आदि देव भगवान शंकर का ऐसा स्वरूप जिनके स्मरण मात्र से दूर होते हैं मृत्यु तुल्य कष्ट
मान्यता है कि काशी के कण-कण में भगवान शंकर विद्यमान हैं। धार्मिक मान्यता है कि महादेव की नगरी काशी भोलेनाथ के त्रिशूल पर टिकी हुई है। सावन में काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शने करने देश-विदेश से करोड़ों लोग आते हैं। अब तो बाबा विश्वनाथ का मंदिर श्री काशी विश्वनाथ धाम में परिवर्तित हो गया है। ऐसे में इसबार तो यहां और भी भीड़ लगने वाली है। लेकिन इसी काशी में भगवान शिव का एक मंदिर ऐसा भी है जहां पर दर्शन करने से भक्त को अकाल मृत्यु तो दूर स्मरण मात्र से मृत्यु तुल्य कष्ट भी दूर होता है।
डॉ अजय कृष्ण चतुर्वेदीवाराणसी. आदि देव भगवान शंकर के अनेक रूप है। अलग-अलग रूप में अलग-अलग महात्म्य है। फिर काशी तो भगवान शिव की नगरी ही है। यहां तो कण-कण में शंकर विद्यमान है। इस महा तीर्थ काशी के उत्तर-पूर्व में स्थित है महामृत्युंजय महादेव का विशाल मंदिर। वो महामृत्युंजय जिन्हें मृत्यु पर भी विजय हासिल है। ऐसे महादेव का दर्शन तो दूर, स्मरण मात्र से मृत्यु तुल्य कष्ट समाप्त हो जाता है। जो चल-फिर नहीं सकता उसके कानों में महामृत्युंजय महादेव का नाम जाने मात्र से वह स्वस्थ होने लगता है, बाबा दरबार का चरणामृत जिसके गले से उतर गया वह मृत्यु शैय्या से उठ जाता है। अकाल मृत्यु से मुक्ति दिलाने वाले हैं महामृत्युंजय।
दारानगर में स्थित है मृत्युंजय महादेव का स्वयंभू विग्रह काशी के दारानगर मोहल्ले में स्थित है महामृत्युंजय का मंदिर। मंदिर के महंत पंडित सोमनाथ दीक्षित बताते हैं कि यह हजारों साल पुराना मंदिर है। यहां मृत्युंजय महादेव का विग्रह स्वयंभू है। इसे किसी ने स्थापित नहीं किया है। पहले यहां जंगल था और बाबा का मंदिर भी मड़ई में था। कालांतर में मड़ई से पत्थर का मंदिर बना। फिर दादा जी पंडित केदार नाथ दीक्षित और उनके पिता ने मिल कर यहां गर्भगृह का जीर्णोद्धार कराया। चांदी का दरवाजा लगाया गया। चांदी का अरघा बना। बताया कि दुनिया भर में कहीं भी महामृत्युंजय का दूसरा मंदिर नहीं।
महामृत्युंजय जिन्हें मृत्यु पर हासिल है विजय उन्होंने बताया कि महादेव के नाम से ही यह पता चलता है कि इन्हें मृत्यु पर विजय हासिल है। जिस किसी को भी मृत्यु का संकट हो या मृत्यु का भय सताता हो, उसके लिए मंदिर परिसर में महामृत्युंजय जप से ही वह मृत्यु तुल्य कष्ट से मुक्ति पा जाता है। ऐसे तमाम उदाहरण हैं कि असाध्य रोग से पीड़ित भक्त उठ कर ख़ड़े हो गए। बाबा का मंत्र और चरणामृत ही पर्याप्त होता है। किसी तरह का रोग हो चरणामृत सेवन से ठीक हो जाता है। बताया कि हर तरह के रोग व्याधियों को दूर करने के साथ सुख-समृद्धि भी प्रदान करते हैं महादेव। पर मृत्यु पर विशेष कमांड है महामृत्युंजय महादेव का।
साल में चार शृंगार बाबा का साल भर में चार विशेष शृंगार होता है जिसमें महामृत्युंजय के साकार रूप का शृंगार सबसे खास है। इसमें बाबा की आठ भुजाएं, सिर से चंद्र वर्षा, बगल में बंगला मुखी माता विराजती हैं। बंगला मुखी माता को बाबा के अर्धांगिनी के रूप में मान्यता प्राप्त है। एक हाथ में रुद्राक्ष की माला तो 4 भुजाओं में कलश होता है। यह देदिप्यमान स्वरूप का दर्शऩ अद्भुत होता है।
40 सोमवार यहां हाजिरी लगाने वाले के कष्टों का होता है निवारण मान्यता है कि इनके दर्शन मात्र से मन की हर कामना पूरी होती है। कहा जाता है कि यदि कोई भक्त लगातार 40 सोमवार यहां हाजिरी लगाए और त्रिलोचन के इस रूप को फूलों के साथ दूध और जल चढ़ाए तो उसके जीवन से कष्टों का निवारण होना तय है। वाराणसी के महामृत्युंजय मंदिर में भक्त और पंडित निरंतर मंत्रोच्चारण में लगे रहते हैं ताकी महादेव को प्रसन्न कर उनका आशीर्वाद पाया जा सके।
महादेव के इस मंत्र का जप करने से हर तरह के कष्ट से मुक्ति मिलती है “ऊं त्रयम्बकम् यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम उर्वारुकमिव बन्धनान मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्” जब भी इस मंत्र का उच्चारण करें तो शुद्धता का ध्यान रखें। हमेशा शुद्ध उच्चारण ही करें। इस मंत्र के कई प्रकार हैं, लेकिन कोई भी व्यक्ति उपरोक्त मंत्र का जाप करके अपनी मनोकामना पूर्ति कर सकता है।
साल भर लगा रहता है ब्राह्मणों का रेला पंडित दीक्षित ने बताया कि मंदिर में बड़ा सा गलियारा है जहां ब्राह्मणों का रेला लगा रहता है। अनवरत महमृत्युंजय जप में लीन रहते हैं ये ब्राह्मण। ब्राह्मणों पर महामृत्युंजय महादेव की विशेष कृपा रहती है। तमाम ब्राह्मणों की आजीविका चलती है इस मंदिर से।
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