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Hindi Day Special: प्रवासी भारतीयों ने इस देश में मचाई हिन्दी की धूम, विश्व स्तर पर भाषा का बढ़ाया मान

Hindi Day Special: आज देश ही नहीं, विदेश में भी हिन्दी का डंका बज रहा है। हिन्दी दिवस पर हम बात करें तो आज हिन्दी विश्व भाषा बन गई है। जब हिन्दी भाषा में खुसरो के गंगा जमनी रंग मिले तो इसकी ख़ुशबू सात समंदर पार भी पहुंची और प्रवासी भारतीयों के तीर्थ पहुंच कर यह रहीम की लिखी इबारत के रूप में इंद्रधनुष की तरह चमक उठी।

नई दिल्लीSep 10, 2024 / 12:45 pm

M I Zahir

Hindi Day Netherlands

Hindi Day Special: हिन्दी दिवस पर हम बात कर रहे हैं कि प्रवासी भारतीयों ने भी हिन्दी की धूम मचाई है। विश्व हिन्दी की नई प्रयोगशाला और प्रवासी भारतीयों के सात समंदर पार के एक खूबसूरत तीर्थ नीदरलैंड की, जहां आज हिन्दी भाषा का (Hindi Day Special ) डंका बज रहा है।
अंतरराष्ट्रीय हिन्दी संगठन नीदरलैंड परामर्श समिति की सदस्य डॉ ऋतु शर्मा नंनन पांडे (Dr. Ritu Sharma Nannan Pandey) से बात की तो उन्होंने इस देश में हिन्दी भाषा के उद्भव और विकास की रोचक कहानी सुनाई।

हॉलैंड के नाम से भी जाना जाता

नीदरलैंड Netherlands में हिन्दी की जड़ों से पहचान करने के लिए इस देश के बारे में जानना आवश्यक है। इस देश को हॉलैंड के नाम से भी जाना जाता है। दरअसल हॉलैंड नीदरलैंड का शाब्दिक अंग्रेज़ी अनुवाद है। नीदरलैंड डच भाषा के दो शब्दों- नेदर(नीचा या गहरा)+लैंड (सतह या ज़मीन)= नीदरलैंड और अंग्रेज़ी में Hol+ Land = Holland।

नीदरलैंड एक बहु सांस्कृतिक देश

नीदरलैंड यूरोप महाद्वीप का एक प्रमुख देश है।यह उत्तरी-पूर्वी यूरोप में स्थित है। इसकी उत्तरी-पूर्वी व पश्चिमी सीमा पर उत्तरी समुद्र है।इसके दक्षिण में बेल्जियम और पूर्व में जर्मनी है। एम्स्टर्डम इस देश की राजधानी है। देनहाग़ शहर को प्रशासनिक राजधानी माना जाता है। यहाँ की भाषा डच है और डच लोगों के अतिरिक्त कई देशों के लोग जैसे- सूरीनामी हिन्दुस्तानी, भारतीय ,तुर्क, मोरक्को, यूरोपीयन, चीनी, इंडोनेशियन, अंतलियान और कैरेबियंस लोग निवास करते हैं। आप यूँ कह सकते हैं कि नीदरलैंड भी एक बहुसांस्कृतिक देश है।

हिन्दी भाषा की दस्तक

नीदरलैंड में हिन्दी भाषा के आगमन को हम अलग -अलग भागों में बाँट सकते हैं। पहला चरण सन 1873 से 1914 का काल, जब ब्रिटिश शासन काल में भारत से पानी के “जहाज़ लालारुख़” के माध्यम से सूरीनाम ले जाने वाले अनुबंध या कॉन्ट्रैक्ट भारतीय या गिरमिटिया भारतीय आते हैं। हालांकि ये भारतीय बहुत पढ़े-लिखे नहीं थे, लेकिन अपनी भाषा, संस्कार व संस्कृति अच्छी तरह समझने वाले ज़रूर थे।

