पौराणिक कथाओं के अनुसार बहुत पुराना है माता का मंदिर
उत्तर प्रदेश के वाराणसी में मां शैलपुत्री मंदिर बेहद प्राचीन है और यह इतना पुराना मंदिर है कि यहां पर लोगों को इस बात की जानकारी नहीं है कि मंदिर को कब व किसने स्थापित किया। मंदिर के सेवादार पंडित बच्चेलाल गोस्वामी जी महराज ने बताया कि राजा शैलराज के यहां पर माता शैलपुत्री का जन्म हुआ था उनके जन्म के समय नारद जी वहां पर पहुंचे थे और कहा था कि यह पुत्री बहुत गुणवान है और भगवान शिव के प्रति आस्था रखने वाली होगी। इसके बाद जब माता शैलपुत्री बड़ी हुई तो वह भ्रमण पर निकल गयी। मन में शिव के प्रति आस्था थी इसलिए वह उनकी नगरी काशी पहुंची। यह भी पढ़ें
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यहां पर वरुणा नदी के किनारे की जगह उन्हें बहुत अच्छी लगी। इसके बाद माता शैलपुत्री यही पर तप करने लगी। कुछ दिन बाद पिता भी यहां आये तो देखा कि उनकी पुत्री आसन लगाकर तप कर ही है इसके बाद राजा शैलराज भी वही पर आसन लगा कर पत करने लगे। बाद में पिता व पुत्री के मंदिर का निर्माण हुआ। मंदिर में नीचे पिता राजा शैलराज शिवलिंग के रुप में विराजामन है जबकि उसी गर्र्भगृह में माता शैलपुत्री उपर के स्थान में विराजमान है। उन्होंने बताया कि मा शैलपुत्री ने फिर से पार्वती के रुप में जन्म लिया था और फिर उनका महादेव से विवाह हुआ था।देश में नहीं होगा ऐसा मंदिर
सेवादार पंडित बच्चेलाल गोस्वामी जी महाराज का दावा है कि दुनिया में अन्य कही पर ऐसा मंदिर नहीं होगा। माता यहां पर खुद विराजमान हैं, जबकि अन्य कही पर माता के विराजमान होने की बात सामने नहीं आयी है। उन्होंने कहा कि बालावस्था में ही माता तप करने के लिए बैठ गयी थीं। इसलिए अन्य कही जाने की संभावना नहीं हो सकती है। दोनों नवरात्रि के पहले दिन माता शैलपुत्री माता पार्वती और दुर्गा के नौ रूप का दर्शन देती हैं। जो भक्त नवरात्रि के पहले दिन मां का दर्शन कर लेता है, उसे आदि शक्ति के सभी रूपों का दर्शन मिल जाता है।रात में विशेष आरती के साथ शुरू हो जाता है माता का दर्शन
नवरात्रि गुरुवार 03 अक्टूबर से आरंभ हो रही है। बुधवार रात दो बजे विशेष आरती के बाद मंदिर के पट खोल दिए जाएंगे। इसके बाद माता के दर्शन का सिलसिला शुरू होकर गुरुवार रात 12 बजे तक जारी रहेगा। माता के दर्शन के लिए दूर-दराज से लोग आते हैं और कई किलोमीटर लंबी लाइन लगती है। माता को भक्त लाल फूल, चुनरी व नारियल का प्रसाद चढ़ाते हैं। यह भी पढ़ें