अजब गजब

पारले जी के पैकेट पर बनी यह लड़की वास्तव में कौन है, अंग्रेजों के जमाने में इस वजह से की गई थी इसकी शुरूआत

नीरू देशपांडे अब दादी की उम्र की हो चुकी हैं
उन दिनों आजादी की लड़ाई में जो लोग शामिल थे वे छोटी-मोटी भूख मिटाने के लिए पारले जी खाते थे
पहले बिस्किट के पैकेट पर गायों और ग्वालिन की तस्वीर दिखाई देती थी

Mar 12, 2019 / 12:26 pm

Arijita Sen

पारले जी के पैकेट पर बनी यह लड़की वास्तव में कौन है, अंग्रेजों के जमाने में इस वजह से की गई थी इसकी शुरूआत

नई दिल्ली। आज भारतीय बाजारों में तमाम तरह बिस्किट हैं जिन्हें लोग हल्की-फुल्की भूख मिटाने के लिए खाते हैं। भले ही आज स्वादिष्ट कुकीज ने मार्केट में अपनी जगह बना ली है, लेकिन पारले जी की बात ही कुछ और है जिसे हम अपने बचपन से लेकर अब तक खाते आ रहे हैं। गर्मागर्म चाय के साथ पारले जी बिस्किट डुबोकर खाने की बात ही कुछ और है।

 

पारले जी बिस्किट के रैपर पर हमें एक प्यारी सी बच्ची दिखाई देती है जिसे लेकर लोगों ने खूब चर्चा की है। इस तस्वीर को लेकर हमेशा तीन महिलाओं के नाम सामने आते रहे हैं। इनमें से पहली हैं नागपुर की नीरू देशपांडे, गुंजन गंडानिया और आईटी इंडस्ट्रियलिस्ट नारायण मूर्ति की पत्नी सुधा मूर्ति।

मीडिया में जब इस तरह की खबरें फैलती रही तो मजबूरन पारले के प्रोडक्ट मैनेजर को सामने आना पड़ा। उन्होंने साफ तौर पर कह दिया कि पैकेट पर दिखने वाली बच्ची की तस्वीर का वास्ता किसी से नहीं है। यह एक काल्पनिक प्रतिकृति है। मगनलाल दहिया नामक एक चित्रकार द्वारा 60 के दशक में इस तस्वीर को बनाया गया था।

 

Parle G with chai

अब जहां तक रही नीरू देशपांडे की बात तो उन्हें इन सुर्खियों के चलते काफी प्रसिद्धि मिली। वर्तमान समय में नीरू देशपांडे लगभग 65 वर्ष की हैं और इस वक्त नागपुर में रह रही हैं। ऐसा कहा जाता है कि जब नीरू की उम्र 3-4 साल थी, तब उनके पिता ने उनकी एक ऐसी ही फोटो खींची थी। हालांकि उनके पिता प्रोफेशनल फोटोग्राफर नहीं थे, लेकिन उनकी खींची यह तस्वीर काफी अच्छी आई थी। इस बीच एक दिन किसी ऐसे शख्स की नजर इस तस्वीर पर पड़ी जिनका संबंध पारले वालों से था। फिर क्या, यह तस्वीर बिस्किट के पैकेट पर छप गई।

 

That image

अब जानते हैं पारले का इतिहास। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, पारले बिस्कुट को बनाने का आइडिया अंग्रेजों को देखकर आया। मुंबई के विले पारले इलाके में रहने वाले चौहान परिवार ने साल 1929 में इस कंपनी शुरूआत की थी।

Neeru deshpande

उन दिनों कंपनी में केवल केक, पेस्ट्री और कुकीज बनाए जाते थे। साल 1939 में कंपनी ने बिस्किट बनाना शुरू कर दिया क्योंकि उस जमाने में अंग्रेजी कंपनियों के बिस्किट की बिक्री बाजार में खूब थी। सस्ता और टेस्टी होने की वजह लोगों को यह खूब पसंद आया।

साल 2011 में नीलसन सर्वे ने पारले जी बिस्किट को दुनिया का सबसे ज्यादा बिकने वाला बिस्किट करार दिया था। वाकई में आज भी बच्चों से लेकर बूढ़े तक हर कोई पारले जी को खाना पसंद करते हैं। महज पांच रुपये में बिकने वाला यह बिस्किट बाजार में अभी भी हिट है।

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