आगरा

यहां है डाकू मान सिंह का मंदिर, रोज होती है पूजा, देखें वीडियो

डाकू मान सिंह 1939 से 1955 तक चम्बल में शेर की तरह रहे। उन पर लूट के 112 तथा हत्या के 185 मामले दर्ज थे, फिर भी बड़ी इज्जत थी।

आगराMar 27, 2018 / 07:24 pm

Bhanu Pratap

daku man singh

डॉ. भानु प्रताप सिंह
आगरा। डाकू मान सिंह का नाम तो आपने सुना ही होगा। वही डाकू मान सिंह जो 1939 से 1955 तक चम्बल में शेर की तरह रहे। उनके नाम की तूती बोलती थी। उन पर लूट के 112 तथा हत्या के 185 मामले दर्ज थे, इसके बाद भी बड़ी इज्जत थी। गरीब लड़कियों की शादी कराने और भात पहनाने तक का काम किया। यही कारण रहा कि चम्बल के गांव-गांव में उनके ‘भक्त’ थे। डाकू मान सिंह ने ही चिट्टी भेजकर फिरौती मांगने की परम्परा शुरू की थी। उस समय दो से चार हजार रुपये की फिरौती ली जाती थी। उनकी इतनी लोकप्रियता थी कि 1971 में डाकू मान सिंह के नाम से फिल्म भी बनी। ऐसे डाकू मान सिंह का पैतृक गांव खेड़ा राठौर (तहसील बाह , आगरा) में मंदिर है। पत्नी गायत्री देवी के साथ उनकी रोज पूजा अर्चना होती है। इन दिनों मंदिर का मरम्मत चल रही है।
 

मान सिंह राठौर से क्यों बने डाकू मान सिंह

बाह के वरिष्ठ पत्रकार लाखन सिंह राठौर ने बताया कि थाना खेड़ा राठौर के तहत गांव खेड़ा राठौर के रहने वाले थे मान सिंह। उन पर जमीन ठीकठाक थी। गांव के तलफीराम दबंगई करते थे। जमीन की मेड़ पर विवाद था। जब स्थिति बर्दाश्त से बाहर हो गई तो मान सिंह ने उनकी हत्या कर दी। फिर बंदूक लेकर चम्बल के बीहड़ में कूद गए। इसके साथ ही उन्हें डाकू मान सिंह के नाम से जाना जाने लगा। उनके दल में 17 डाकू थे। इनमे अधिकांश परिवारीजन थे। डाकू मान सिंह ने 16 साल तक चम्बल पर एकछत्र राज किया।
अनेक किंवदंतियां

डाकू मान सिंह के बारे में अनेक तरह की किंवदंतियां हैं। डाकू मान सिंह को जब पता चलता कि किसी गरीब पर अत्याचार हो रहा है तो उसकी ढाल बनकर पहुंच जाते थे। वे गांवों में जाकर पंचायतें करते थे। उनका फैसला सबको मंजूर होता था। उन्होंने गांवों में गरीब लड़कियों के विवाह का खर्च उठाया। रास्ते में कोई महिला मिल जाती तो उसकी सुरक्षा करते थे। उनके दल में किसी डाकू का यह साहस नहीं होता था कि किसी महिला को गलत निगाह से देख ले। डाकू होते हुए भी मान सिंह ने कभी भी किसी गरीब को नहीं सताया। उनके इसी गुण के कारण लोगों को डाकू मान सिंह कहने पर ऐतराज होता है। तमाम लोग आज भी कहते हैं कि बागी कहो। उन्होंने दबंगों के खिलाफ बगावत की और पीड़ितों को न्याय दिलाया। महिलाओं की इज्जत के लिए भी डाकू मान सिंह जाने जाते थे। एक बार डाकू सुल्ताना पर दुष्कर्म का आरोप लगा था, इस पर मान सिंह ने उसे अपने दल से निकाल दिया था।
 

1955 में कैसे हुई मौत

यूं तो प्रचारित है कि डाकू मान सिंह की मौत पुलिस से मुठभेड़ में हुई। इसमें कोई शक नहीं है कि मौत पुलिस मुठभेड़ में हुई, लेकिन पुलिस यह सफलता कैसे मिली, इसके पीछे एक कहानी है। वरिष्ठ पत्रकार लाखन सिंह राठौर बताते हैं कि डाकू मान सिंह का दल मध्य प्रदेश के भिंड जिले के गांव लाउन में थे। रात में पूरे दल को दूध के साथ मिलाकर कुछ दे दिया। सभी डाकू अर्ध बेहोशी की हालत में हो गए। पुलिस आ गई। गोलियां चलीं और डाकू दल का सफाया हो गया। जिन्होंने दूध नहीं पिया, वे बच निकले थे। पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार, 1955 में मध्य प्रदेश के भिंड में मेजर बब्बर सिंह थापा ने डाकू मान सिंह का एनकाउंटर किया था।
Daku man singh
तहसीलदार सिंह ने लड़ा था मुलायम के खिलाफ चुनाव

मान सिंह के दल में उनके बेटे तहसीलदार सिंह भी थे। वे भी मुठभेड़ में घायल हुए थे। उन्होंने दूध नहीं पिया था, इसलिए सुरक्षित बच निकले। बाद में उन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया। तहसीलदार सिंह ने रामलहर के दौरान भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर जसवंत नगर विधानसभा क्षेत्र से मुलायम सिंह यादव के खिलाफ चुनाव लड़ा था। यह बात अलग है कि वे चुनाव हार गए थे। तहसीलदार सिंह की भी मौत हो चुकी है। तहसीलदार का पुत्र शेर सिंह था, जो इंदौर (मध्य प्रदेश) में पुलिस क्षेत्राधिकारी रहे। उनकी भी मौत हो चुकी है।
Daku man singh
खेड़ा राठौर में है मंदिर

आगरा जिला मुख्यालय से करीब 85 किलोमीटर दूर है खेड़ा राठौर गांव। इसी गांव के बाहर खेतों में डाकू मान सिंह का मंदिर बना हुआ। पत्नी गायत्री देवी के साथ उनकी मूर्ति स्थापित है। यहां रोज पूजा होती है। आरती की जाती है। मंदिर की देखभाल नरेश सिंह करते हैं। वे इन दिनों अस्वस्थ हैं। चारपाई पर लेटे रहते हैं। आजकल नरेश का पुत्र पूजा करता है। गांव वाले भी कभी-कभी आकर भजन कीर्तन करते हैं।
Daku man singh temple
परिवारीजन

डाकू मान सिंह के बेटे तहसीलदार सिंह का मकान भी यहीं है। वैसे सभी परिजन ग्वालियर में रहते हैं। मान सिंह के भाई नवाब सिंह थे। नवाब सिंह का बेटा रनवीर सिंह पुलिस महानिरीक्षक के पद से रिटायर होने के बाद लखनऊ में रहते हैं। रनवीर सिंह का बेटा भावेश सिंह एक बार चुनाव भी लड़ चुका है। वे भी लखनऊ में रहते हैं। जंडैल सिंह भी यहां से छोड़कर चले गए हैं। नवाब सिंह के पुत्र जसवंत सिंह और उनका पुत्र पूरन सिंह है, जो खेड़ा राठौर में रहते हैं। भिंड में भी उनका आवास है।

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