अफजल खां को भेजा गया
आरएसएस की केशव शाखा (शास्त्रीपुरम, सिकंदरा, आगरा) पर मुख्य वक्ता सुरेन्द्र सिंह ने बताया कि बीजापुर की गद्दी पर आदिलशाल विराजमान था। शिवाजी महाराज ने बीजापुर के तमाम इलाकों पर कब्जा कर लिया था। 1659 ईसवी में बीजापुर की गद्दी पर आदिलशाह द्वितीय बैठा हुआ था। शिवाजी उसके लिए संकट बन गए थे। आदिलशाह को समझ आ गया कि शिवाजी को समाप्त नहीं किया तो खतरा बन जाएगा। इससे पहले भी शिवाजी को मारने की योजना कई बार बनाई लेकिन सफलता नहीं मिली। अंततः शिवाजी का वध करने के लिए अफजल खान को एक नवम्बर, 1659 को भेजा गया। वह अत्यंत दुष्ट स्वभाव का था। अफजल खान बीजापुर की आदिल शाही हुकूमत का बेहतरीन योद्धा था, जो हर तरह की रणनीति अपनाने में माहिर था। वह विशाल सेना के साथ मंदिरों को ध्वस्त करता हुआ प्रतापगढ़ के निकट पहुंचा। प्रतापगढ़ के किले में ही शिवाजी थे। यहां तक किसी सेना का पहुंचना नामुमकिन था।
आरएसएस की केशव शाखा (शास्त्रीपुरम, सिकंदरा, आगरा) पर मुख्य वक्ता सुरेन्द्र सिंह ने बताया कि बीजापुर की गद्दी पर आदिलशाल विराजमान था। शिवाजी महाराज ने बीजापुर के तमाम इलाकों पर कब्जा कर लिया था। 1659 ईसवी में बीजापुर की गद्दी पर आदिलशाह द्वितीय बैठा हुआ था। शिवाजी उसके लिए संकट बन गए थे। आदिलशाह को समझ आ गया कि शिवाजी को समाप्त नहीं किया तो खतरा बन जाएगा। इससे पहले भी शिवाजी को मारने की योजना कई बार बनाई लेकिन सफलता नहीं मिली। अंततः शिवाजी का वध करने के लिए अफजल खान को एक नवम्बर, 1659 को भेजा गया। वह अत्यंत दुष्ट स्वभाव का था। अफजल खान बीजापुर की आदिल शाही हुकूमत का बेहतरीन योद्धा था, जो हर तरह की रणनीति अपनाने में माहिर था। वह विशाल सेना के साथ मंदिरों को ध्वस्त करता हुआ प्रतापगढ़ के निकट पहुंचा। प्रतापगढ़ के किले में ही शिवाजी थे। यहां तक किसी सेना का पहुंचना नामुमकिन था।
शिवाजी की शर्त
अफजल खान ने शिवाजी को मिलने का संदेश भेजा। शिवाजी उसकी चालाकी को जानते थे। फिर दोनों में मुलाकात तय हुई। शिवाजी ने शर्त रखी कि किसी के पास कोई शस्त्र नहीं होगा। सेना नहीं होगी। साथ में सिर्फ एक अंगरक्षक होगा। अफजल खान अपने हाथ में कटारी छिपाकर लाया। शिवाजी भी कम होशियार नहीं थे। उन्होंने यह बात विचार कर ली थी कि अफजल खान कोई न कोई षड्यंत्र कर सकता है। शिवाजी ने अंगरखा के अंदर कवच पहना। दाएं हाथ में बघनखा छिपा लिया।
अफजल खान ने शिवाजी को मिलने का संदेश भेजा। शिवाजी उसकी चालाकी को जानते थे। फिर दोनों में मुलाकात तय हुई। शिवाजी ने शर्त रखी कि किसी के पास कोई शस्त्र नहीं होगा। सेना नहीं होगी। साथ में सिर्फ एक अंगरक्षक होगा। अफजल खान अपने हाथ में कटारी छिपाकर लाया। शिवाजी भी कम होशियार नहीं थे। उन्होंने यह बात विचार कर ली थी कि अफजल खान कोई न कोई षड्यंत्र कर सकता है। शिवाजी ने अंगरखा के अंदर कवच पहना। दाएं हाथ में बघनखा छिपा लिया।
बघनखा से अफजल खान का पेट फाड़ दिया
योजनानुसार, 10 नवम्बर 1659 को निश्चित समय प्रतापगढ़ दुर्ग के नीचे ढालू जमीन पर शिवाजी और अफजल खां की भेंट हुई। अफजल खां ने शिवाजी को गले लगाया। अफजल खां लम्बा था। शिवाजी छोटे कद के थे। शिवाजी उसके सीने तक ही आ पाए और उसने पीठ में कटारी मारी। कवच पहना होने के कारण वार का कोई प्रभाव नहीं हुआ। इसी दौरान शिवाजी महाराज ने अफजल खान के पेट में बघनखा घुसेड़ दिया। अफजल खां वहीं पर ढेर हो गया। उसकी सेना पर भी हमला कर दिया। इतिहास में इस लड़ाई को प्रतापगढ़ युद्ध के नाम से जाना जाता है।
योजनानुसार, 10 नवम्बर 1659 को निश्चित समय प्रतापगढ़ दुर्ग के नीचे ढालू जमीन पर शिवाजी और अफजल खां की भेंट हुई। अफजल खां ने शिवाजी को गले लगाया। अफजल खां लम्बा था। शिवाजी छोटे कद के थे। शिवाजी उसके सीने तक ही आ पाए और उसने पीठ में कटारी मारी। कवच पहना होने के कारण वार का कोई प्रभाव नहीं हुआ। इसी दौरान शिवाजी महाराज ने अफजल खान के पेट में बघनखा घुसेड़ दिया। अफजल खां वहीं पर ढेर हो गया। उसकी सेना पर भी हमला कर दिया। इतिहास में इस लड़ाई को प्रतापगढ़ युद्ध के नाम से जाना जाता है।