bell-icon-header
वाराणसी

Azadi ka Amrit Mahotsav: जब दिग्गजों की हुई गिरफ्तारी तो काशी के युवा शचींद्रनाथ ने संभाली थी कमान

Azadi ka Amrit Mahotsav: काशी क्रांतिवीरों की जननी भी रही और कर्मस्थली भी। एक से बढ़ कर एक क्रांतिकारियों को काशी की धरती ने जन्म दिया। अगर कहें कि आजादी के आंदोलन में काशी का महत्वपूर्ण योगदान रहा तो अतिशयोक्ति न होगी। एक-दो नहीं ऐसे अनेक नाम है जिन्होंने देश की खातिर हंसते-हंसते अपने प्राण तक न्योछावर कर दिए। वहीं कुछ ऐसे थे जिन्होंने दिग्गजों की गिरफ्तारी के बाद खुद कमान संभाल ली। इन्हीं में एक रहे शचींद्रनाथ बख्शी। तो जानते हैं उनके किस्से…

वाराणसीAug 15, 2022 / 11:02 am

Ajay Chaturvedi

महान क्रांतिवीर शचींद्रनाथ बख्शी

वाराणसी. Azadi ka Amrit Mahotsav: स्वातंत्र्य आंदोलन में काशी का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। महामना पंडित मदन मोहन मालवीय, चंद्रशेखर आजाद, राष्ट्र रत्न शिव प्रसाद गुप्त, पंडित कमलापति त्रिपाठी जैसे कर्मवीर क्रांतिकारी तो थे ही जिन्होंने देश को आजाद कराने से लेकर देश को नई दिशा देने तक का गुरुतर दायित्व बखूबी निभाया। इसी कड़ी में एक नाम शचींद्रनाथ बख्शी का भी है जिन्हें आजादी के अमृत महोत्सव के मौके पर स्मरण कर काशीवासी खुद को गौरवान्वित समझते हैं।
काकोरी कांड के बाद अपने अदम्य साहस के गढ़े नए-नए आयाम

वो शचींद्रनाथ बख्शी जिन्होंने काशी के दिग्गजों की गिरफ्तारी के बाद खुद ही कमान संभाल ली, तब वो इंटरमीडिएट के छात्र रहे। वो शचींद्रनाथ बख्शी जिनके आगे ब्रितानी हुकूमत भी घुटने टेक देती रही। क्रांतिवीर शचींद्रनाथ बख्शी का जन्म 27 दिसंबर 1900 ई. को वाराणसी में हुआ था। ये वही महान क्रांतिकारी रहे जिन्होने काकोरी कांड को अंजाम दिया और नायक कहलाए। काकोरी कांड के बाद उन्होंने एक के बाद एक अपने अदम्य साहस के नए आयाम गढ़े और देश को आजाद करा कर ही दम लिया। फिर आजाद भारत में शहर दक्षिणी से विधायक भी चुने गए। आजाद भारत में खुल कर सांस ली। ऐसे क्रांतिवीर ने 23 नवंबर 1984 सुल्तानपुर में उनका निधन हुआ।
शचींद्रनाथ के कारनामों से ब्रितानी हुकूमत भी घबराने लगी

1922 में जब अनुशीलन समिति की शाखा वाराणसी में खुली तो शचींद्रनाथ ने इस अनुशीलन समिति में क्रांतिवीरों की भर्ती करने से लेकर उन्हें प्रशिक्षित करने तक की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठा ली। देश को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने की उनकी महत्वाकांक्षा का ही परिणाम रहा कि न केवल अनुशीलन समिति का व्यापक तौर पर विस्तार हुआ बल्कि क्रांतिकारी गतिविधियां भी गति पकड़ लीं। उनके नेतृत्व की धाक इस कदर फिजाओं में घुली कि ब्रितानी हुकूमत का सिंहासन डगमगाने लगा। गुप्तचर विभाग भी चौकन्ना हो गया। लेकिन शचींद्रनाथ को इसकी भनक लगी तो उन्होंने काशी छोड़ लखनऊ को अपना कार्य स्थल बना लिया। धीरे-धीरे उनकी ख्याति इतनी बढ़ी कि 1924 में हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन की जिम्मेदारी भी उन्हें मिली। फिर क्या बनारस से लेकर लखनऊ और झांसी तक में उन्होंने अपनी वीरता के झंडे गाड़ दिए। युवाओं को क्रांति की इस मशाल से जोड़ा
यूं दिया था काकोरी कांड को अंजाम

काकोरी कांड के दौरान अशफाकउल्ला और राजेंद्रनाथ लाहिड़ी को रेल रोकने की जिम्मेदारी सौंपी गई तो शचींद्रनाथ को काम को अंजाम तक पहुंचाने तक गार्ड को अपने कब्जे में रखने की जिम्मेदारी मिली। और जब काकोरी कांड को बखूबी अंजाम तक पहुंचा दिया गया तो ब्रितानी हुकूमत बौखला गए। घटना के अगले दिन जब मामले की पड़ताल शुरू हुई तो ब्रितानी हुकूमत की पुलिस ने चंद्रशेखर आजाद, अशफाक उल्ला और शचींद्रनाथ बख्शी को छोड़ अन्य सभी को गिरफ्तार कर लिया। ये तीनों क्रांतिवीर भूमिगत हो गए। उधर पुलिस इनकी तलाश में जुटी रही। अंततःपुलिस को 1927 में शचींद्रनाथ को भागलपुर से गिरफ्तार करने में सफलता हासिल हुई।
गिरफ्तारी के बाद जेल में भी लड़ते रहे, भूख हड़ताल तक की

शचींद्रनाथ पर काकोरी कांड का दूसरा मुकदमा चलाया गया। इसमें अशफाकउल्ला को फांसी की सजा सुनाई गई तो शचींद्रनाथ बख्शी को आजीवन कारावास की सजा हो गई। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और जेल में बंदियों के अधिकार व सुविधाओं के लिए लड़ते रहे। बरेली जेल में 53 दिनों तक भूख हड़ताल की, तब उनका साथ मन्मथनाथ गुप्त और राजकुमार सिन्हा ने दिया।

Hindi News / Varanasi / Azadi ka Amrit Mahotsav: जब दिग्गजों की हुई गिरफ्तारी तो काशी के युवा शचींद्रनाथ ने संभाली थी कमान

Copyright © 2024 Patrika Group. All Rights Reserved.