मेरे मन में था कि उन्हें किसी तरह दुबारा नौकरी मिल जाए।
आप जानते हैं कि संजय सिन्हा दयालु हैं। उनके सामने कोई रोने लगे तो उससे अधिक रुलाई संजय सिन्हा को आने लगती है। खैर, साल भर उनकी उस बेरोजगारी की पीड़ा को मैंने बहुत करीब से देखा, महसूस किया। मैंने खुद उनकी नौकरी के लिए कई जगह कोशिश भी की। और एक दिन उन्हें दुबारा नौकरी मिल गई।
नौकरी मिली तो उन्होंने खूब पूजा-पाठ करवाया, मिठाई बंटवाई।
आप जानते हैं कि संजय सिन्हा दयालु हैं। उनके सामने कोई रोने लगे तो उससे अधिक रुलाई संजय सिन्हा को आने लगती है। खैर, साल भर उनकी उस बेरोजगारी की पीड़ा को मैंने बहुत करीब से देखा, महसूस किया। मैंने खुद उनकी नौकरी के लिए कई जगह कोशिश भी की। और एक दिन उन्हें दुबारा नौकरी मिल गई।
नौकरी मिली तो उन्होंने खूब पूजा-पाठ करवाया, मिठाई बंटवाई।
दोबारा नौकरी की हनक शुरू हुई। लोगों ने फिर पूछना शुरू कर दिया। जिन लोगों ने साल भर एक मिस्ड कॉल नहीं मारा था, वो सुबह-सुबह गुड मॉर्निंग सर कहने लगे। धीरे-धीरे मेरे परिचित के दिमाग में दुबारा सत्ता का नशा चढ़ने लगा। उन्हें लगने लगा कि उनमें कुछ है, कोई ख़ास बात है जो लोग उन्हें इतना पूछने लगे हैं।
जब उन्हें दोबारा नौकरी मिल गई, सब ठीक हो गया तो उनके स्वभाव में बदलाव आने लगा। उनके भीतर अहंकार आने लगा।
जब उन्हें दोबारा नौकरी मिल गई, सब ठीक हो गया तो उनके स्वभाव में बदलाव आने लगा। उनके भीतर अहंकार आने लगा।
एक दिन मैं उनके साथ बैठा था तो उन्होंने मुझसे कहा कि संजय जी, देखिए लोग मुझे कितना प्यार करते हैं। जहां मिलते हैं, नमस्कार कहते हैं। दुआ-सलाम करते हैं। मुझे कितना पूछते हैं।
मैंने उनसे पूछा कि इस पर आपकी प्रतिक्रिया क्या होती है?
उन्होंने कहा कि प्रतिक्रिया क्या होगी? मैं भी सिर हिला देता हूं। उनका अभिवादन स्वीकार कर लेता हूं।
मैंने कहा कि आपको इसकी जगह ऐसा कहना चाहिए – कह दूंगा।
“कह दूंगा? क्या कह दूंगा? किससे कह दूंगा?”
मैंने परिचित से कहा कि आपको तो पता ही है कि संजय सिन्हा मां की कहानियां सुन-सुन कर बड़े हुए हैं। जीवन का पाठ उन्होंने कहानियों के माध्यम से सीखा है। तो सुनिए एक कहानी।
मैंने उनसे पूछा कि इस पर आपकी प्रतिक्रिया क्या होती है?
उन्होंने कहा कि प्रतिक्रिया क्या होगी? मैं भी सिर हिला देता हूं। उनका अभिवादन स्वीकार कर लेता हूं।
मैंने कहा कि आपको इसकी जगह ऐसा कहना चाहिए – कह दूंगा।
“कह दूंगा? क्या कह दूंगा? किससे कह दूंगा?”
मैंने परिचित से कहा कि आपको तो पता ही है कि संजय सिन्हा मां की कहानियां सुन-सुन कर बड़े हुए हैं। जीवन का पाठ उन्होंने कहानियों के माध्यम से सीखा है। तो सुनिए एक कहानी।
किसी नगर में एक बहुत गरीब आदमी रहता था। कोई उससे मिलना नहीं चाहता था। कोई उससे दुआ-सलाम भी नहीं करता था। वो सामने पड़ जाए तो लोग उससे कन्नी काट कर निकल जाते थे। धीरे-धीरे उसने छोटा-मोटा काम शुरू किया। उसका काम चल निकला। वो पैसे कमाने लगा। जब पैसे आए तो उसने व्यापार बढ़ाना शुरू कर दिया। और वो नगर का अमीर आदमी बन गया। उसके पास काफी पैसे हो गए।
जब उसके पास पैसे हो गए तो लोगों ने उसे पूछना शुरू कर दिया। उससे दुआ-सलाम करने लगे। पर आदमी ज़रा नहीं बदला था। उस पर दौलत का नशा बिल्कुल नहीं चढ़ा था। लोग उससे राम-राम करते तो वो बुदबुदाता, “कह दूंगा।”
मेरे परिचित ने कहानी के बीच में ही मुझे टोका।
“कह दूंगा? क्या कह दूंगा? संजय जी, पहेली न बुझाइए।”
मैंने कहा थोड़ा धैर्य रखिए। अभी कहानी पूरी नहीं हुई है। मां की सुनाई कहानी है, ठीक से समझने की ज़रूरत पड़ेगी। मां ने मुझे जीवन का पाठ कहानियों से पढ़ाया है।
“अच्छा आगे सुनाइए। फिर क्या हुआ?”
