2009 की बात है। उनकी दूसरी पत्नी तड़के तीन बजे दिल का दौरा पड़ने से गुजर गईं, तभी नीरज एक कवि सम्मेलन में कोलकाता में थे। खबर मिलने पर अगले दिन आगरा पहुंचे। शाम में आगरा स्थित आवास पर उनसे हमारी करीब एक घंटे बातचीत हुई। इस दौरान जो उन्होंने कहा, वह उनकी सोच की ‘हाइट’ थी। वह अकेले कमरे में बैठे टीवी देख रहे थे। मैंने पूछा, आप अपनी पत्नी को मिस कर रहे होंगे। उन्होंने छूटते कहा-बिल्कुल नहीं, वह मेरे दिल में है दिल में रहेगी। मिस करना तो शरीर पाने का स्वार्थ है, मोहब्बत नहीं और फिर सबकी तरह उसके लिए भी जीवन एक प्लेटफार्म था। सब जाने के लिए ही तो इस प्लेटफार्म पर आते हैं। तभी उनके दो पुत्र कमरे में आकर बिलखने लगे।
उन्होंने दोनों को डांटते हुए कहा, रोना बंद करो, यह तो मृत्युलोक है, यहां मृत्यु उत्सव है, तुम्हें अपनी मां को ढोल बाजे के साथ विदा करना चाहिए था और तुम तो उसको घाट तक पहुंचा भी न पाए होगे तब तक वह दूसरा जन्म ले चुकी होगी। फिर मेरी तरफ मुखातिब होकर कहा-वह ब्रम्हमुर्त में गई है। समाजसेवी थी। वह फिर से कोई अच्छी जगह जन्म ले ली होगी। कर्मों का फल मिलता है। इस पर मैंने पूछा, आप नास्तिक होकर आत्मा में विश्वास करते हैं। उन्होंने कहा, हां अमेरिका में एक मरते हुए आदमी को शीशे के बंद बॉक्स में बंद कर दिया गया था। दम टूटा तो उसकी आत्मा बॉक्स से निकल गई, जिधर से निकली वहां शीशा चटक गया। मैंने जोर देकर पूछा तो आपको पूरा विश्वास है कि आपकी पत्नी जन्म ले चुकी होगी, उन्होंने कहा-सौ प्रतिशत। …तो नीरज ने भी यह भी सोचा होगा, वह अगला जन्म लेंगे।
इस मुलाकात की एक खास बात यह भी है। हमसे बात करते हुए उन्हें नहीं पता था कि मैं पत्रकार हूं। वह बात करने लगे तो बस करने लगे। इस दरम्यान एक चीज महसूस हुई जो आज तक कभी भी किसी से मिलकर नहीं हुई। वह यह कि मेरी जगह एक भिखारी होता, अफसर होता या मंत्री, वह नीरज के लिए सिर्फ एक आदमी होता। जैसे मैं उनके सामने था महज एक आदमी।
नीरज झा वरिष्ठ पत्रकार