तीन महीने से चल रही तैयारी श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर सिंगापुर और स्पेन से श्री कृष्ण से जुड़े लकड़ी के खिलौनों की मांग हो रही है। जहां तक स्वदेश की बात है तो तथा गुजरात, मुंबई, बंगलूरू, पुणे इसके लिए मांग हो रही है। कन्हैया की लकड़ी की मूर्ति की बढ़ती मांग के मद्देनजर विगत तीन महीन से 80 से ज्यादा शिल्पी लकड़ी के कान्हा की मूर्ति बनाने में जुटे हैं। इसमें ज्यादातर महिलाएं हैं।
लकड़ी के लड्डू गोपाल की मांग ज्यादा शिल्कारों की मानें तो लकड़ी के लड्डू गोपाल की मांग सर्वाधिक है। लकड़ी के खिलौना उद्योग से जुड़े बिहारी लाल अग्रवाल का कहना है कि इसके अलावा जन्माष्टमी पर झांकी सजाने के लिए लकड़ी पर उकेरी गई 45 पीस की पूरी सामग्री भी इन शिल्पियों ने तैयार की है। उसकी भी जबरदस्त मांग है।
शिव स्वरूपी लड्डू गोपाल की भी लकड़ी की मूर्ति इतना ही नहीं शिल्पकारो ने इस बार लड्डू गोपाल को शिवस्वरूप भी प्रदान किया है। इसके तहत ऐसी मूर्ति गढ़ी गई है जिसमें कान्हा को न केवल त्रिनेत्रधारी बनाया गया है, बलकि उनके दोनों हाथों में त्रिशूल व डमरू भी सजा है। साथ ही मस्तक पर मोरपंख की जगह रुद्राक्ष व चंद्रमा से अद्भुत शृंगार किया गया है।
मूर्ति ही नहीं आकर्षक झूला भी तैयार दुर्गाकुंड क्षेत्र निवासी शिल्पी गणेश पटेल बताते हैं कि इतना ही नहीं खास तौर पर लड्डू गोपाल के लिए झूला भी बना है। झूले के दोनों ओर दो सेवक ताड़ का पंखा झलते नजर आ रहे हैं। सबसे ऊपर प्रभु श्री कृष्ण को अति प्रिय मोरपंखी सजाई गई है।
खूब धूम मचा रहा बनारस का लकड़ी का खिलौना उद्योग
संयुक्त आयुक्त उद्योग उमेश सिंह का कहना है कि काशी की काष्ठ कला को जीआई टैग और ओडीओपी उत्पाद की श्रेणी में आने के बाद बनारस के लकड़ी के खिलौना उद्योग को नई उड़ान मिली है। इस उद्योग से जुड़ी महिलाओं को बड़ी तादाद में रोजगार मिल रहा है। केंद्र और राज्य सरकार के कदम से बनारस का लकड़ी उद्योग अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खूब धूम मचा रहा है। उन्होंने कहा कि सरकार पैकेजिंग और मार्केटिंग के लिए बड़े पैमाने पर समय-समय पर प्रशिक्षण और कार्यशालाएं भी आयोजित कर रही है। इसके अलावा राष्ट्रीय फलक पर प्रदर्शनी लगा कर काशी के लकड़ी के खिलौनों के लिए बाजार भी मुहैया कराया जा रह है। इसके चलते लकड़ी के खिलौना उद्योग को नया मुकाम मिला है। इसकी मांग देश-विदेश में भी बढ़ गई है। इससे इस कला को और इससे जुड़े शिल्पियों को नव जीवन मिला है।
संयुक्त आयुक्त उद्योग उमेश सिंह का कहना है कि काशी की काष्ठ कला को जीआई टैग और ओडीओपी उत्पाद की श्रेणी में आने के बाद बनारस के लकड़ी के खिलौना उद्योग को नई उड़ान मिली है। इस उद्योग से जुड़ी महिलाओं को बड़ी तादाद में रोजगार मिल रहा है। केंद्र और राज्य सरकार के कदम से बनारस का लकड़ी उद्योग अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खूब धूम मचा रहा है। उन्होंने कहा कि सरकार पैकेजिंग और मार्केटिंग के लिए बड़े पैमाने पर समय-समय पर प्रशिक्षण और कार्यशालाएं भी आयोजित कर रही है। इसके अलावा राष्ट्रीय फलक पर प्रदर्शनी लगा कर काशी के लकड़ी के खिलौनों के लिए बाजार भी मुहैया कराया जा रह है। इसके चलते लकड़ी के खिलौना उद्योग को नया मुकाम मिला है। इसकी मांग देश-विदेश में भी बढ़ गई है। इससे इस कला को और इससे जुड़े शिल्पियों को नव जीवन मिला है।