इम्पीरियल कॉलेज, लंदन के भूगर्भशास्त्री मथिया विलबोल्ड का कहना है कि धरती के मुख्य हिस्से का निर्माण उल्का पिंडों की बौछार के बाद हुई। इसलिए जब उल्कापिंड धरती से टकराएं तब उसमें मौजूद सोना चारों तरफ बिखर गया। उल्का पिंडों में मौजूद सोने के कणों ने धरती के बाहरी सतह को भर दिया। इसके चलते आज पूरी दुनिया में जहां भी सोनें की खादान हैं उसका निर्माण पीली धातु के जमने से हुआ है।
यह अनोखी घटना करीब 3.8 अरब साल पहले घटी थी। इसलिए कहा जा सकता है कि यहां मौजूद सोना धरती की संपत्ति नहीं है बल्कि ये उल्कापिंडों के जरिए आए हैं। धरती की बाहरी सतह करीब 25 माइल मोटी है। इसमें हर 1000 टन धातुओं में केवल 1.3 ग्राम सोना था।
चांद पर भी मिले थे सोने के कण
वैज्ञानिकों ने 1970 में चंद्रमा पर अपोलो यान को भेजा था। इसमें शोधकर्ताओं को चंद्रमा पर भी सोने के कण मिले थें। उन्होंने वहां मौजूद चट्टानों के नमूने लिए थे। इइस पर रिसर्च में पता चला कि धरती और चांद पर अंतरिक्ष से रेडियम युक्त उल्कापिंड गिरे थे। इस बारिश के बाद पीली धातु चांद पर तो वे वैसे ही पड़े रहे, लेकिन धरती की आंतरिक गतिविधियों के कारण वे उसमें समाहित हो गए थे। इसी के चलते जब भी धरती की तलहटी में खुदाई की जाती है तो सोना निकलता है।
वैज्ञानिकों ने 1970 में चंद्रमा पर अपोलो यान को भेजा था। इसमें शोधकर्ताओं को चंद्रमा पर भी सोने के कण मिले थें। उन्होंने वहां मौजूद चट्टानों के नमूने लिए थे। इइस पर रिसर्च में पता चला कि धरती और चांद पर अंतरिक्ष से रेडियम युक्त उल्कापिंड गिरे थे। इस बारिश के बाद पीली धातु चांद पर तो वे वैसे ही पड़े रहे, लेकिन धरती की आंतरिक गतिविधियों के कारण वे उसमें समाहित हो गए थे। इसी के चलते जब भी धरती की तलहटी में खुदाई की जाती है तो सोना निकलता है।