CPEC पर 2022 तक चीन पाकिस्तान में 25.4 अरब डॉलर का निवेश कर चुका है। चीन के लिए यह परियोजना रणनीतिक महत्व की है। यह उसके लिए पाकिस्तान के कब्जे वाली कश्मीर (PoK) और पाकिस्तान की लंबाई तक राजमार्गों के जरिए हिंद महासागर तक सीधी पहुंच प्रदान करेगा।
क्यों ठप पड़ी हैं CPEC की योजनाएं
पाकिस्तान (Pakistan) में भ्रष्टाचार और लालफीताशाही, देश में चल रही राजनीतिक उथल-पुथल और बलूचों के हिंसक विरोध के कारण बलूचिस्तान के ग्वादर में CPEC प्रोजेक्ट को काफी नुकसान पहुंचाया है। अभी तक दर्जनों चीनी इंजीनियर आतंकवादी घटनाओं मे मारे गए। हाशिए पर पड़े बलूच लोगों का आरोप है कि उनकी जमीनें छीनी जा रही हैं, न कोई आर्थिक लाभ मिल रहा ना रोजगार। प्रोजेक्ट के सारे लाभ अमीरों को मिल रहे हैं।
न रोजगार, न आर्थिक लाभ
अमरीकी रिसर्च लैब एडडाटा के अर्थशास्त्री अम्मार मलिक का कहना है कि सीपीईसी को लेकर अनुमान लगाया गया था कि इससे पाकिस्तानियों के लिए 20 लाख से ज्यादा रोजगार के अवसर पैदा होंगे, लेकिन सरकारी आंकड़ों के अनुसार अब तक 250,000 से भी कम नौकरियां पैदा हुई हैं।
कर्ज : 126 अरब डॉलर, इसमें सबसे ज्यादा चीन का
आइएमएफ की रिपोर्ट के मुताबिक पाकिस्तान के ऊपर 126 अरब डॉलर का विदेशी ऋण है। इसमें 30 अरब डॉलर से ज्यादा तो चीन का ही है। ड्रैगन पर निर्भरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि देश पर चीन का कर्ज 2013 से पहले महज 4 अरब डॉलर था। जुलाई 2021 और मार्च 2022 के बीच, पाकिस्तान का 80त्न से ज्यादा कर्ज चीन से मिला।
IMF भी झिझक रहा
पाकिस्तान पर विदेशी कर्ज पिछले 12 सालों में दो गुना बढ़ गया। 2011 में देश पर 66.4 बिलियन डॉलर का कर्ज था। 2023 में ये 124.6 बिलियन डॉलर हो गया। भारतीय रुपए में समझें तो पाकिस्तान पर 103.38 लाख करोड़ रुपए का विदेशी कर्ज बकाया है। इससे उबरने के लिए मार्च में आइएमएफ पाकिस्तान को अपने 3 अरब डॉलर के बेलआउट पैकेज में से 1.1 बिलियन डॉलर की किश्त जारी करने पर सहमत हुआ। आइएमएफ नहीं चाहता है कि उसके पैसे का उपयोग चीनी ऋण दायित्वों को पूरा करने के लिए किया जाए।
पाकिस्तान आठवीं बार UNSC का सदस्य बना
उधर पाकिस्तान आठवीं बार संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) का अस्थायी सदस्य चुना गया है। पाकिस्तान का कार्यकाल 1 जनवरी 2025 से शुरू होगा और वह अगले दो साल तक यूएनएससी का सदस्य बना रहेगा। 193 सदस्यीय महासभा में से पाकिस्तान को 182 वोट मिले, जो दो तिहाई बहुमत के आवश्यक आंकड़े 124 से अधिक है। डेनमार्क, ग्रीस, पनामा और सोमालिया को भी सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य चुना गया। नए सदस्य देश चुने गए हैं, ये जापान, इक्वाडोर, माल्टा, मोजाम्बिक और स्विटजरलैंड की जगह लेंगे। इन देशों की सदस्यता 31 दिसंबर 2024 को समाप्त हो रही है।