फल कोई ज़माने में नहीं आम से बेहतर,
करता है सना आम की ग़ालिब सा सुख़नवर इक़बाल का एक शेर क़सीदे के बराबर,
छिलकों पे भिनक लेते हैं सागर से फटीचर वो लोग जो आमों का मज़ा पाये हुए हैं,
बौराने से पहले ही बौराए हुए हैं
करता है सना आम की ग़ालिब सा सुख़नवर इक़बाल का एक शेर क़सीदे के बराबर,
छिलकों पे भिनक लेते हैं सागर से फटीचर वो लोग जो आमों का मज़ा पाये हुए हैं,
बौराने से पहले ही बौराए हुए हैं
यहां हम केवल आम फल के बारे में शायरी की बात नहीं कर रहे हैं, बल्कि यहां हम फलों के राजा के बारे में राजाओं की कहानियां बताने का इरादा रखते हैं।
आम के गूदे में मिठास
चौसा आम जुलाई के महीने में बाजार में आता है. चौसा आम का लोगों को बेसब्री से इंतजार रहता है। चौसा आम के गूदे में इतनी मिठास होती है कि इसे खाने के बाद स्वाद और मन दोनों ही मीठे हो जाते हैं । यह आम दिखने में बहुत सुंदर और मनमोहक महक वाला होता हैयह बाजार में इस आम की आवक तब होती है जब अन्य किस्म के आम बाजार में आना बंद हो जाते हैं. जिससे इस आम की मांग और भी बढ़ जाती है।चौसा अब पाकिस्तान में
तो सबसे पहले नाम बताते हैं चौसा मैंगो। चौसा आम पहले भारत में बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश की खासियत हुआ करता था, लेकिन अब यह पाकिस्तान के रहीमयार खान और मुल्तान शहरों में व्यापक रूप से पाया जाता है।इस आम के नाम कैसे कैसे
इतिहास के अनुसार भारत के पूर्वी उत्तर प्रदेश से इसके विशेष संबंध के आधार पर पहले इसे ग़ाज़ीपुरिया कहा जाता था, जैसे आज आम की एक विशेष किस्म को बोम्बिया और दूसरी को कलकतिया कहा जाता है। बॉम्बे आम मौसम की शुरुआत में आता है जबकि कलकत्ता बड़ा और गूदेदार होता है, बरसात के मौसम में देर से आता है। इसका स्वाद कुछ खास नहीं बल्कि मीठा और पेट भरने वाला होता है, शायद मिर्ज़ा ग़ालिब को यह ज़्यादा पसंद आया होगा जिन्होंने आमों के बारे में कहा था कि ये बड़े और मीठे होते हैं।शेरशाह सूरी ने चौसा नाम दिया
तो जून में पीले रंग में आने वाले इस ग़ाज़ीपुरिया आम को अफगान राजा शेरशाह सूरी ने चौसा नाम दिया था। दरअसल, जब उन्होंने 1539 की लड़ाई में हुमायूं को बिहार के चौसा में हराया था, तो उन्होंने अपने पसंदीदा आम के साथ जीत का जश्न मनाया था और इस आम का नाम ‘चौसा’ रखा था, जिसे अब ‘चौसा ‘ के नाम से भी जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने ये आम अपनी जीत के उपहार के रूप में अन्य सरदारों को भेजे थे। चौसा युद्ध ने जहां शेरशाह सूरी के साम्राज्य को मजबूत किया, वहीं चौसा का महत्व भी बढ़ गया।औरंगज़ेब ने आम के लिए डांटा
जब मुग़ल बादशाह शाहजहां दक्कन में बुरहानपुर का गवर्नर थे, तब उन्होंने आम के दो बाग लगवाये, जिनमें से दो उन्हें बहुत पसंद आये। जब वे राजा बने तो दक्कन की जिम्मेदारी उनके बेटे औरंगजेब पर आ गई। औरंगज़ेब को सख्त निर्देश थे कि इस आम की विशेष निगरानी की जाए और वह आगरा या दिल्ली में जहां भी हों, फल उन्हें भेजे जाएं।आम रक्षक नियुक्त किए
तब राजा के निर्देश पर आम के मौसम में इसकी निगरानी के लिए विशेष रूप से रक्षक नियुक्त किए गए और अन्य दिनों में इन पेड़ों की विशेष देखभाल की जाती थी ताकि इन पर अच्छे फल लगें।जब औरंगज़ेब को जवाब देना पड़ा
एक बार जब इन पेड़ों के फल उसके पास भेजे गए तो वह मात्रा और संख्या में कम थे और थोड़े खराब हो गए थे, इसलिए शाहजहां ने अपने बेटे को डांटा। अदबे आलमगीरी के मुताबिक, औरंगज़ेब ने जवाब में जो पत्र लिखा था, उसमें उन्होंने लिखा था कि’इसमें उनका कोई दोष नहीं है कि फल खराब मौसम, हवा और ओले के कारण खराब हो गए हैं।चौसा आम को जीआई टैग
चौसा आम की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने 2020 में ही इसे जीआई टैग दिलाने के प्रयास शुरू कर दिया था, क्योंकि उत्तर प्रदेश के मलीहाबादी दशहरी आम को जीआई टैग मिलने के बाद अब केंद्रीय कृषि मंत्रालय चौसा आम की ओर बढ़ रहा है, ताकि जीआई टैग के जरिए चौसा आम की पहचान ना सिर्फ देश, बल्कि विदेशों में भी बढ़ सके। ऐसे में आम के व्यापारी और इसकी खेती कर रहे किसान भी लगातार जीआई टैग की मांग करते नजर आ रहे हैं। ये भी पढ़ें: US Presidential Election 2024: बाइडन और ट्रंप की दिलचस्प डिबेट में कुछ यूं हुआ कि बस देखते और सुनते रह गए, जानिए एनआरआई हस्ती का विश्लेषण Fish Import:मछलियों के शौक से हुआ यह सितम, लगा लाखों का जुर्माना