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भारत रत्न अटलजी की कुंडली में थे दो सबसे बड़े महाराजयोग, जिससे देश को मिला ऐसा नेता

वैदिक सूत्रम चेयरमैन और भविष्यवक्ता पंडित प्रमोद गौतम ने किया कुंडली का विश्लेषण

आगराAug 17, 2018 / 12:01 pm

अभिषेक सक्सेना

Atal Bihari Vajpayee

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आगरा। वैदिक सूत्रम चेयरमैन भविष्यवक्ता पंडित प्रमोद गौतम ने भारत रत्न और असाधारण प्रतिभा के धनी विरोधी राजनीतिक दलों के प्रिय पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयीजी आज इस दुनियां में नहीं है। अटलजी की 25 दिसम्बर 1924 की जन्मकुंडली में दो सबसे बड़े महाराजयोग थे। सबसे पहला राजयोग शश योग था जो जन्मकुंडली में शनि ग्रह के अपनी उच्च राशि तुला में स्थित होने के कारण बनता है। शनि ग्रह की यही उच्च अवस्था अटलजी को पूरी तरह निष्पक्ष और सर्वप्रिय बनाती है। क्योंकि वैदिक हिन्दू फलित ज्योतिष में शनि ग्रह को न्यायाधीश और जनता का कारक ग्रह माना जाता है। ऐसा व्यक्ति पाताल की गहराइयों में जाकर भी सूक्ष्म निष्पक्ष विश्लेषण की विलक्षण क्षमता रखता है और जीवन में ईमानदारी उसका मुख्य ध्येय होता है और अपार करुणा का महाधनी व्यक्ति होता है। अटलजी के व्यक्तित्व में यह सब कुछ मौजूद था। शनि ग्रह की उनकी जन्मकुंडली में उच्च अवस्था के कारण।
दूसरा सबसे बड़ा राजयोग अटलजी की जन्मकुंडली
पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि दूसरा सबसे बड़ा राजयोग अटलजी की जन्मकुंडली में देवगुरु बृहस्पति और चन्द्रमा के एक साथ युति उनकी जन्मकुंडली में उपस्थित थी। जो गजकेसरी महाराजयोग का निर्माण करती है इस योग को रखने वाला व्यक्ति पूरी तरह स्वच्छ छवि और सकारात्मक विचार लिए हुए होता है और साधारण परिवार में जन्म लेने के वावजूद भी वह राजा बनता है। यही कारण रहा कि अटलजी पत्रकारिता के सफर से लेकर देश के प्रधानमंत्री के सबसे बड़े पद तक पहुंचे।
गजकेसरी योग को असाधारण योग की श्रेणी
वैदिक सूत्रम चेयरमैन पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि वैदिक हिन्दू फलित ज्योतिष में गजकेसरी योग को असाधारण योग की श्रेणी में रखा गया है। यह योग जिस व्यक्ति की कुंडली में उपस्थित होता है उसे जीवन में कभी भी अभाव नहीं खटकता। इस योग के साथ जन्म लेने वाले व्यक्ति की ओर धन, यश और र्कीत स्वत: खिंची चली आती है। जब कुंडली में गुरु और चंद्र पूर्ण कारक प्रभाव के साथ होते हैं तब यह योग बनता है। पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि लग्र स्थान में कर्क, धनु, मीन, मेष या वृश्चिक हो तब यह कारक प्रभाव के साथ माना जाता है। हालांकि अकारक होने पर भी फलदायी माना जाता है परन्तु यह मध्यम दर्जे का होता है चंद्रमा से केंद्र स्थान में 1, 4, 7, 10 बृहस्पति होने से गजकेसरी योग बनता है। इसके अलावा अगर चंद्रमा के साथ बृहस्पति हो तब भी यह योग बनता है।
चंद्रमा भी प्रबल था
अटलजी की जन्मकुंडली में यह गजकेसरी नामक महाराजयोग पूरी तरह प्रबल अवस्था में था। देवगुरु बृहस्पति ग्रह खुद अपनी स्वयं की राशि धनु में थे जिसके साथ साथ मन का कारक चन्द्रमा ग्रह भी था जो एक प्रबल गजकेसरी योग बनाता है।
अपना संकल्प पूरी निष्ठा से निभाया
वैदिक सूत्रम चेयरमैन पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि कि इन्ही दो प्रमुख राजयोग के कारण ही अटल बिहारी वाजपेयी हिन्दी के कवि, पत्रकार और प्रखर वक्ता भी थे। भारतीय जनसंघ की स्थापना में भी उनकी अहम भूमिका रही। वे 1968 से 1973 तक जनसंघ के अध्यक्ष भी रहे। आजीवन राजनीति में सक्रिय रहे अटल बिहारी वाजपेयी लंबे समय तक राष्ट्रधर्म, पाञ्चजन्य और वीर अर्जुन आदि पत्र-पत्रिकाओं के सम्पादन भी करते रहे। वाजपेयी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के समर्पित प्रचारक रहे और इसी निष्ठा के कारण उन्होंने आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प लिया था। सर्वोच्च पद पर पहुंचने तक उन्होंने अपने संकल्प को पूरी निष्ठा से निभाया।

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