अधिक लोगों से मरणोपरांत नेत्रदान कराया है। क्षेत्र बजाजा कमेटी के सहयोग से आकस्मिक दुर्घटना वाहन सेवा शुरू कराई। सिकंदरा में छह बीघा जमीन में श्रीरामलाल वृद्धाश्रम बनवाया, जहां 300 दादा-दादी और 40 बच्चे जीवनयापन कर रहे हैं। 2500 से अधिक बुजुर्गों को उनके घर भेजा जा चुका है। सौ साल से जीर्णशीर्ण हालत में पड़े विधवा आश्रम का पुनर्निर्माण कराया, जहां 100 विधवाएं रह सकती हैं। साहित्य सेवा के तहत तीन बार ताज साहित्य महोत्सव करा चुके हैं। विभिन्न संस्थाओं को कई एम्बुलेंस दिलाई हैं। 10 से 13 जनवरी से भारत का सबसे बड़ा दिव्यांग सेवा शिविर लगाया गया, जिसमें 1800 दिव्यांगों को ट्राइ साइकिल, व्हीलचेयर, जयपुर फुट, कृत्रिम हाथ, कैलीपर्स, शूज, बैसाखी, सुनने की मशीन आदि दी गईं। सेव वाटर अभियान भी चर्चा में रहा है। 500 साल पूर्व जैन दादाबाड़ी में आचार्य श्री हरि विजय सूरी महाराज ने अकबर को प्रबोधन दिया था। उसे जैन तीर्थस्थल के रूप में विकसित किया।
पत्रिकाः जूता निर्यातक हैं, वित्त क्षेत्र में भी काम किया है, राजनीति में सक्रिय रहे, फिर सेवा की ओर कैसे मुड़ गए? अशोक जैन सीएः सेवा मैं ही नहीं, मेरे पूरे परिवार में पिताश्री संतोष द्वारा प्राप्त हुई। पिता को हर किसी की मदद करते हुए देखा। समाज ने हमें जो दिया है, हमारी जिम्मेदारी भी है कि समाज के लिए कुछ करें। 1995 में मुझे हदयाघात हुआ। डॉ. नरेश त्रेहन ने ऑपरेशन किया। मैं बच गया। फिर विचार आया कि हम साधन सम्पन्न थे, इलाज करा लिया और बच गए। समाज में लाखों लोग हैं जो हृदय का इलाज कराने के लिए संसाधन नहीं जुटा पाते हैं। फिर 2005 में डॉ. प्रवीन चन्द्रा के साथ आगरा के प्रबुद्ध लोगों की बैठक में निर्णय लिया कि साल में दो-चार लोगों की हार्ट सर्जरी करवाएंगे। मेरे भाई सुनील जैन, राजुकमार जैन, संदेश जैन सबने सोचा कि ये काम जरूर करना है और सेवा करनी है। यहां से सेवा का मिशन शुरू हुआ।
पत्रिकाः सेवा के कौन-कौन से मिशन चला रहे हैं? अशोक जैन सीएः शुरुआत हार्टमिशन से हुई। अब तक 1600 से अधिक हृदय ऑपरेशन हो चुके हैं, जो मेरे लिए आश्चर्यजनक है। मैं 22 साल में तीन बार एंजियोप्लास्टी करा चुका हूं। मेरा दिल स्वस्थ है और सेवा कर रहा हूं। मरणोपरांत नेत्रदान मिशन में 14 साल में 1000 से अधिक नेत्रदान किए जा चुके हैं। 2010 में पौधारोपण का अभियान चला। तीन साल में 10 हजार पौधे लगवाए। फिर पेड़ों को बचाने का अभियान शुरू किया। ताज नेचर वॉक के सामने स्मृति वन लगाया, जिसमें हजारों पेड़ हैं। रामलाल वृद्धाश्रम शुरू किया। इसमें 300 बुजुर्ग रहते हैं। 450 गायों की सेवा की जा रही है। फिर तीन बार ताज लिटरेचर फेस्टिवल किया। डॉ. बीके अग्रवाल, सुशील जैन, डॉ. रमेश धमीजा, डॉ, सुनील शर्मा के साथ से कारवां बन गया।
पत्रिकाः सेवा से क्या मिला? अशोक जैन सीएः सेवा से आत्मसंतुष्टि मिली है और इससे बढ़कर कुछ है नहीं। चार बार की सर्जरी के बाद भी स्वस्थ हृदय से काम करना ये दुआओं का परिणाम है।
पत्रिकाः पूर्णकालिक रूप से सेवा कार्य में जुटे हैं, व्यवसाय पर क्या असर है? अशोक जैन सीएः व्यसाय पर असर कम आया है क्योंकि मेरा संयुक्त परिवार है। मेरे भाइयों ने भी मुझे प्रेरणा दी सेवा की।
पत्रिकाः आपके बाद बहुत से सेवा कार्य शुरू हुए हैं, इनके बार में क्या विचार है? अशोक जैन सीएः आगरा तो प्रेमनगरी के साथ 20 साल में सेवा नगरी बन गई। क्षेत्र बजाजा कमेटी तो 130 साल पुरानी संस्था है। जैसे व्यवसाय और राजनीति में प्रतिस्पर्धा होती है, वैसी ही स्वस्थ प्रतिस्पर्धा सेवा के क्षेत्र में हो रही है।
पत्रिकाः अशोक जैन सीए का नाम लें तो जैन दादाबाड़ी का उल्लेख किए बिना बात पूरी नहीं होती है। वहां क्या काम किया है? अशोक जैन सीएः 20 साल तक शौचघर था। जब में भारतीयृ जनता पार्टी की राजनीति करता था। आचार्य राजेन्द्र सूरी की प्रेरणा से मिशन शुरू हुआ। आज पूरी दुनिया में जैन दादाबाड़ी का धर्म और सेवा के क्षेत्र में नाम है।
पत्रिकाः जो नए लोग सेवा के क्षेत्र में आ रहे हैं, उनके लिए क्या कहना चाहेंगे? अशोक जैन सीएः पहली बात तो आलोचना से नहीं डरना चाहिए। सेवा बड़ा नीरस काम है। मेरे बारे में बहुत से लोग कहते हैं कि छपास का रोग है तो उन्हें समझाने की जरूरत नहीं है। हमें अपना मिशन साफ रखना चाहिए। अगर सेवा कार्य छपेगा नहीं तो लोगों तक कैसे पहुंचेंगे। डीआर मेहता के निर्देशन में महावीर सेवा समिति द्वारा 26 साल से 32 देशों में विकलांग शिविर लगा रही है। मेहता जी कह गए गए कि आगरा में सबसे अच्छा अनुभव रहा। मीडिया के सहयोग के कारण ही यह संभव हो सका। आलोचनाओं से विचलित नहीं होंगे तो आत्मकल्याण होगा और सफलता प्राप्त होगी।