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ब्राह्मणों ने दी थी इमाम हुसैन के लिए कुर्बानी, जानिए इसका भारत कनेक्शन

Muharram 2024: इस्लामी हिजरी सन के मुहर्रम महीने की 10 तारीख को यौमे आशूरा यानि मातमी मुहर्रम मनाया जाता है। इस दिन मुस्लिम ही नहीं, बल्कि पूरी कायनात (दुनिया) के लोगों की आंखें नम हो जाती हैं।

नई दिल्लीJul 22, 2024 / 09:39 am

M I Zahir

Husssaini-Brahmin

Muharram 2024: मुहर्रम इस्लामी कैलेंडर (जिसे चंद्र या हिजरी कैलेंडर भी कहा जाता है) का पहला महीना है। इस्लामिक कैलेंडर 12 चांद के महीनों पर आधारित है, अमावस्या का दिखना एक नए महीने की शुरुआत निर्धारित करता है। सन 2024 में सात दिवसीय मुहर्रम रविवार 7 जुलाई 2024 से शुरू हुआ है और इसका यौमे आशूरा 17 जुलाई को समापन हो गया।

करबला की जंग

प्रामाणिक धार्मिक इतिहास के अनुसार करबला की जंग में इमाम हुसैन का साथ देने गए हुसैनी ब्राह्मण भी शहीद हुए थे। ये वही हुसैनी ब्राह्मण थे, जो हुसैन की दुआ के बाद जन्मे थे। पाकिस्तान के मशहूर साहित्यकार इंतजार हुसैन ने इतिहास के आधार पर यह तथ्य प्रमाणित किया है। हुसैनी ब्राह्मणों का मानना ​​है कि उनके पूर्वज राहिब दत्त ने अपने बेटों के साथ करबला में इमाम इमाम हुसैन के साथ लड़ाई लड़ी थी। जानकारी के अनुसार करबला की जंग में इमाम हुसैन के साथ उनके परिवार और 72 साथियों के अलावा दत्त परिवार के 7 बेटे भी शहीद हुए थे।

हुसैनी ब्राह्मण के नाम से जाना जाता

दरअसल, 1400 साल पहले इराक की सरजमी पर एक ऐसी जंग लड़ी गई थी, जिसे ‘करबला की जंग’ के नाम से जाना जाता है। अपनी खुदाई का दावा करने वाले क्रूर यजीद के पत्थर दिल फरमानों से इमाम हुसैन के साथ उनके काफिले के कई लोगों ने यह जंग लड़ी थी, जिसमें सिर्फ मुसलमान ही नहीं, बल्कि ब्राह्मण हिंदू भी शामिल थे, उन्हें हुसैनी ब्राह्मण के नाम से जाना जाता है।

भारत के ब्राह्मण गए थे

शिया मौलाना जलाल हैदर नकवी बताते हैं कि करबला की जंग क्रूर शासक यजीद के जुल्म ओ सितम के खिलाफ इमाम हुसैन ने लड़ी थी। इस जंग में मुसलमानों का बड़ा तबका यजीद के साथ था, जो हक पर थे, वही हुसैन के साथ थे। ऐसे में इमाम हुसैन का साथ देने भारत के ब्राह्मण गए थे।

ब्राह्मण मोहयाल समुदाय के लोग

जानकारी के अनुसार हुसैनी ब्राह्मण मोहयाल समुदाय के लोग हिंदू और मुसलमान दोनों में होते हैं। मौजूदा समय में हुसैनी ब्राह्मण अरब, कश्मीर, सिन्ध, पाकिस्तान, पंजाब, महाराष्ट्र राजस्थान, दिल्ली और भारत के अन्य हिस्सों में रहते हैं। ये लोग इस्लामी ​हिजरी सन के पहले महीने मुहर्रम की 10 तारीख को इमाम हुसैन की शहादत के गम में मातम और मजलिस करते हैं।

