15 नवंबर 1875 को झारखंड के छोटे से गांव उलीहातू में मुंडा आदिवासी समुदाय में जन्म।
बुर्जू के जर्मन मिशन स्कूल से पढ़ाई की। ईसाई मिशनरी द्वारा धर्म परिवर्तन के कारण स्कूल को छोड़ दिया था।
ईसाई और हिंदू धर्म को खारिज कर नए धर्म 'बिरसाइत' की स्थापना की थी।
अंग्रेज़ों के खिलाफ 1899-1900 में मुंडा विद्रोह का नेतृत्व किया, जिसे उलगुलान (महान विद्रोह) के रूप में भी जाना जाता है।
आदिवासी समाज बिरसा को भगवान के रूप में मानते थे। उनके अनुयायी उन्हें "धरती आबा" कहते थे जिसका अर्थ है "पृथ्वी का पिता"।
1900 में अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया और हैजा के कारण उनकी जेल में मृत्यु हो गई। कुछ जानकारों का मानना है की उन्हें जहर दिया गया था।
बिरसा मुंडा मात्र 24 साल 7 माह की अल्पायु में 9 जन 1900 को वीरगति को प्राप्त हुए थे।
मध्यप्रदेश में बिरसा मुंडा की याद में 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस मनाया जाता है।