इस बारे में ज्योतिषाचार्य डॉ. अरबिंद मिश्र का कहना है कि इस व्रत को रहने से परिवार में समृद्धि बनी रहती है इसीलिए इस व्रत को अन्नदा एकादशी भी कहा जाता है। इसके अलावा व्यक्ति की मनचाही मुराद पूरी होती है। इस व्रत में भगवान विष्णु जी के उपेन्द्र रुप की विधिवत पूजा की जाती है।
जानें पूजन और व्रत-विधि – जो लोग यह व्रत रखना चाहते हैं वे आज से ही इसके नियमों का पालन करें। रात में सात्विक भोजन खाएं।
– एकादशी के दिन सुबह सूर्योदय के समय स्नान करके भगवान विष्णु के सामने घी का दीपक जलाकर, फलों तथा फूलों से भक्तिपूर्वक पूजा करें और व्रत का संकल्प लेंं।
– भगवान की पूजा के बाद विष्णु सहस्त्रनाम या भगवान विष्णु के मंत्र का जाप करें। एकादशी व्रत कथा पढें।
– निर्जल व्रत रहना ज्यादा अच्छा है लेकिन यदि बीमार हैं तो फलाहार ले सकते हैं। यदि निर्जल व्रत रहें तो शाम को भगवान की पूजा के बाद फलाहार, जल आदि ले सकते हैं।
– इस व्रत में रात्रि जागरण करने का विशेष महत्व है। रात में भगवान के भजन कीर्तन या फिर मंत्र आदि का जाप कर सकते हैं।
– गाय और बछड़ों का पूजन करें व उन्हें गुड़ और घास खिलाएं।
– द्वादशी तिथि के दिन सुबह स्नान करके ब्राह्मण को भोजन करवाएं फिर व्रत खोलें। द्वादशी के दिन बैंगन नहीं खाएं।
ये है व्रत कथा सतयुग में सूर्यवंशी राजा हरिश्चन्द्र ने अपने वचन की खातिर अपना सम्पूर्ण राज्य राजऋषि विश्वामित्र को दान कर दिया। दक्षिणा देने के लिए अपनी पत्नी एवं पुत्र को ही नहीं स्वयं तक को दास के रूप में बेच डाला। इन कष्टों से गुजरने के दौरान उन्हें एक दिन ऋषि गौतम मिले। उन्होंने अजा एकादशी रहने का सुझाव दिया। उनकी बात मानकर राजा हरिश्चन्द्र ने सामर्थ्यानुसार इस व्रत को किया, जिसके फलस्वरूप उन्हें खोया हुआ परिवार और साम्राज्य उसी दिन प्राप्त हो गया और सारे कष्ट दूर हो गए। कहा जाता है कि इस व्रत को रहने से पिछले जन्म के भी पाप कट जाते हैं और अश्वमेध यज्ञ के समान पुण्य प्राप्त होता है।