सुनील दत्त और कश्मीरीलाल

यहां तक कि इस समुदाय से कई प्रसिद्ध हस्तियों का नाम भी जोड़ा जाता है। कहते हैं कि फिल्म अभिनेता और सांसद रहे स्वर्गीय सुनील दत्त हुसैनी ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखते थे। इसके अलावा उर्दू साहित्यकार कश्मीरीलाल जाकिर, साबिर दत्त और नंदकिशोर विक्रम ब्राह्मण समुदाय से जुड़े नाम हैं।

इमाम हुसैन की दुआ से जन्म हुआ

प्रोफेसर असगर नकवी बताते हैं कि पैगंबर मोहम्मद के दौर की बात है, जब सुनील दत्त के पूर्वजों के संतान नहीं हो रही थी। उस समय वह अल्लाह के रसूल पैगंबर मोहम्मद के पास पहुंचे। दत्त परिवार ने अपनी बात रखते हुए कहा ऐ रसूल! हमारे परिवार में औलाद नहीं हो रही है। यह सुन कर नबी ने इमाम हुसैन से कहा कि आप इनके लिए दुआ करो, उस वक्त इमाम हुसैन बच्चे थे और वे खेल रहे थे। हुसैन ने अपने हाथ उठा कर खुदा से उनके लिए दुआ की। इमाम हुसैन की दुआ के बाद दत्त परिवार में बेटे का जन्म हुआ, तभी से ये हुसैनी ब्राह्मण के नाम से पहचाने जाने लगे। करबला की जंग में इमाम हुसैन का साथ देने गए हुसैनी ब्राह्मण भी शहीद हो गए थे, ये वही हुसैनी ब्राह्मण थे, जो हुसैन की दुआ के बाद जन्मे थे।

कौन हैं हुसैनी ब्राह्मण


जानकारी के अनुसार हुसैनी ब्राह्मण पंजाब का एक मोहयाल ब्राह्मण समुदाय है। मोहयाल समुदाय में सात उप-गोत्र शामिल हैं, जिनके नाम बाली,भीमवाल,छिब्बर,दत्त ,लाउ व मोहन और वैद हैं। अपनी हिंदू परंपरा के अनुरूप , उन्होंने गैर- भारतीय परंपराओं को अपनाया है। इसके कारण मोहयाल समुदाय का एक छोटा सा उप-समूह इस्लाम और विशेष रूप से तीसरे इमाम हुसैन के प्रति के प्रति श्रद्धा रखने लगा है।

चिश्ती सूफियों से प्रभावित

वी. उपाध्याय के अनुसार वे चिश्ती सूफियों से प्रभावित थे। वे यज्ञोपवीत और तिलक पहनते हैं, लेकिन वे केवल मुसलमानों से ही दान लेते हैं, हिंदुओं से नहीं लेते। उनमें से कुछ अजमेर के पुष्कर में पाए जाते हैं, जहां ख्वाजा मुईनुदृीन चिश्ती की दरगाह है। एक अन्य परंपरा के अनुसार, यज़ीद की सेना इमाम हुसैन का सिर सियालकोट में अपने पूर्वजों के घर ले आई थी। उनके सिर के बदले में, पूर्वज ने अपने बेटों के सिर का आदान-प्रदान किया।

मुहर्रम मनाते हैं हुसैनी ब्राह्मण

इराक के कुछ हिस्सों में अभी भी कुछ परिवार पाए जाते हैं, लेकिन हुसैनी ब्राह्मणों के अधिकतर परिवार अब पुणे , दिल्ली , चंडीगढ़ , पंजाब , हिमाचल प्रदेश और भारत में जम्मू क्षेत्र में बसे हैं। पाकिस्तान में सिन्ध , चकवाल और लाहौर और अफगानिस्तान में काबुल और दक्षिण अफगानिस्तान में से कुछ हर साल मुहर्रम भी मनाते हैं।
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