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प्रत्यक्ष : विश्वास

कृतवर्मा और वाह्लीक ने मिलकर सात्यकी को रोका। अंबुष्ट, अभिमन्यु से जा भिड़ा। युद्ध की बुझती-बुझती ज्वाला, जैसे फिर से जाग ही नहीं गई थी, पूर्णत: भड़क भी उठी थी। आज भीम की गदा, द्रोण से भी नहीं रुक पा रही थी। 

बिलासपुरOct 29, 2015 / 03:21 am

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कृतवर्मा और वाह्लीक ने मिलकर सात्यकी को रोका। अंबुष्ट, अभिमन्यु से जा भिड़ा। युद्ध की बुझती-बुझती ज्वाला, जैसे फिर से जाग ही नहीं गई थी, पूर्णत: भड़क भी उठी थी। आज भीम की गदा, द्रोण से भी नहीं रुक पा रही थी। 

भीम ने अपने सामने धृतराष्ट्र के पुत्र देखे तो जैसे उसके भीतर की समस्त हिंसा, प्रतिशोध भावना, अब तक का अपमानित अहंकार अपनी पूरी क्रूरता के साथ जाग उठे थे। तुम आचार्य को रोकना पुत्र! उसने घटोत्कच से कहा और धृतराष्ट्र-पुत्रों पर टूट पड़ा। उसने व्यूढोरस्क, कुंडलीक, अनाधृष्टि, कुंडभेदिन वैराट, दीर्घलोचन, दीर्घबाहु, सुबाहु और कनकध्वज की हत्या कर दी।

दुर्योधन ने देखा, सेना के सारे महारथियों के देखते-देखते भीम ने उसके नौ और भाइयों की हत्या कर दी थी। युद्ध अपनी भयंकरतम स्थिति में था और रात्रि का आगमन हो गया था। उसकी इच्छा हो रही थी कि अपने भाइयों का प्रतिशोध लिए बिना वह युद्ध से न हटे। 

पांडवों का कोई एक भाई तो धराशायी हो किंतु अधिकांश सैनिक दिन भर के परिश्रम से थककर चूर-चूर हो चुके थे। कितने ही भाग गए थे और अंधकार में कुछ भी न दिखने के कारण अनेक कुचले भी गए थे। वह चाहे कितना ही दुखी और उत्तेजित क्यों न हो। 

अब आज और युद्ध नहीं हो सकेगा। दोनों सेनाएं अपने स्कंधावारों में लौट गईं। दुर्योधन अपने शिविर में दु:शासन, कर्ण और शकुनि के साथ बैठा था। वह दुखी ही नहीं, बहुत हताश भी था। अपना क्षोभ उससे संभाला नहीं जा रहा था।

भीष्म और द्रोण के विषय में तो मैं जानता ही था, सहसा वह आक्रोशपूर्वक बोला, आज मैं देख रहा हूं कि जाने क्यों कृपाचार्य, शल्य और भूरिश्रवा भी पांडवों को कोई बाधा नहीं पहुंचाते। ये कैसे योद्धा हैं? हम इनकी गिनती महारथियों और अतिरथियों में करते रहें और ये लोग अपने शत्रुओं का बचाव करते रहें तो हम जीत कैसे सकते हैं? जिस सेना में इतना आंतरिक विरोध हो और शत्रुओं के प्रति सहानुभूति हो, वह विजय कैसे प्राप्त कर सकती है। 

पांडव स्वयं को अवध्य समझकर मेरी सेना का संहार कर रहे हैं। सहसा वह कर्ण की ओर मुड़ा, और राधेय! तुम युद्ध से मुंह मोड़कर रूठी प्रियतमा के समान अपने शिविर में बैठे हो। तुम नहीं देख रहे कि पांडव मुझे परास्त कर रहे हैं? द्रोण देखते रहते हैं और भीम मेरे भाइयों का वध करता रहता है।

 आज तक मेरे पच्चीस भाइयों का वध कर चुका है वह और तुम पितामह के प्रति अपने विरोध पर अड़े हो। इधर मेरा अपना जीवन संदिग्ध हो उठा है। ऐसे में मैं युद्ध कैसे कर सकता हूं। ग्यारह अक्षौहिणी सेना का स्वामी मैं और मेरा जीवन भी सुरक्षित नहीं है क्योंकि मैं परायों को अपना समझ कर उनसे घिरा हुआ युद्ध कर रहा हूं। तुम तो कहते थे कि तुम मेरे मित्र हो।

लगा, दुर्योधन अभी रो देगा। कर्ण के चेहरे पर एक कठोर भाव उपजा। उसकी आंखों में दृढ़ता थी, उस भीष्म को हटा दो। मैं सत्य की शपथ खाकर कहता हूं कि मैं उन सोमकों सहित सारे कुंतीपुत्रों को एक साथ मार डालूंगा। कर्ण को लगा कि उसके अपने मन में से ही किसी ने उसे टोका है। सारे कुंतीपुत्रों का वध वह कैसे कर सकता है? वे उसके भाई हैं। 

उसने अपनी जननी को चार पांडवों के प्राण न लेने का वचन दिया है। वह भी तो दुर्योधन को वैसा ही पराया लगेगा जिन्हें वह अपना समझता है पर जैसे उसके अहंकार ने हठपूर्वक उस स्वर को दबा दिया। वह आज वृद्ध भीष्म को पराजित करके ही रहेगा। 

भीष्म देखें कि कर्ण क्या कर सकता है। वह दुर्योधन को पितामह से भी अधिक विश्वसनीय लग सकता है। मैं पूरे विश्वास के साथ बता रहा हूं कि भीष्म पांडवों का वध तो नहीं ही करेंगे, वे उनकी गंभीर क्षति भी नहीं करेंगे।

क्रमश: – नरेन्द्र कोहली

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