देश में पैर रखे

इस तरह ‘हिन्दी भाषा’ ने डच संस्कृति में भारतीयों के घुलने मिलने के साथ ही वहाँ अपने पैर रखे ।दूसरे देशों में जाने वाले अनुबंध कामगारों की तरह ये लोग भी रामायण, गीता व अन्य पुस्तकें अपने साथ ले गए थे । जिसके सहारे उन्होंने अक्षर ज्ञान , बोली,लोक गीत और परंपरा के साथ-साथ अपनी संस्कृति भी जीवित रखी। हिन्दी को बढ़ावा देने के लिए वहाँ भारतवंशी लोगों ने कई प्रयास किये।

हिन्दी भाषा की शिक्षा

उस समय क्योंकि छपाई की कोई व्यवस्था नहीं थी, इसलिए उस समय का साहित्य हस्तलिखित है,जिसमें मुंशी रहमान की दिनचर्या की डायरी विशेष है। जिसमें हिन्दी-उर्दू के शब्दों का समावेश है। शुरुआती कुछ बरसों बाद सूरीनाम में शिक्षा के अधिकार के अंतर्गत “कुली स्कूलों” की शुरुआत की गई । जहाँ डच के साथ-साथ एक विषय के रूप में हिन्दी भाषा की शिक्षा दी जाती थी ।

भाषा व संस्कृति जीवन का अंग

सन 1929 से सूरीनाम के सरकारी विद्यालयों में हिन्दी शिक्षण बंद कर दिया गया।यह भारतीय समुदाय के लिए बहुत कष्टदायी था। भारतीयों ने अपनी भाषा व संस्कृति को अगली पीढ़ी तक पहुँचाने के लिए धार्मिक स्थलों में हिन्दी पढ़ाना शुरू कर दी थी। क्योंकि भारतीयों के लिए उनकी भाषा व संस्कृति उनके जीवन का अभिन्न अंग थी।

हिन्दी का विकास

दरअसल सूरीनाम में हिन्दी भाषा का सही विकास 1960 में भारत सरकार की ओर से हिन्दी भाषा के शिक्षण के लिए बाबू महात्मा सिंह को सूरीनाम भेजने के बाद से ही हुआ। उनके शिष्य छात्र छात्राओं ने हिन्दी भाषा की इस शृंखला को आगे बढ़ाया । सन 1977 में वहाँ सूरीनाम हिन्दी परिषद की स्थापना की गई। इसके साथ ही धार्मिक स्थलों व कुछ सरकारी विद्यालयों में हिन्दी की एक विषय के रूप मे नियमित रूप से शिक्षा दी जाने लगी।इस तरह सूरीनाम में हिन्दी का विकास हुआ ।

भारतीयों के खून पसीने से सींची गई हिन्दी

बहरहाल हम कह सकते है कि नीदरलैंड में हिन्दी भाषा का पौधा प्रवासी सूरीनामी भारतीयों के खून पसीने से सींच कर बढ़ा हुआ है। यहीं वजह है कि हमारी भारतीय भाषा संस्कृति व सोलह संस्कार भी आज जीवित हैं। भारतीय सरकार की ओर से शुरू की गई ओ.सी.आई कार्ड सुविधा के कारण नीदरलैंड के प्रवासी भारतीय भारत के और नजदीक आ गए हैं। वर्तमान में नीदरलैंड से बहुत सारे युवा हिन्दी भाषा की उच्च शिक्षा के लिए भारत पहुंचते हैं।वैसे भी प्रवासी भारतीयों के लिए विशेषकर सूरीनामी प्रवासी भारतीयों के लिए भारत किसी तीर्थ स्थल से कम नहीं है, जहाँ वे जीवन में एक बार ज़रूर जाना चाहते हैं ।