आदमी को कोई राम-राम कहता, दुआ-सलाम करता तो आदमी कहता कि कह दूंगा।
अजीब ही बात थी। लोग अभिवादन करते, वो सिर हिला कर धीरे से कहता कि कह दूंगा।
एक दिन एक आदमी ने उससे पूछ लिया कि भैया, लोग आपको इतना पूछते हैं, पूजते हैं, नमस्ते कहते हैं तो आप कहते हैं कि कह दूंगा। इसका क्या मतलब है?
जब उसके पास पैसे हो गए तो लोगों ने उसे पूछना शुरू कर दिया। उससे दुआ-सलाम करने लगे। पर आदमी ज़रा नहीं बदला था। उस पर दौलत का नशा बिल्कुल नहीं चढ़ा था। लोग उससे राम-राम करते तो वो बुदबुदाता, “कह दूंगा।”
मेरे परिचित ने कहानी के बीच में ही मुझे टोका।
“कह दूंगा? क्या कह दूंगा? संजय जी, पहेली न बुझाइए।”
मैंने कहा थोड़ा धैर्य रखिए। अभी कहानी पूरी नहीं हुई है। मां की सुनाई कहानी है, ठीक से समझने की ज़रूरत पड़ेगी। मां ने मुझे जीवन का पाठ कहानियों से पढ़ाया है।
“अच्छा आगे सुनाइए। फिर क्या हुआ?”
आदमी को कोई राम-राम कहता, दुआ-सलाम करता तो आदमी कहता कि कह दूंगा।
अजीब ही बात थी। लोग अभिवादन करते, वो सिर हिला कर धीरे से कहता कि कह दूंगा।
एक दिन एक आदमी ने उससे पूछ लिया कि भैया, लोग आपको इतना पूछते हैं, पूजते हैं, नमस्ते कहते हैं तो आप कहते हैं कि कह दूंगा। इसका क्या मतलब है?
आदमी ने बिना मुस्कुराए धीरे से कहा, “भाई मैं रात में जब घर जाता हूं तो तिजोरी खोलता हूं, तिजोरी के सामने बैठ कर कह देता हूं कि फलां-फलां ने आपको नमस्कार कहा है। राम-राम कहा है।”
“तिजोरी से कहते हैं? पर तिजोरी से क्यों?”
“भाई, लोग मुझसे राम-राम नहीं करते। अगर मुझसे करते तो पहले भी मुझे पूछते। मेरा हाल-चाल पूछते। मुझे राम-राम कहते। पर नहीं। जब मेरे पास पैसा आया, मैं अमीर बना तब लोगों ने मुझे पूछना शुरू किया। वो मेरे शुभचिंतक नहीं। वो मेरे दोस्त भी नहीं। दोस्त तो वो होता है, जो किसी भी हालत में पूछे। राम-राम करे। पर ये सभी लोग, जो मुझे पूछते हैं, वो असल में मेरी दौलत को पूछते हैं। उसे ही राम-राम कहते हैं। तो मैं उनके राम-राम के संदेश को तिजोरी तक पहुंचा देता हूं। उसे बता देता हूं कि फलां ने आपको नमस्ते कहा है।”
इतनी छोटी-सी कहानी सुना कर मैं चुप हो गया।
मां ने भी जब ये कहानी मुझे सुनाई थी, तो इतना ही सुना कर चुप हो गई थी। मां को पता था कि उनका संजू बेटा कहानी के मर्म को समझ गया है।
कहानियां समझने के लिए ही होती हैं।
“तिजोरी से कहते हैं? पर तिजोरी से क्यों?”
“भाई, लोग मुझसे राम-राम नहीं करते। अगर मुझसे करते तो पहले भी मुझे पूछते। मेरा हाल-चाल पूछते। मुझे राम-राम कहते। पर नहीं। जब मेरे पास पैसा आया, मैं अमीर बना तब लोगों ने मुझे पूछना शुरू किया। वो मेरे शुभचिंतक नहीं। वो मेरे दोस्त भी नहीं। दोस्त तो वो होता है, जो किसी भी हालत में पूछे। राम-राम करे। पर ये सभी लोग, जो मुझे पूछते हैं, वो असल में मेरी दौलत को पूछते हैं। उसे ही राम-राम कहते हैं। तो मैं उनके राम-राम के संदेश को तिजोरी तक पहुंचा देता हूं। उसे बता देता हूं कि फलां ने आपको नमस्ते कहा है।”
इतनी छोटी-सी कहानी सुना कर मैं चुप हो गया।
मां ने भी जब ये कहानी मुझे सुनाई थी, तो इतना ही सुना कर चुप हो गई थी। मां को पता था कि उनका संजू बेटा कहानी के मर्म को समझ गया है।
कहानियां समझने के लिए ही होती हैं।
प्रस्तुतिः नीतेश जैन