2012 से प्रयास शुरू आगरा और मथुरा पानी की समस्या से वर्षों से जूझ रहे थे। भूगर्भ जल खारा है। यमुना में सीवर का प्रदूषित पानी है। इसके लिए 2008 में गंगाजल प्रोजेक्ट के शुरुआत हुई। 2010 के अंत तक दम तोड़ गया। उत्तर प्रदेश के प्रमुख सचिव नगर विकास और प्रमुख सचिव सिंचाई विभाग के बीच विवाद हुआ और प्रोजेक्ट ठंडे बस्ते में चला गया। सिर्फ 7 फीसदी काम हुआ था। मैं 2012 में विधायक बना। आगरा की पेयजल समस्या निदान के लिए तीन विकल्प दिमाग में थे- बैराज, चंबल से पानी लिफ्ट करके लाना और गंगाजल प्रोजेक्ट को पुनर्जीवित करना। मैंने गंगाजल प्रोजेक्ट के लिए अधिकारियों से चर्चा की। विधानसभा में बहस की। 2013 में ये पुनर्जीवित हुआ। बजट में 300 करोड़ रुपये का प्रावधान हुआ। काम शुरू हो गया।
हर स्तर पर आई बाधाएं इस प्रोजेक्ट में तरह-तरह की परेशानी आईं। थाने से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक, लेखपाल से लेकर मुख्य सचिव व मुख्यमंत्री तक धूल ले डाली समस्या निपटाने में। 2013 में ही गंगाजल प्रोजेक्ट पर स्थगनादेश ले लिया, जो समाप्त कराया। पालड़ा से आगरा तक 130 किलोमीटर लम्बी भूमिगत लाइन डालना दुष्कर कार्य था। खेत- खलिहान, जंगल में पाइप लाइन डालनी थी। जनता की आपत्ति, वन विभाग की आपत्ति, प्रशासनिक असहयोग, क्षेत्रीय दबंगों का प्रभाव था। राजस्व विभाग, वन विभाग, नगर विकास विभाग में तालमेल का अभाव था। 2017 में हमरी सरकार आई तो मैं सार्वजिनक उपक्रम समिति का उपाध्यक्ष बन गया। इसके माध्यम से विभागों में तालमेल कराया। अड़चनों को सुप्रीम कोर्ट से निपटाया।
9 जनवरी, 2019 को आया गंगाजल यमुना मैया के दो शहरों में 150 क्यूसेक पानी प्रतिदिन पालड़ा (जिला बुलंदशहर) में भीमगौड़ा से आ रही अपर गंगा नगर से मिलेगा। यह पानी ऋषिकेश से भी बेहतर है। प्रतिदिन 10 क्यूसेक मथुरा और 140 क्यूसेक पानी आगरा को मिलेगा। 9 जनवरी, 2019 ऐतिहासिक तारीख है, जब यमुना मैया के शहर आगरा में गंगा मैया ने प्रवेश किया। आधे आगरा को गंगाजल मिलने लगा। सिकंदरा जल संस्थान से 144 एमएलडी पानी की आपूर्ति प्रतिदिन होती है। गंगाजल लाने के लिए जीवनी मंडी तक लाइन जानी थी। यहां फ्लाईओवर है। एनएचएआई से अनापत्ति नहीं मिल रही थी। हम केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी से मिले। उन्होंने सुरंग डालकर पाइप लाइन बिछाने का रास्ता निकाला, जो दुष्कर कार्य था। 15 जनवरी, 2020 को जीवनी मंडी वाटर वर्क्स के लिए गंगाजल छोड़ा गया।
हास्यास्पद बात हमने तो गंगाजल लाकर दे दिया। पानी वितरण की जिम्मेदारी जल संस्थान की है। जल संस्थान ने बीच में टालमटोल किया। हास्यास्पद बात कही कि थर्ड पार्टी टेस्ट कराएंगे कि यह पीने योग्य है या नहीं। यह अजीब बात थी। जब गंगाजल आधे आगरा को पिलाया जा रहा है तो टेस्टिंग का मतलब क्या है? जब मैंने मुख्यमंत्री से शिकायत की बात कही तो मंडलायुक्त अनिल कुमार ने बैठक कर समाधान किया। अब पूरे आगरा को गंगाजल की आपूर्ति की जा रही है।
जल संस्थान की लापरवाही गंगाजल का वितरण ठीक से होना चाहिए। जल संस्थान की वितरण क्षमता 80 एमएलडी की है, लेकिन 150 एमएलडी प्रतिदिन बताता है। उसे 200 एमएलडी गंगाजल प्रतिदिन मिल सकता है। जब क्षमता ही कम है तो बाकी गंगाजल यमुना में बहाना होगा। जल संस्थान ने अपनी क्षमता बढ़ाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया। जल निगम को नया सर्विस स्टेशन बनाना था, लेकिन मुख्य अभियंता की लापरवाही के कारण वो नहीं बन रहा।
पेयजल की दृष्टि से आगरा बेमिसाल शहर गंगाजल आगरा के लिए सौगात है। आगरा अब हिन्दुस्तान के उन सर्वोत्तम शहरों में से है, जहां बेस्ट क्वालिटी का गंगाजल पीने के लिए मिल रहा है और मात्रा इफरात में है। वरना कहीं पानी की मात्रा कम है तो कहीं गुणवत्ता नहीं है। आगरा में पानी की गुणवत्ता और मात्रा दोनों का संगम है। पेयजल की दृष्टि से आगरा बेमिसाल शहर बन गया है। गंगाजल प्रोजेक्ट पर करीब 3000 करोड़ रुपये व्यय हुए हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 9 जनवरी, 2019 को आगरा के कोठी मीना बाजार मैदान में हुई सभा में 2880 करोड़ रुपये की लागत वाली गंगाजल परियोजना राष्ट्र को समर्पित की थी।