चीन की चाल का मुकाबला करेगा भारत
भारत का यह कदम चीन द्वारा भारत के अरुणाचल प्रदेश (Arunachal Pradesh) में कई स्थानों के नाम बदलने का की कुटिल चाल का मुकाबला करने की तैयारी माना जा रहा है। माना जा रहा है भारतीय सैन्य स्रोतों ने ऐसे स्थानों के नए नाम की पूरी सूची तैयार कर ली है और दिल्ली में नई सरकार के सत्ता में आने के तुरंत बाद ही यह सूची जारी की जा सकती है। जानकारों का कहना है कि प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले 10 साल के कार्यकाल में अपनी मजबूत नेता की छवि खड़ी की है। ऐसे में यह स्वाभाविक है कि वह उस छवि को बनाए रखने के लिए तिब्बती स्थानों के नाम बदले जाने के अधिकृत करेंगे।नाम बदलने के लिए लंबी तैयारी
गौरतलब है कि चीन अपने छद्म नामकरण अभियान के तहत अरुणाचल को जांगनान या दक्षिणी तिब्बत कहता है। अब भारत द्वारा तिब्बती पर चीन के दावे पर सवाल खड़ा करते हुए उनका नाम बदले जाने रणनीति अपनाई है। इस पूरी रणनीति के पीछे भारतीय सेना का सूचना युद्ध प्रभाग है। इसके तहत पहले चरण में व्यापक शोध करके 30 से ज्यादा शहरों, नदियों, झीलों, दर्रा, पर्वतों, मैदानों के चीनी नामों को गलत साबित किया जाना है, जिसके लिए कोलकाता स्थित ब्रिटिशकालीन एशियाटिक सोसाइटी जैसे शीर्ष शोध संस्थानों का सहयोग लिया गया है। साथ ही इन स्थानों को नए नाम दिए जाने हैं। इसके लिए व्यापक ऐतिहासिक शोध पर आधारित नए नामों की सूची तैयार कर ली गई है। ऐतिहासिक अभिलेखों से संबंधित स्थानों के प्राचीन नामों को भारतीय भाषाओं में तैयार किया गया है। यह सूची जल्द ही मीडिया के माध्यम से ग्लोबल अभियान के तहत जारी की जाएगी। जानकारों का कहना है कि नामों के इस तरह बदले जाने से तिब्बत की स्वायत्ता का सवाल एक बार फिर वैश्विक चिंताओं का विषय बन जाएगा।
जमीन से जुटाए गए हैं सबूत
नामकरण किए जाने के साथ भारत ने अपने दावे की जमीनी साक्ष्य पेश करने की भी तैयारी कर ली है। इसके लिए हाल के हफ्तों में भारतीय सेना ने इन विवादित सीमा क्षेत्रों में मीडिया के बहुत से दौरे आयोजित किए हैं। पत्रकारों को ऐसे स्थानीय लोगों से बात कराई गई है जो चीनी दावों का कड़ा विरोध करते हैं और कहते हैं कि वे हमेशा भारत का हिस्सा थे। इसका अंतिम लक्ष्य क्षेत्रीय और वैश्विक मीडिया के माध्यम से विवादित सीमा पर भारतीय नैरेटिव को खड़ा करना है। ऐसा नैरिटव जो ठोस ऐतिहासिक शोध और स्थानीय निवासियों की आवाजों पर आधारित है।चीन को घेरने की हो चुकी शुरुआत
जानकारों का कहना है कि चीन को उसके ही खेल में घेरने की शुरुआत हो चुकी है। पीएम मोदी ने ताइवानी राष्ट्रपति के बधाई संदेश के जवाब में लिखा है कि, लाई चिंग-ते मैं आपके गर्मजोशी भरे संदेश के लिए आपका धन्यवाद करता हूं। साथ ही ताइवान के साथ घनिष्ठ संबंधों की आशा करता हूं, क्योंकि हम पारस्परिक रूप से लाभप्रद आर्थिक और तकनीकी साझेदारी की दिशा में काम करते आ रहे हैं। पीएम मोदी के इस जवाब पर चीन की ओर से तीखी प्रतिक्रिया आई है। चीनी मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने कहा है कि पीएम मोदी की प्रतिक्रिया चीन को भारत-ताइवान के बीच राजनयिक संबंध बढ़ाने का संदेश देती प्रतीत हो रही है। इसलिए चीन सरकार ने ताइवान के राष्ट्रपति के बधाई संदेश पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रतिक्रिया के खिलाफ भारत के समक्ष विरोध दर्ज कराया है।
चीनी राष्ट्रपति ने अब तक नहीं दी है पीएम मोदी को बधाई
पीएम मोदी के जवाब के मद्देनजर, चीनी विदेश कार्यालय के प्रवक्ता माओ निंग ने गुरुवार को कहा, विश्व में केवल एक ही चीन है। भारत ने एक-चीन सिद्धांत के संबंध में गंभीर राजनीतिक प्रतिबद्धताएं की हैं और उसे ताइवान अधिकारियों की कूटनीतिक साजिशों के प्रति सतर्क रहना चाहिए और एक-चीन सिद्धांत का उल्लंघन करने वाले कार्यों से बचना चाहिए। गौरतलब है कि, दुनिया के लगभग सभी विश्व नेताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बधाई दी, लेकिन चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अभी तक कोई बधाई संदेश नहीं दिया है। इधर चीनी विदेश कार्यालय के प्रवक्ता माओ निंग ने बीते गुरुवार को कहा, विश्व में केवल एक ही चीन है। भारत ने एक-चीन सिद्धांत के संबंध में गंभीर राजनीतिक प्रतिबद्धताएं की हैं और उसे ताइवान अधिकारियों की कूटनीतिक साजिशों के प्रति सतर्क रहना चाहिए और एक-चीन सिद्धांत का उल्लंघन करने वाले कार्यों से बचना चाहिए।
गौरतलब है कि, दुनिया के लगभग सभी विश्व नेताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बधाई दी, लेकिन चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अभी तक कोई बधाई संदेश नहीं दिया है। हालांकि नई दिल्ली में चीनी राजदूत ने जरूर पीएम मोदी को बधाई दी थी।