पहली जुलाई से लागू हो चुकी भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) में अब पागलपन, उन्मादी, मूर्ख, विक्षिप्त मानसिकता और मंदबुद्धि जैसे शब्दों की जगह ‘बौद्धिक विकलांगता’ का इस्तेमाल किया जाएगा।
नए कानून के जन-जागरूकता अभियान में जुटीं एजेंसियां
नए आपराधिक कानूनों के बारे में जन-जागरूकता के अभियान में जुटीं केंद्र व राज्य सरकार की एजेंसियां इन बदलावों को आधुनिक दृष्टिकोण का परिचायक मानती हैं। उनका कहना है कि बौद्धिक विकलांगता शब्द कानूनी भाषा में मानसिक स्वास्थ्य के प्रति भी संवेदनशील दृष्टिकोण प्रदर्शित करता है।समाज में फैलाए जा रहे भ्रम को लेकर एजेंसियां सतर्क
नए कानूनों के बारे में समाज में फैलाए जा रहे भ्रम को लेकर भी एजेंसियां सतर्क हैं। संवाद के विभिन्न माध्यमों का प्रभावी इस्तेमाल करके सच सामने लाया जा रहा है। नए कानूनों को लेकर इस मिथक का भी जवाब दिया गया है कि इसमें पुलिस हिरासत की अवधि 15 से बढ़ाकर 90 दिन कर दिया गया है और यह प्रावधान पुलिस को यातना देने वाला हथियार बन गया है। एजेंसियों द्वारा यह स्पष्ट किया जा रहा है कि पुलिस हिरासत की अवधि पहले की तरह 15 दिन तक ही सीमित है। बीएनएस के तहत लागू 60/90 दिनों की कुल अवधि में से 40/60 दिनों की अवधि के भीतर आंशिक या पूरी पुलिस हिरासत ली जा सकती है। पुलिस हिरासत देने में न्यायालय का विवेक पहले की तरह बरकरार रखा गया है।
तलाशी और जब्ती अभियानों की आडियो-वीडियो रिकार्डिंग
इसके अलावा अगर आरोपी जमानत का पात्र है तो पहले 15 दिनों से अधिक की पुलिस हिरासत आरोपी के जमानत में बाधा नहीं बनेगी। एक मिथक यह भी है कि नए आपराधिक कानून निजी स्वतंत्रता के लिए खतरा हैं और एक पुलिस राज स्थापित करते हैं। जागरूकता अभियान में इस मामले में भी स्पष्टता की गई है। इसमें बताया गया है कि नए कानूनों में शक्ति के दुरुपयोग को रोकने के लिए सुरक्षा उपायों को शामिल किया गया है। तलाशी और जब्ती अभियानों की आडियो-वीडियो रिकार्डिंग का नया प्रावधान पारदर्शिता के लिए है, जिससे पुलिस की जवाबदेही बढ़ती है और व्यक्तिगत अधिकारों की सुरक्षा होती है। यह भी पढ़ें