श्री कृष्ण के निर्देश पर युधिष्ठिर ने की थी स्थापना
मान्यता है कि इस मंदिर की स्थापना महाभारत युद्ध में विजय पाने के लिए भगवान कृष्ण के निर्देश पर महाराजा युधिष्ठिर ने की थी। मान्यता यह भी है कि यहाँ की बगलामुखी प्रतिमा स्वयंभू है। प्राचीन तंत्र ग्रंथों में दस महाविद्याओं का उल्लेख है, इनमें से एक है बगलामुखी। मां भगवती बगलामुखी का महत्व समस्त देवियों में सबसे विशिष्ट है। विश्व में इनके सिर्फ तीन ही महत्वपूर्ण प्राचीन मंदिर हैं, जिन्हें सिद्धपीठ कहा जाता है। यह मन्दिर उन्हीं से एक बताया जाता है।
ऐतिहासिक धरोहर का रोचक है इतिहास
इस ऐतिहासिक मंदिर का इतिहास भी बेहद रोचक है। मंदिर के बाहर सोलह स्तम्भों वाला एक सभामंडप है जो आज से करीब 252 वर्ष से पुराना है। संवत 1816 में पंडित ईबुजी दक्षिणी कारीगर श्रीतुलाराम ने इसे बनवाया था। इसी सभामंडप में एक कछुआ भी स्थित है, जिसका मुख देवी की ओर है। यहां पुरातन काल से देवी को बलि चढ़ाने की परम्परा है। यह मंदिर श्मशान क्षेत्र में स्थित है। बगलामुखी माता तंत्र की देवी हैं, अत: यहां पर तांत्रिक अनुष्ठानों का महत्व अधिक है।
मनोकामना पूरी होने पर भक्त कराते हैं हवन-पूजन
स्थानीय पंडित कैलाश नारायण शर्मा के अनुसार यह बहुत ही प्राचीन मंदिर है। 1815 में इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया गया था। मंदिर में लोग अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए एवं विभिन्न क्षेत्रों में विजय प्राप्त करने के लिए यज्ञ, हवन या पूजन-पाठ कराते हैं।
इस राजा ने बनवाई थी 80 फीट ऊंची दीप मालिका
मंदिर के सामने लगभग 80 फीट ऊँची एक दीप मालिका बनी हुई है। इस दीप मालिका का निर्माण राजा विक्रमादित्य ने करवाया था। प्रांगण में ही एक दक्षिणमुखी हनुमान का मंदिर, एक उत्तरमुखी गोपाल मंदिर तथा पूर्वर्मुखी भैरवजी का मंदिर भी स्थित है। यहां के सिंहमुखी मुख्य द्वार का निर्माण 20 वर्ष पूर्व कराया गया था।
कैसे पहुंचें
रेल मार्ग से : रेल के माध्यम से 30 किलोमीटर दूर स्थित देवास या करीब 60 किलोमीटर मक्सी पहुंच कर भी शाजापुर जिले के गांव में नलखेड़ा पहुंच सकते हैं।
सड़क मार्ग से : इंदौर से करीब 165 किलोमीटर दूर नलखेड़ा पहुंचने के लिए देवास या उज्जैन के रास्ते से जाने के लिए बस और टैक्सी की मदद ली जा सकती है।
हवाई मार्ग : नलखेड़ा के बगलामुखी मंदिर स्थल के सबसे निकटतम इंदौर का एयरपोर्ट है।