आगरा. दुनिया का अजूबा ताजमहल जिसकी याद में बनवाया गया उस मुमताज महल की मृत्यु आज ही के दिन यानि 17 जुलाई (सन 1631) को बुरहानपुर में हुई थी। सन 1593 में आगरा में जन्मीं मुमताज महल शाहजहां को बेहद पसंद थीं। यही वजह थी कि शाहजहां अपनी सभी बीवियों में उन्हें सबसे ज्यादा पसंद करते थे। वह उनसे दूर नहीं रह सकते थे। इसीलिये मुमताज महल की मौत के बाद शाहजहां ने उनकी याद में ताजमहल जैसी शाहकार इमारत का निर्माण कराया जो दुनिया में अजूबा है। कहा जाता है कि मरने से पहले मुमताज महल ने आखिरी वक्त में शाहजहां को अपने पास बुलवाकर उनसे दो वचन लिये थे। इनमें से एक वचन दोबारा शादी न करने का था जबकि दूसरा वचन कोई एेसा मकबरा बनवाने का था जो अनोखा और यादगार हो।
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कौन थीं मुमताज महल
मुमताज महल का वास्तविक नाम अर्जुमंद बानो था। वह 27 अप्रैल 1593 को आगरा में एक मुगल दरबारी के घर पैदा हुई थीं। शाहजहां और मुमताज महल की मुलाकात आगरा के बाजार में हुई थी। 14 साल की उम्र में ही दोनों की सगाई हो गई। इसके पांच साल बाद 10 मई 1612 को शाहजहां और मुमताज महल का निकाह हुआ। शादी के बाद शाहजहां ने अर्जुमंद बानो को मुमताज महल का नाम दिया। वह शाहजहां की तीसरी बीवी और सबसे पसंदीदा बेगम थीं। मुमताज महल की शादी 19 साल तक चली। शाहजहां के मुमताज महल से 14 बच्चे (8 लड़कियां और 6 लड़के) हुए जिनमें से सात बच्चे कम उम्र में ही चल बसे। शाहजहां मुमताज महल से दूर नहीं रह सकते थे। वह बेगम मुमताज महल को युद्व पर भी अपने साथ ले जाते थे।
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मुमताज महल की मृत्यु कैसे हुई
शाहजहां ने दक्कन में ‘खान जहां लोदी’ के विद्रोह को काबू में करने का फैसला लिया और अपने लाव लश्कर के साथ चल पड़ा। यह वो समय था जब मुमताज महल 14वीं बार गर्भवती थीं। इसके बावजूद वह भी शाहजहां के साथ गईं। धौलपुर, ग्वालियर, मारवाड़, सिरोंज, हंदिया होते हुए 787 किमी की यात्रा करके जब मुमताज महल बुरहानपुर पहुंचीं तो वह बेहद थक गई थीं। इसके चलते गर्भवती मुमताज महल की तबीयत खराब होने लगी। 30 घंटे की प्रसव पीड़ा सहने के बाद मुमताज महल को बेटी गौहर आरा पैदा हुई। बच्ची तो ठीक थी पर मां की हालत खराब हो रही थी। आखिरी वक्त में शाहजहां उनसे मिले और मुमताज महल ने उनकी गोद में दम तोड़ दिया।
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पहले बुरहानपुर में दफ्नायी गयी मुमताज महल
मुमताज महल की कब्र पहले आगरा में नहीं थी। मुमताज महल की मृत्यु के बाद उन्हें उस वक्त बुरहानपुर जिले के जैनाबाद में आहुखाना बाग में दफ्नाया गया था। वह इमारत आज भी वहां मौजूद है। बुरहानपुर में दफ्नाने के छह महीने बाद मुमताज महल के अवशेषों को भव्य जुलूस की शक्ल में आगरा ले जाया गया, जो तजमहल के गर्भगृह में दफ्न है। जानकार बताते हैं कि उस जुलूस पर उस समय करीब आठ करोड़ रुपये खर्च हुए थे।
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