फ्रंटियर्स इन मेडिसिन जर्नल में प्रकाशित शोध जर्मनी, इंग्लैंड और स्पेन के शोधकर्ताओं ने मिलकर किया है। शोध के लिए खोपडिय़ां कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के डकवर्थ कलेक्शन से ली गईं। इनमें एक खोपड़ी 2687 से 2345 ईसा पूर्व 30 से 35 साल के युवक की है, जबकि दूसरी 663 से 343 ईसा पूर्व की 50 साल से अधिक उम्र की महिला की है।
ऐसे पता लगाया
शोधकर्ताओं को खोपड़ी में बड़े घाव के निशान मिले, जो असामान्य रूप से बढ़ते ऊतकों का संकेत देता है। घाव के आसपास अन्य घाव के निशान हैं, जो बीमारी फैलने की ओर इशारा करते है। घावों के आसपास चाकू के निशान मिले, जो दर्शाते हैं कि कैंसर की गांठों को निकालने की कोशिश की गई थी। शोध की लेखिका तातियाना टोंडिनी ने बताया कि हम जानना चाहते थे कि प्राचीन काल में कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी थी या नहीं। यदि थी तो यह कितनी आम थी और उस समय के लोग इसका इलाज कैसे करते थे।
ऑपरेशन के निशान से मिले कई संकेत
शोध के सह-लेखक अल्बर्ट इसिड्रो ने कहा, हमें कैंसर के ट्यूमर से ग्रस्त लोगों की खोपडिय़ों पर ऑपरेशन के निशान मिले। इससे लगता है कि मिस्र के डॉक्टर्स हजारों साल पहले कैंसर जैसी बीमारियों को समझने और इलाज करने की कोशिश कर रहे थे।