कुर्सी मोह के कारण लगाया आपातकाल राज नारायण ने लोकसभा चुनाव में रायबरेली में इंदिरा गांधी के हाथों हारने के बाद यह मामला कोर्ट में दाखिल कराया। हालांकि 24 जून 1975 को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश बरकरार रखा। लेकिन इंदिरा को प्रधानमंत्री की कुर्सी से मोह हो गया था। किसी भी कीमत पर वे इसे छोड़ना नहीं चाहती थीं। वहीं जयप्रकाश नारायण ने इंदिरा के इस्तीफा देने तक देश भर में रोज प्रदर्शन करने का आह्वान किया। देश भर में हड़तालें और प्रदर्शन शुरू हो चुके थे । जय प्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई सहित कुछ नेताओं के नेतृत्व में देश में व्यापक विरोध प्रदर्शन किये जाने लगे। इंदिरा आसानी से सिंहासन खाली करने के मूड में नहीं थीं और उनके पुत्र संजय गांधी कतई नहीं चाहते थे कि उनकी मां के हाथ से सत्ता जाए। उधर विपक्ष सरकार पर लगातार दबाव बना रहा था। नतीजा ये हुआ कि इंदिरा ने 25 जून, 1975 की रात देश में आपातकाल लागू करने का फैसला लेकर काला अध्याय लिख दिया।
देश को जेलखाना बना दिया इधर जयप्रकाश नारायण की अगुवाई में विपक्ष एकजुट होने लगा। समूचे देश में इंदिरा के खिलाफ आंदोलन छिड़ चुका था। सरकारी मशीनरी विपक्ष के आंदोलन को कुचलने में लग गई थी। अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी आदि नेताओं समेत विपक्ष के तमाम नेता जेल में ठूंस दिए गए। संजय गांधी की मनमानियां भी शुरू हो गई। संजय की शह पर पुरुषों की जबरन नसबंदी करवाई जा रही थी। सरकार ने पूरे देश को एक बड़ा जेलखाना बना दिया। आपातकाल के दौरान नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन होने लगा।
मोरारजी देसाई पहली बार गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री बने 21 महीने के बाद जयप्रकाश का आंदोलन निर्णायक मुकाम तक जा पहुंचा। इंदिरा को सिंहासन छोड़ना पड़ा। मोरारजी देसाई की अगुवाई में जनता पार्टी का गठन हुआ। 21 मार्च 1977 को इमरजेंसी समाप्त हुई। देश में आम चुनाव हुए और इस चुनाव में कांग्रेस को बुरी हार का सामना करना पड़ा। खुद इंदिरा गांधी भी रायबरेली से चुनाव हार चुकी थीं और कांग्रेस मात्र 153 सीटों पर सिमट चुकी थी। 23 मार्च 1977 को इक्यासी वर्ष की उम्र में मोरार जी देसाई भारत के प्रधानमंत्री बने। आजादी के तीस साल बाद बनी पहली गैर कांग्रेसी सरकार को देश का नेतृत्व मिला।
प्रस्तुतिः दिनेश अगरिया, कवि एवं लेखक, आगरा