ईसाई समाज की एक पुस्तक के अनुसार सन् 1562 में ताजनगरी में ईसाईयों का आगमन शुरू हुआ, सम्राट अकबर द्वारा धन और जमीन देने पर सन् 1599 में जुसुइट फादर ने इस चर्च का निर्माण करावाया था। इस चर्च का गुम्बद मुगलिया ढंग से ही बनवाया गया है। बताया जाता है कि जहांगीर की ईसाई धर्म में जब आस्था बढ़ने लगी, तो उन्होंने इस चर्च को भव्यता प्रदान करने के लिए काम कराया। लाहौर चर्च की अपेक्षा यह चर्च छोटा व कम सुंदर था, इसके लिए जहांगीर ने धन देकर चर्च को लाहौर चर्च की अपेक्षा भव्यता प्रदान कराने के लिए निर्माण कराया था।
कई बार हमलों से क्षतिग्रस्त हुआ ये चर्च
बताया जाता है कि सन् 1615 में मुगल और पुर्तगालियों के बीच मतभेद हो गया। जिसके बाद जहांगीर ने इस चर्च को तुड़वा दिया, इसके बाद फिर निर्माण हुआ, लेकिन 1616 में चर्च में आग लग गई। 1632 में शाहजहां ने पुर्तगालियों के स्थान हुगली पर चढाई कर दी। चर्च के फादर जेसुईट को गिरफ्तार किया गया। सन् 1634 में शाहजहां ने फादर जेसुईट व अन्य को चर्च तुड़वाने की शर्त पर छोड़ा। सन् 1636 में एक बार फिर शाहजहां ने इस चर्च को बनवाया। सन् 1748 में पार्सियन आक्रमणकारी अहमद शाह अब्दाली ने मुगल सल्तनत को तहस नहस कर दिया, इस चर्च को भी निशाना बनाया गया। बाद में चर्च की मरम्मत समाज के लोगों द्वारा कराई गई और इसे माता मरियम के नाम पर समर्पित कर दिया गया।
अकबरी चर्च 1851 तक आगरा का प्रमुख चर्च रहा है। प्रथम बार क्रिसमिस भी इसी चर्च में मनाया गया। चर्च की मध्य भाग की दीवार लाल पत्थरों की है, जिस पर नक्काशी की हुई है, यह मुगलकालीन स्थापत्य कला से मेल खाती है। वहीं चर्च का पूरा स्वरूप देखा जाए, तो यह मुगलिया कला से मेल खाता है।