मुगलसराय से गया, इलाहाबाद और बक्सर लाइन पर ट्रेनें हैं बदहालपैसेंजर ट्रेनों का कोई पुरसाहाल नहीं, ट्रेनों की लेट-लतीफी से यात्री हलकान
चंदौली. प्रभु कि कृपा से रेलवे डिपार्टमेंट तो सरपट दौड़ रहा है पर ट्रेनें अभी भी पुराने ढर्रे पर ही चल रही हैं। हाईस्पीड ट्रन चलाने का सपना दिखाया जा रहा है पर जो ट्रेनें मौजूद हैं उनकी स्थिति सुधारने के लिये कोई कवायद नहीं हो रही। इसका जीता-जागता उदाहरण है चंदौली मंझवार स्टेशन, जिसकी मुगलसराय से दूरी महज 16 किमी है। पर वहां ट्रेन पहुंचने में तकरीबन डेढ़ घंटे लगते हैं। यही हाल पटना रूट के दिलदारनगर जमानिया का भी है।
कभी इन स्टेशनों के बीच चलने वाली डीएमयू और ईएमयू की स्पीड सुपरफास्ट को मात देती थी। गाड़ियां समय से पहले स्टेशन पर पहुंचती थीं। पर यह कुछ दिन ही चला। इन स्टेशनों पर ज्यदातर पैसेंजर ट्रनेें ही रुकती हैं और जो एक्सप्रेस ट्रेनें रुकती हैं उनका भी कोई पुरसाहाल नहीं। ऐसा नहीं कि यह रूट कोई जंगली या फिर मुख्य लाइन से अलग हो। देश का सबसे व्यस्त और प्रमुख हावड़ा दिल्ली रूट है, जिस पर सबसे अधिक ट्रेनें गुजरती हैं।
नई दिल्ली से पटना व गया रेलखंड देश का सबसे व्यस्त रेल रूट है और पर सैंकड़ों ट्रेनों का आवागमन रोज होता है। कमोबश यही हाल रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा के संसदीय क्षेत्र के स्टेशन दिलदारनगर का भी है। वहां से मुगलसराय की दूरी तो मात्र 58 किमी है, पर दर्जन भर से अधिक ट्रेनों को अक्सर इतनी सी दूरी तय करने में दो से ढाई घंटे लग जाते हैं। मुगलसराय से वाराणसी रूट की पैसेंजर ट्रेनों की भी यही कहानी है, जबकि मुगलसराय से हजारों एमएसटी धारक रोजाना वाराणसी रोजगार के लिये जाते हैं। मुनाफे वाली पैसेंजर ट्रेन होने के बावजूद भी इसे क्यों लेट चलाया जाता है यह समझ से परे है। दुर्दशा इलाहाबाद वाया मिर्जापुर की भी ठीक नहीं। कभी हावड़ा जोधपुर एक्सप्रेस, कालका मेल सरीखी सुपरफास्ट ट्रेनें मुगलसराय से इलाहाबाद महज दो घंटे में पहुंचा देती थीं। पर इस रूट पर कुछ साल पहले जब से एसएसआई वर्क शुरू हुआ उसके बाद से इस रूट पर सुपरफास्ट ट्रेनें भी दो घंअे की जगह चार से छह घंटे लेने लगीं।
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