धर्म-कर्म

नवरात्रि में इन नौ शक्तियों की करते हैं पूजा, मां दुर्गा के नौ सरल मंत्र करेंगे हर मनोकामना पूरी


Pravin Pandey

28 September 2024

नवरात्रि में मां जगदंबा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। क्या आपको मालूम हैं इन नौ शक्तियों के सरल मंत्र, जो दिलाते हैं हर कष्ट से छुटकारा

नवरात्रि का पहला दिन देवी शैलपुत्री यानी पर्वतराज हिमालय की पुत्री की पूजा के लिए समर्पित है। इन्हें मां शैलपुत्री, त्रिमूर्ति अर्थात ब्रह्मा, विष्णु और महेश की शक्ति का प्रतीक माना जाता हैं।

मां शैलपुत्री की पूजा में ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे, ऊँ शैलपुत्री देव्यै नमः या ऊँ शं शैलपुत्री देव्यै नमः मंत्र जपना चाहिए।

दूसरा दिन देवी ब्रह्मचारिणी को समर्पित है। ये देवी पार्वती का तपस्विनी और अविवाहित रूप है। देवी का यह अवतार दृढ़ता और तपस्या का प्रतीक है।

मां ब्रह्मचारिणी की पूजा के लिए नवरात्रि के दूसरे दिन ह्रीं श्रीं अंबिकायै नमः या ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं ब्रह्मचारिण्यै नमः मंत्र जपना चाहिए।

तीसरा दिन देवी चन्द्रघण्टा को समर्पित है। भगवान शिव से विवाह करने के बाद देवी पार्वती ने अर्ध चन्द्र को अपने मस्तक पर सुशोभित करना आरम्भ कर दिया था, जिससे उन्हें देवी चन्द्रघण्टा कहा जाने लगा।

देवी चन्द्रघण्टा अपने भक्तों को साहस प्रदान कर, उन्हें समस्त अवगुणों से दूर रखती हैं। इनकी पूजा के लिए ऊँ ऐं श्रीं शक्तयै नमः मंत्र जपना चाहिए।

चौथे दिन देवी कूष्माण्डा की पूजा की जाती है। माता कूष्माण्डा सूर्य के अंदर अर्थात सूर्य मण्डल में निवास करती हैं, उनके अतिरिक्त अन्य किसी में यह शक्ति और क्षमता नहीं है। देवी कूष्माण्डा की देह सूर्य के समान दिव्य और तेजोमय है।

देवी कूष्माण्डा अपने भक्तों के जीवन से अंधकार का नाश करती हैं और उन्हें धन और स्वास्थ्य प्रदान करती हैं। ऊँ कूष्माण्डायै नमः मंत्र या या देवी सर्वभूतेषू सृष्टि रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः इनके मंत्र हैं।

देवी पार्वती के ज्येष्ठ पुत्र कार्तिकेय स्कंद हैं, इसीकारण इन्हें स्कंदमाता भी कहते हैं। इनकी पूजा पांचवें दिन होती है। स्कंदमाता भक्तों को समृद्धि और शक्ति प्रदान करती हैं। इनका मंत्र ऊँ देवी स्कंदमातायै नमः है।

छठे दिन देवी कात्यायनी की पूजा की जाती है। महिषासुर दैत्य का अंत करने के लिए देवी पार्वती ने देवी कात्यायनी रूप धारण किया था। यह देवी पार्वती का सर्वाधिक हिंसक रूप है। इनका मंत्र क्लीं श्री त्रिनेत्रायै नमः या ऊं देवी कात्यायन्यै नमः है।

नवरात्रि के सातवें दिन देवी कालरात्रि की पूजा की जाती है। देवी पार्वती ने शुम्भ-निशुम्भ नामक राक्षसों का वध करने के लिए अपने स्वर्ण वर्ण का त्याग कर दिया था। देवी के इस भयंकर स्वरूप को देवी कालरात्रि के रूप में जाना जाता है।

यह देवी पार्वती का सर्वाधिक उग्र और क्रूर रूप है। देवी कालरात्रि की देह से उत्सर्जित होने वाली शक्तिशाली ऊर्जा को ग्रहण करने के लिए ऊँ श्री कालिकायै नमः या ऊँ क्रीं ह्रुं ह्रीं मंत्र का जाप करना चाहिए।

नवरात्रि के आठवें दिन देवी महागौरी की पूजा की जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार सोलह वर्ष की आयु में देवी शैलपुत्री अत्यंत सुंदर और गौर वर्ण की थीं। इससे उन्हें देवी महागौरी के नाम से जाना जाता है। इनकी पूजा में ऊँ देवी महागौर्यै नमः मंत्र जपना चाहिए।

नवरात्रि के नवं दिन देवी सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। सृष्टि के आरंभ में भगवान रुद्र ने सृष्टि निर्माण के लिए आदि-पराशक्ति की पूजा की थी। यह माना जाता है कि देवी आदि-पराशक्ति का कोई रूप नहीं था और वह निराकार थीं। शक्ति की सर्वोच्च देवी, आदि-पराशक्ति, भगवान शिव के बायें आधे भाग से सिद्धिदात्री के रूप में प्रकट हुईं।

देवी सिद्धिदात्री की आराधना से समस्त प्रकार की सिद्धियों की प्राप्ति होती है। नवरात्रि में देवी सिद्धिदात्री को तिल या तिल से बने पदार्थों का प्रसाद अर्पित करना चाहिए। इनकी पूजा के लिए सिद्ध गंधर्व यक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी या ऊँ सिद्धिदात्र्यै नमः मंत्र जपना चाहिए।