इस प्रकार करें व्रत
अनंत चतुर्दशी पर व्रत, पूजा करने का तरीका बताया डॉ. अरविंद मिश्र ने। उन्होंने बताया कि सुबह सुबह स्नान करने के बाद व्रत करने का संकल्प करें। संभव हो सके, तो संकल्प और पूजन किसी पवित्र नदी या फिर तालाब के तट पर करें, शास्त्रों में कहा गया है की व्रत का संकल्प और पूजन किसी पवित्र नदी या फिर तलाब के तट पर ही करना चाहिए। यदि ये संभव न हो सके तो फिर घर में भी कलश स्थापित कर सकते हैं। कलश पर शेषनाग के ऊपर लेटे भगवान विष्णु जी की मूर्ति या फोटो स्थापित करें।
ऐसे करें पूजन
भगवन श्री विष्णु जी के सामने चौदह गांठों वाला अनंत सूत्र (डोरा) को एक जल पत्र खीरा से लप्पेट कर घुमाएं। कहते हैं की इसी तरह समुद्र मंथन किया गया था, जिससे अनंत भगवान मिले थे। मंथन के बाद ॐ अनंतायनम: मंत्र से भगवान विष्णु और अनंत सूत्र की पूरी विधि से पूजा करें। पूजा के बाद अनंत सूत्र को मंत्र पढ़ने के बाद पुरुष अपने दाहिने हाथ में और स्त्री बाएं हाथ में बांध लें।
भगवन श्री विष्णु जी के सामने चौदह गांठों वाला अनंत सूत्र (डोरा) को एक जल पत्र खीरा से लप्पेट कर घुमाएं। कहते हैं की इसी तरह समुद्र मंथन किया गया था, जिससे अनंत भगवान मिले थे। मंथन के बाद ॐ अनंतायनम: मंत्र से भगवान विष्णु और अनंत सूत्र की पूरी विधि से पूजा करें। पूजा के बाद अनंत सूत्र को मंत्र पढ़ने के बाद पुरुष अपने दाहिने हाथ में और स्त्री बाएं हाथ में बांध लें।
अनंत सूत्र बांधने के दौरान इस मंत्र का करें उच्चारण
अनंन्त सागर महासमुद्रे मग्नान्समभ्युद्धर वासुदेव।
अनंत रूपे विनियोजितात्माह्यनन्त रूपायनमोनमस्ते। अनंतसूत्र बांध के बाद ब्राह्मणों को नैवेद्य (भोग) में निवेदित पकवान देने के बाद ही स्वयं सपरिवार प्रसाद ग्रहण करें।
अनंन्त सागर महासमुद्रे मग्नान्समभ्युद्धर वासुदेव।
अनंत रूपे विनियोजितात्माह्यनन्त रूपायनमोनमस्ते। अनंतसूत्र बांध के बाद ब्राह्मणों को नैवेद्य (भोग) में निवेदित पकवान देने के बाद ही स्वयं सपरिवार प्रसाद ग्रहण करें।
अनंत चतुर्दशी व्रत कथा सुनें ज्योतिषाचार्य डॉ. अरविंद मिश्र ने बताया कि पौराणिक ग्रंथों के अनुसार प्राचीन समय में सुमंत नाम के एक ऋषि हुआ करते थे, उनकी पत्नी का नाम था दीक्षा। कुछ समय के पश्चात दीक्षा ने एक सुंदर कन्या को जन्म दिया, जिसका नाम रखा गया सुशीला, लेकिन होनी का खेल कुछ ही समय के पश्चात सुशीला के सिर से मां का साया उठ गया। अब ऋषि को बच्ची के लालन-पालन की चिंता होने लगी तो उन्होंने दूसरा विवाह करने का निर्णय लिया। उनकी दूसरी पत्नी और सुशीला की सौतेली मां का नाम कर्कशा था। वह अपने नाम की तरह ही स्वभाव से भी कर्कश थी। जैसे तैसे प्रभु कृपा से सुशीला बड़ी होने लगी और वह दिन भी आया जब ऋषि सुमंत को उसके विवाह की चिंता सताने लगी। काफी प्रयासों के पश्चात कौण्डिन्य ऋषि से सुशीला का विवाह संपन्न हुआ, लेकिन यहां भी सुशीला को दरिद्रता का ही सामना करना पड़ा। उन्हें जंगलों में भटकना पड़ रहा था। एक दिन उन्होंने देखा कि कुछ लोग अनंत भगवान की पूजा कर रहे हैं और हाथ में अनंत रक्षासूत्र भी बांध रहे हैं। सुशीला ने उनसे अनंत भगवान की उपासना के व्रत के महत्व को जानकर पूजा का विधि विधान पूछा और उसका पालन करते हुए अनंत रक्षासूत्र अपनी कलाई पर भी बांध लिया। देखते ही देखते उनके दिन फिरने लगे। कौण्डिन्य ऋषि में अंहकार आ गया कि यह सब उन्होंने अपनी मेहनत से निर्मित किया है काफी हद तक सही भी था प्रयास तो बहुत किया था। अगले ही वर्ष ठीक अनंत चतुर्दशी की बात है सुशीला अनंत भगवान का शुक्रिया कर उनकी पूजा आराधना कर अनंत रक्षासूत्र को बांध कर घर लौटी तो कौण्डिन्य को उसके हाथ में बंधा वह अनंत धागा दिखाई दिया और उसके बारे में पूछा। सुशीला ने खुशी-खुशी बताया कि अनंत भगवान की आराधना कर यह रक्षासूत्र बंधवाया है इसके पश्चात ही हमारे दिन बहुरे हैं। इस पर कौण्डिन्य खुद को अपमानित महसूस करने लगे कि उनकी मेहनत का श्रेय सुशीला अपनी पूजा को दे रही है। उन्होंने उस धागे को उतरवा दिया। इससे अनंत भगवान रूष्ट हो गये और देखते ही देखते कौण्डिन्य अर्श से फर्श पर आ गिरे। तब एक विद्वान ऋषि ने उन्हें उनके किये का अहसास करवाया और कौण्डिन्य को अपने कृत्य का पश्चाताप करने की कही। लगातार चौदह वर्षों तक उन्होंने अनंत चतुर्दशी का उपवास रखा उसके पश्चात भगवान श्री हरि प्रसन्न हुए और कौण्डिन्य व सुशीला फिर से सुखपूर्वक रहने लगे।