उनका भारत अभी भी वही

भारत ने चाहे कितनी भी उन्नति क्यों न कर ली हो,पर उनका भारत अभी भी वही है जिसके बारे में उन्होंने अपने पूर्वजों से सुना और जाना है। आप आज भी यहाँ सरनामी समाज मे, सोहर( बच्चे के जन्म के बाद का समय) , थाटी (थाली) , चिन्हा (पहचान), दुल्हनिया , बहूरानी, पतोहू (बेटे की पत्नी) कटलिस ( हँसिया) अंजौर ( उजाला) घाम( धूप) बिहान( कल) माँड़ो ( मंडप) , मटकोडवा ( विवाह से पहले कुम्हार की मिटती पूजने जाना) आदि शब्दों को रोज़मर्रा की बोलचाल की भाषा में सुन सकते हैं । कुछ शब्द डच भाषा के साथ मिल गये हैं जैसे गंदा के लिए (डच भाषा का मॉर्सू शब्द) कूकरू ( डच शब्द keuken) और ओटोवा ( auto कार) टफरवा ( डच भाषा टेबल) आदि ।

इस देश को अनदेखा नहीं किया सकता

उन्होंने बताया कि इस वर्ष उनका भारत में हिन्दुस्तानी प्रचार सभा मुंबई के ट्रस्टी फ़िरोज़ पेज व संस्था की विशेष अधिकारी डॉ.रीता कुमार से मिलना हुआ । जिनसे उन्हें आश्वासन मिला कि हिन्दुस्तानी प्रचार सभा नीदरलैंड और सूरीनाम के लिए प्राथमिक स्तर की पुस्तकें उन्हें उपलब्ध करवाएंगे । ऐसा लग रहा है कि नीदरलैंड में हिन्दी को तीसरी भाषा के रूप में विद्यालयों में स्थापित करने में शायद कुछ समय और लगे, लेकिन हम यह जरूर कह सकते हैं कि नीदरलैंड में हिन्दी का भविष्य बहुत उज्ज्वल तो नहीं, मगर मायूसी भरा भी नहीं है। हम यह उम्मीद कर सकते हैं कि बदलती तकनीक और बढ़ते व्यावसायिक संबंधों के सबब हिन्दी भाषा का वर्चस्व यहाँ बढ़ेगा और आने वाली पीढ़ियों की इस ओर रुझान भी बढ़ेगा। क्योंकि दुनिया में पहले स्थान पर सबसे अधिक जनसंख्या वाले व सबसे ज़्यादा आई. टी शिक्षित इस देश को अनदेखा नहीं किया सकता।

डॉ. ऋतु शर्मा नंनन पांडे : एक नजर

नीदरलैंड में रह कर हिंदुस्तान का नाम रोशन करने वाली नई दिल्ली से ताल्लुक रखने वाली मशहूर भारतवंशी साहित्यकार हैं डॉ. ऋतु शर्मा नंनन पांडे। ऋतु शर्मा नंनन पांडे का 9 फ़रवरी को नई दिल्ली में जन्म हुआ। दिल्ली विश्वविद्यालय से एम.ए. हिन्दी करने के बाद कोटा विश्वविद्यालय से एम.ए व “जनसंचार एवं पत्रकारिता” में पी.एच.डी की और शिक्षा के साथ ही “भारतीय अनुवाद परिषद्” बंगाली मार्केट से अनुवाद का स्नातकोत्तर डिप्लोमा किया। उन्होंने सन 1997 से लेकर 2004 तक दिल्ली दूरदर्शन के साहित्यिक कार्यक्रम “पत्रिका” की संचालिका के रूप में कार्य करते हुए 2000-2003 तक दिल्ली विश्वविद्यालय के खालसा कालेज में “ जनसंचार व पत्रकारिता “विषय की प्राध्यापिका पद पर सेवाएं दीं। सन 2003 में प्रवासी भारतीय डॉ दिनेश नंनन पांडे से विवाह के बाद वे सन 2004 से स्थाई रूप से नीदरलैंड में रह रही हैं। उनके लेख ,संस्मरण कहानियां और कविताएँ कई राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं । उन्हें कई राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय सम्मानों से सम्मानित​ किया जा चुका है।
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