ये है इतिहास
आगरा में 415 वर्ष पहले पहला क्रिसमस अकबर चर्च में मनाया गया था। वजीरपुरा स्थित इस चर्च को अकबर चर्च के नाम से भी पहचाना जाता है। इस चर्च के इतिहास पर जाएं, तो मुगल शासक ने दीन ए इलाही धर्म के दौरान इस चर्च की नींव रखवाई थी। ईसाई समाज की एक पुस्तक के अनुसार सन् 1562 में ताजनगरी में ईसाईयों का आगमन शुरू हुआ, सम्राट अकबर द्वारा धन और जमीन देने पर सन् 1599 में जुसुइट फादर ने इस चर्च का निर्माण करावाया था।
आगरा में 415 वर्ष पहले पहला क्रिसमस अकबर चर्च में मनाया गया था। वजीरपुरा स्थित इस चर्च को अकबर चर्च के नाम से भी पहचाना जाता है। इस चर्च के इतिहास पर जाएं, तो मुगल शासक ने दीन ए इलाही धर्म के दौरान इस चर्च की नींव रखवाई थी। ईसाई समाज की एक पुस्तक के अनुसार सन् 1562 में ताजनगरी में ईसाईयों का आगमन शुरू हुआ, सम्राट अकबर द्वारा धन और जमीन देने पर सन् 1599 में जुसुइट फादर ने इस चर्च का निर्माण करावाया था।
आगरा के ह्रदय स्थल में बसता है ये चर्च
आगरा के ह्रदय स्थल कहे जाने वाले संजय प्लेस के सामने सेंट पीटर्स चर्च के पास स्थित अकबरी चर्च की भव्य इमारत बनी हुई है। इस चर्च का गुम्बद मुगलिया ढंग से ही बनवाया गया है। बताया जाता है कि जहांगीर की ईसाई धर्म में जब आस्था बढ़ने लगी, तो उन्होंने इस चर्च को भव्यता प्रदान करने के लिए काम कराया। लाहौर चर्च की अपेक्षा यह चर्च छोटा व कम सुंदर था, इसके लिए जहांगीर ने धन देकर चर्च को लाहौर चर्च की अपेक्षा भव्यता प्रदान कराने के लिए निर्माण कराया था।
आगरा के ह्रदय स्थल कहे जाने वाले संजय प्लेस के सामने सेंट पीटर्स चर्च के पास स्थित अकबरी चर्च की भव्य इमारत बनी हुई है। इस चर्च का गुम्बद मुगलिया ढंग से ही बनवाया गया है। बताया जाता है कि जहांगीर की ईसाई धर्म में जब आस्था बढ़ने लगी, तो उन्होंने इस चर्च को भव्यता प्रदान करने के लिए काम कराया। लाहौर चर्च की अपेक्षा यह चर्च छोटा व कम सुंदर था, इसके लिए जहांगीर ने धन देकर चर्च को लाहौर चर्च की अपेक्षा भव्यता प्रदान कराने के लिए निर्माण कराया था।
कई बार टूटा यह चर्च
बताया जाता है कि सन् 1615 में मुगल और पुर्तगालियों के बीच मतभेद हो गया। जिसके बाद जहांगीर ने इस चर्च को तुडवा दिया, इसके बाद फिर निर्माण हुआ, लेकिन 1616 में चर्च में आग लग गई। 1632 में शाहजहां ने पुर्तगालियों के स्थान हुगली पर चढाई कर दी। चर्च के फादर जेसुईट को गिरफतार किया गया। सन् 1634 में शाहजहां ने फादर जेसुईट व अन्य को चर्च तुडवाने की शर्त पर छोडा। सन् 1636 में एक बार फिर शाहजहां ने इस चर्च को बनवाया। सन् 1748 में पार्सियन आक्रमणकारी अहमद शाह अब्दाली ने मुगल सल्तनत को तहस नहस कर दिया, इस चर्च को भी निशाना बनाया गया। बाद में चर्च की मरम्मत समाज के लोगों द्वारा कराई गई और इसे माता मरियम के नाम पर समर्पित कर दिया गया।
बताया जाता है कि सन् 1615 में मुगल और पुर्तगालियों के बीच मतभेद हो गया। जिसके बाद जहांगीर ने इस चर्च को तुडवा दिया, इसके बाद फिर निर्माण हुआ, लेकिन 1616 में चर्च में आग लग गई। 1632 में शाहजहां ने पुर्तगालियों के स्थान हुगली पर चढाई कर दी। चर्च के फादर जेसुईट को गिरफतार किया गया। सन् 1634 में शाहजहां ने फादर जेसुईट व अन्य को चर्च तुडवाने की शर्त पर छोडा। सन् 1636 में एक बार फिर शाहजहां ने इस चर्च को बनवाया। सन् 1748 में पार्सियन आक्रमणकारी अहमद शाह अब्दाली ने मुगल सल्तनत को तहस नहस कर दिया, इस चर्च को भी निशाना बनाया गया। बाद में चर्च की मरम्मत समाज के लोगों द्वारा कराई गई और इसे माता मरियम के नाम पर समर्पित कर दिया गया।
मुगलों की कला से सजा है चर्च
अकबरी चर्च 1851 तक आगरा का प्रमुख चर्च रहा है। प्रथम बार क्रिसमिस भी इसी चर्च में मनाया गया। चर्च की मध्य भाग की दीवार लाल पत्थरों की है, जिस पर नक्काशी की हुई है, यह मुगलकालीन स्थापत्य कला से मेल खाती है। वहीं चर्च का पूरा स्वरूप देखा जाए, तो यह मुगलिया कला से मेल खाता है।
अकबरी चर्च 1851 तक आगरा का प्रमुख चर्च रहा है। प्रथम बार क्रिसमिस भी इसी चर्च में मनाया गया। चर्च की मध्य भाग की दीवार लाल पत्थरों की है, जिस पर नक्काशी की हुई है, यह मुगलकालीन स्थापत्य कला से मेल खाती है। वहीं चर्च का पूरा स्वरूप देखा जाए, तो यह मुगलिया कला से मेल खाता है।